सौराष्ट्र का पेरिस, सौराष्ट्र की काशी के नाम से जाना जाने वाला गुजरात का यह पश्चिमी शहर वहां की काजल, सूरमा की तरह अपनी प्रसिद्ध बंधनी की तरह आकर्षक है. जामसाहेब के नवानगर का नाम बदलकर जामनगर कर दिया गया लेकिन शहर की भावना कभी नहीं बदली. जाम रणजी, वीनू मांकड़, अजय जाडेजा और रवींद्र जडेजा जैसे क्रिकेटरों से लेकर महान आयुर्वेदाचार्य झंडू भट्ट के इस शहर ने हरकिशन जोशी जैसे महान कवियों को भी जन्म दिया है. भौगोलिक दृष्टि से गुजरात का कोना माना जाने वाला विरल राच्छ शहर अब जय विट्ठलानी जैसे कलाकारों के कारण रंगमंच का केंद्र माना जाता है. जीएसएफसी, एस्सार और बाद में रिलायंस रिफाइनरियों के आने के बाद से तेजी विकास की राह पर आगे बढ़ रहा जामनगर नए परिसीमन के बाद दो विधानसभा सीटों में विभाजित हो गया है. जामनगर दक्षिण सीट में कुल 2,29,344 पंजीकृत मतदाताओं के साथ नगर पालिका का सबसे दक्षिणी शहरी क्षेत्र शामिल है.
Advertisement
Advertisement
मिजाज
इमोशनल हो या प्रैक्टिकल, सादा और सीधी बात जामनगर की पहचान है और राजनीतिक मिजाज में भी कुछ इसी तरीके का दिखता है. 1980 में यहां से कांग्रेस के उम्मीदवार एमके बलोच को जीत हासिल हुई थी. चूंकि यहां मुस्लिम मतदाता महत्वपूर्ण हैं, इसलिए जब से कांग्रेस ने मुस्लिम उम्मीदवार को मौका दिया, तब से हर दूसरा समुदाय भाजपा का कट्टर समर्थक बनकर रह गया है. इस सीट से वसंतभाई संघवी, परमानंद खट्टर और वसुबेन त्रिवेदी तीन-तीन बार जीत हासिल कर चुके हैं. उम्मीदवारों को ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है क्योंकि यहां मतदाताओं का रवैया ज्यादातर बीजेपी समर्थक ही रहा है. यहां बीजेपी का टिकट वही गांधीनगर का टिकट माना जाता रहा है.
रिकॉर्ड बुक
साल विजेता पार्टी मार्जिन
1998 परमानंद खट्टर भाजपा 7715
2002 वसुबेन त्रिवेदी भाजपा 4965
2007 वसुबेन त्रिवेदी भाजपा 1080
2012 वसुबेन त्रिवेदी भाजपा 2862
2017 रणछोड़ फल्दू भाजपा 16349
(अंतिम दो परिणाम नए सीमांकन के बाद के हैं)
कास्ट फैब्रिक
इस सीट का जातिगत समीकरण बहुत दिलचस्प हैं. लगभग 20% मुस्लिम मतदाता हैं, 12% दलित मतदाता हैं, जिन्हें पारंपरिक रूप से कांग्रेस का वोट बैंक माना जाता है. लेकिन कांग्रेस के जाति समीकरण के खिलाफ 9% पाटीदार, 6% जैन, 7% क्षत्रिय, 7% ब्राह्मण और 6% लोहाना भाजपा के पक्के वोटबैंक हैं. विशुद्ध रूप से शहरी और सवर्ण मतदाताओं का काफी दबदबा है इसलिए यहां के मतदाताओं का झुकाव हमेशा भाजपा की ओर रहा है.
समस्या
शहरी क्षेत्र होने के कारण यहां की समस्याएं मुख्य रूप से यातायात, पार्किंग और अन्य आवश्यक सुविधाओं से जुड़ी हैं. बहुमंजिला पार्किंग जोन की समस्या का समाधान अभी तक नहीं हो पाया है. रात्रि बाजार की मांग भी लंबे समय से लंबित है. लेकिन यहां भाजपा की ओर मजबूत झुकाव को देखते हुए इलाके की मुख्य समस्याएं गौण हो जाती हैं.
मौजूदा विधायक का रिपोर्ट कार्ड
भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष आर.सी. फल्दू ने इस सीट से अच्छे मार्जिन से जीत हासिल की थी. लेकिन इस बार संभावना जताई जा रही है कि उनका पत्ता काटकर बीजेपी किसी नए, युवा और साफ छवि वाले उम्मीदवार को इस सीट से मौका दे सकती है. इन परिस्थितियों में महिला उम्मीदवार के रूप में शेतलबेन सेठ और मंजुलाबेन हीरपारा के नामों पर भी चर्चा हो रही है. लेकिन यहां सबसे ज्यादा चर्चा क्रिकेटर रविंद्र जाडेजा की पत्नी रिवाबा के नाम पर हो रही है. हालांकि, रिवाबा ने खुद एक से अधिक बार साफ कर चुकी हैं कि वह दावेदार नहीं हैं.
प्रतियोगी कौन?
यहां परेशानी कांग्रेस के लिए बनी हुई है. बीजेपी का गढ़ होने के कारण कांग्रेस को कोई मजबूत उम्मीदवार नहीं मिल रहा है. असलम खिलजी इस सीट के दावेदार हैं, लेकिन मुस्लिम उम्मीदवार की वजह से अन्य तमाम समुदाय एकजुट हो जाएंगे इसलिए इस बात की प्रबल संभावना है कि कांग्रेस यहां पाटीदार या लोहाना समुदाय के उम्मीदवार को चुनावी मैदान में उतार सकती है. लगातार हार के कारण कांग्रेस का स्थानिक संगठन भी मजबूत नहीं दिखता है, जो कांग्रेस उम्मीदवार के लिए कठिन लड़ाई को और अधिक कठिन बना देता है.
तीसरा कारक
आम आदमी पार्टी ने इस शहरी क्षेत्र में पैर जमाने की कोशिश की है लेकिन अहमदाबाद, सूरत, वडोदरा में उसे जितनी सफलता नहीं मिली है, उतनी यहां नहीं मिल पाई है. जनता की सहज प्रतिक्रिया उत्साहजनक है लेकिन इसे वोट में बदलने के लिए संगठन की कमी है. बावजूद इसके अगर आम आदमी पार्टी मजबूत उम्मीदवार को मौका देगी तो वह भाजपा की मार्जिन में कमी ला सकता है.
#बैठकपुराण बोटाद: ढाई दशक में पांच बार जीत चुके सौरभ पटेल अब यहां आयातित उम्मीदवार माने जाते हैं
Advertisement