ब्रिटिश काल में 9 तोपों की सलामी का दर्जा प्राप्त संतरामपुर की रियासत को झालोद का पारिवारिक राज्य कहा जाता था. धार (मध्य प्रदेश) के राजा जालम सिंह भील राज्य पर आक्रमण किया और इसे झालोद बनाया. इससे अलग हुए संत और लिमदेव नाम के राजकुमारों ने संतरामपुर की स्थापना की, ब्रिटिश शासन के दौरान संतरामपुर के पास मानगढ़ पहाड़ी पर जहां आदिवासियों का नरसंहार किया गया था, वह स्थान आज यहां एक धार्मिक केंद्र माना जाता है. मध्य-पूर्व गुजरात के महिसागर जिले की इस सीट को चुनाव आयोग ने 123 क्रम दिया है. संतरामपुर विधानसभा सीट में संतरामपुर शहर सहित तालुका के 109 गांव शामिल हैं. इसके अलावा कडाणा तालुका भी इसी का हिस्सा है. दाहोद लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले इस निर्वाचन क्षेत्र में कुल 2,31,788 मतदाता पंजीकृत हैं.
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मिजाज
गुजरात राज्य के गठन के बाद पहले चुनाव को छोड़कर 2007 तक यह सीट सामान्य वर्ग की थी. नए सीमांकन के बाद इसे अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित कर दिया गया है. यहां से ज्यादातर कांग्रेस प्रत्याशी जीतते रहे हैं. इस बैठक की दिलचस्प विशेषता यह है कि शिक्षा मंत्री यहां से दो-दो बार मिल चुके हैं. इस सीट से तीन बार जीत चुके दिग्गज नेता प्रबोधकांत पंड्या चिमनभाई पटेल की सरकार में शिक्षा मंत्री थे और मौजूदा विधायक डॉ. कुबेर डिंडोर वर्तमान सरकार में शिक्षा राज्य मंत्री हैं.
रिकॉर्ड बुक
साल विजेता पार्टी मार्जिन
1998 डॉ. मानसिंह भमात कांग्रेस 10971
2002 प्रबोधकांत पंड्या भाजपा 33030
2007 परंजयादित्य सिंहजी कांग्रेस 8807
2012 गेंडलभाई डामोर कांग्रेस 25654
2017 कुबेरभाई डिंडोर बीजेपी 6424
कास्ट फैब्रिक
70% आदिवासी समुदाय की आबादी के साथ, डामोर, डिंडोर, भमात, भाभोर जैसी उपजातियां इस सीट पर हावी हैं. इसके अलावा यहां कोली, माछी और दलित समुदाय की आबादी भी अच्छी खासी है. उच्च जातियों में क्षत्रियों और ब्राह्मण की भी महत्वपूर्ण आबादी है, लेकिन उनकी राजनीतिक उपस्थिति पालिका, पंचायत के चुनाव तक सीमित है.
समस्या
इस सीट से 2 विधायक शिक्षा मंत्री बन चुके हैं बावजूद इसके यहां कोई सरकारी कॉलेज नहीं है यह बड़ी विडंबना है. इसके अलावा इंजीनियरिंग या मेडिकल कॉलेजों का भी अभाव है. स्थानीय युवाओं को उच्च शिक्षा और रोजगार प्राप्त करने के लिए वडोदरा या अहमदाबाद जाना पड़ता है. स्थानीय स्तर पर कोई बड़े उद्योग नहीं हैं. गुजरात में दूसरा सबसे बड़ा कड़ाना बांध पास में होने के बावजूद यहां सिंचाई की समस्या है.
मौजूदा विधायक का रिपोर्ट कार्ड
कुबेरभाई डिंडोर तलोदनी कॉलेज में प्रोफेसर हैं. पीएच.डी. डिग्री धारक हैं. मिलनसार छवि वाले कुबेरभाई को भाजपा ने कांग्रेस की इस सीट पर स्थायी रूप से कब्जा करने की पूरी छूट दी है. तदनुसार, कुबेरभाई स्थानीय तालुका पंचायत और नगर पालिका पर कब्जा करने में भी सफल रहे हैं. संतरामपुर गांव में उनका दबदबा है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में भी ऐसा नहीं कहा जा सकता है. इसके अलावा डामोर उप-जाति खिलाफ मतदान करने के आदी हैं. उनको अभी तक वह राजी नहीं कर पाए हैं. इसके बाद भी बीजेपी से उनकी उम्मीदवारी पक्की मानी जा रही है.
प्रतियोगी कौन?
यहां पिछले चुनाव में कांग्रेस ने स्थानीय संगठन को नाराज कर गेंडालभाई को टिकट दिया था, जिससे कांग्रेस को मामूली अंतर से हार का सामना करना पड़ा था. इस बार भी गेंडालभाई दावेदारी के रेस में सबसे आगे चल रहे हैं. इसके अलावा धीरजभाई डामोर, कोकिलाबेन डामोर और डॉ. योगेश पगी को भी मुख्य दावेदार माना जा सकता है. अगर कांग्रेस इस बार आदिवासी-उप-जाति समीकरणों को संतुलित कर सकती है, तो उसके लिए खोई हुई सीटों को फिर से हासिल करने का मौका है.
तीसरा कारक
आम आदमी पार्टी ने यहां अच्छी पकड़ बना ली है. वडोदरा में आयोजित अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया की रैलियों में संगठन इस क्षेत्र के लोगों को बड़ी संख्या में ले जाने में सफल रहा. आम आदमा पार्टी के दावेदारों में डॉ. कल्पेश संगाडा और शिवानी भाभोर का नाम प्रमुख माना जाता है. आम आदमी पार्टी का उम्मीदवार मुख्य रूप से कांग्रेस के उम्मीदवार की जीत की राह को मुश्किल बना सकता है स्थानीय स्तर पर इसकी चर्चा हो रही है.
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