दिल्ली: देश में एक देश-एक चुनाव की चर्चा जोर पकड़ चुकी है और केंद्र सरकार ने इसके लिए एक समिति भी गठित की है, जिसका अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को बनाया गया है. केंद्र सरकार ने विशेष सत्र बुलाया है, यह सत्र 18 सितंबर से 22 सितंबर तक चलेगा. इस पांच दिवसीय विशेष सत्र में सरकार एक देश-एक चुनाव बिल ला सकती है. इसका मकसद है भारत में लगभग सभी चुनाव एक ही समय पर कराया जाए.
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‘वन नेशन वन इलेक्शन’ को लेकर समिति गठन करने का मकसद है कि देश की केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के लिए अलग-अलग समय पर चुनाव न कराकर हर पांच साल में एक साथ चुनाव कराए जाएं. केंद्र के विशेष सत्र बुलाने के फैसले के बाद ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ के लिए कमेटी बनाने की जानकारी सामने आई थी, जिसके बाद से ही चर्चा चल रही है कि इसी सत्र में केंद्र इस बिल को सदन में चर्चा के लिए रख सकती है.
सरकार ने जून से ही इसकी पटकथा लिखनी शुरू कर दी थी
रिपोर्ट्स के मुताबिक सरकार ने जून की शुरुआत से ही इसकी स्क्रिप्ट लिखनी शुरू कर दी थी. इसके साथ ही इस पूरी प्रक्रिया में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद अहम भूमिका निभाते नजर आए. हालांकि, अभी तक यह तय नहीं हुआ है कि संबंधित विधेयक सत्र में पेश किया जाएगा या नहीं. लेकिन माना जा रहा है कि अगर इस बिल को मंजूरी मिल गई तो ये विपक्ष के लिए बड़ा झटका होगा.
सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नाम पर क्यों लगाई मुहर?
इस मामले में शुक्रवार को पूर्व राष्ट्रपति के नाम की आधिकारिक घोषणा की गई थी. उनके नेतृत्व में एक कमेटी बनेगी जो इस पर काम करेगी. इसके बाद सदस्यों की भी घोषणा कर दी गयी. लेकिन सवाल ये है कि सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति कोविंद के नाम पर मुहर क्यों लगाई? इसके कई कारण भी सामने आ रहे हैं. रिपोर्ट के मुताबिक पूर्व राष्ट्रपति ऐसे जटिल कानूनी मामलों को आसानी से संभाल सकते हैं. इसके साथ ही उन्हें पीएम मोदी का विश्वासपात्र भी माना जाता है. रविवार को केंद्रीय कानून मंत्रालय के अधिकारियों ने समिति के कामकाज को लेकर बैठक की थी. बताया गया है कि पूर्व राष्ट्रपति ने पिछले तीन महीनों में कम से कम 10 राज्यपालों से मुलाकात की है.
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