एक ऐसा शहर जिसका उल्लेख स्कंदपुराण और ग्रीक सम्राट एलेक्जेंडर के इतिहासकार पेर्डिक्कास के यात्रा वृतांतों में भी मिलता है. मुस्लिम इतिहासकार भी इसे पहचानते हैं और इसका नाम ईस्ट इंडिया कंपनी के रिकॉर्ड में भी दर्ज है. मराठों का इतिहास भी इस शहर की पहचान कराता है. दिलचस्प बात यह है कि इसका अलग-अलग इतिहास ग्रंथों में अलग-अलग नाम है. स्कंदपुराण में यह भृगुकच्छ है. यूनानियों ने इसे बारगोसा कहा, मुस्लिम इतिहासकारों ने इसे भरूच नाम दिया. मराठे इसे भाडोच शहर के नाम से जानते थे. अंग्रेजों ने इसे ब्रोच नाम दिया, जो आज भी रेलवे की किताब में मिलता है. महर्षि भृगु की जन्मस्थली के रूप में नर्मदा के तट पर बसे इस शहर ने सैकड़ों वर्षों के इतिहास को संजोए रखा है. भरूच को गुजरात में मुसलमानों की सबसे बड़ी संख्या वाला जिला होने का भी गौरव प्राप्त है, विधानसभा सीट संख्या 153 के साथ सामान्य श्रेणी में आता है. भरूच शहर, तालुका के अलावा अंकलेश्वर तालुका के कई गांवों के साथ यहां कुल 2,89,620 मतदाता पंजीकृत हैं.
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मिजाज
बड़ी मुस्लिम आबादी के बावजूद इस निर्वाचन क्षेत्र पर भाजपा की अटूट पकड़ है. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेता अहमद पटेल को हराकर यहां से बीजेपी के चंदूभाई देशमुख के जीतने के बाद बीजेपी ने बिना किसी अपवाद के बढ़ती सफलता के साथ विधानसभा सीट बरकरार रखी है. नए परिसीमन के बाद अंकलेश्वर सीट में मुस्लिम आबादी वाले कई गांवों को शामिल हो गए हैं जिससे बीजेपी का गढ़ और मजबूत हो गया है.
रिकॉर्ड बुक
साल विजेता पार्टी मार्जिन
1998 बिपिन भाई शाह बीजेपी 8371
2002 रमेश भाई मिस्त्री बीजेपी 11003
2007 दुष्यंत भाई पटेल भाजपा 8364
2012 दुष्यंत भाई पटेल भाजपा 37190
2017 दुष्यंत भाई पटेल भाजपा 33099
कास्ट फैब्रिक
इस निर्वाचन क्षेत्र में मुस्लिम आबादी लगभग 60,000 है और अनुसूचित जाति/जनजाति की संख्या लगभग 50,000 है. इसके अलावा ओबीसी में शामिल विभिन्न जाति समुदायों की संख्या भी लगभग 50,000 है. 25,000 पाटीदार इसके खिलाफ निर्णायक माने जाते हैं. ओबीसी और पाटीदार भाजपा के स्थायी वोट बैंक हैं. जबकि कांग्रेस मुस्लिम और आदिवासी वोटरों पर निर्भर है. हालांकि, बीजेपी ने अब आदिवासी समूहों के बीच भी अपना प्रभाव बना लिया है. इसीलिए इस सीट को जीतने का मिशन कांग्रेस के लिए हमेशा के लिए नामुमकिन सा रहता है.
समस्या
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भरूच को विशाल नर्मदा का तट मिला हुआ है फिर भी शहर पीने के पानी की समस्या से ग्रस्त है. शहरी क्षेत्र होने के बावजूद यहां नियोजित शहरीकरण का पूर्ण अभाव है. गंदगी और सीवेज निपटान की समस्या स्थायी है. बड़ी औद्योगिक इकाइयों और रासायनिक क्षेत्रों के कारण वायु प्रदूषण की समस्या भी यहां विकराल है. 50 हेक्टेयर भूमि पर नए दो वाटर ट्रीटमेंट प्लांट, ग्रीन कॉरिडोर जैसी योजनाओं को लागू नहीं किया जा सका.
मौजूदा विधायक का रिपोर्ट कार्ड
तीन बार चुने गए दुष्यंत पटेल यहां के लोकप्रिय विधायक हैं. स्थानीय स्तर पर काफी जनसंपर्क रखते हैं और वर्तमान में विधानसभा में भाजपा के उपनेता भी हैं. लेकिन इस बार व्यापक चर्चा है कि दुष्यंत पटेल को नो रिपीट थ्योरी के तहत टिकट नहीं दिया जाएगा. हाल ही में इस सीट से बीजेपी पर्यवेक्षकों के सामने कुल 15 लोगों ने दावेदारी पेश की है. जिसमें पूर्व सांसद भरतसिंह परमार, पूर्व विधायक रमेश मिस्त्री और महिला उम्मीदवार के तौर पर डॉ. सुषमा भट्ट और शैला पटेल का नाम प्रमुख माना जाता है.
प्रतियोगी कौन?
शीर्ष नेता अहमद पटेल का गृहनगर होने के बावजूद, कांग्रेस संगठन स्पष्ट हार के कारण तालुका, जिला स्तर पर विशेष रूप से प्रभावशाली नहीं रहा है. अहमद पटेल के बेटे फैजल पटेल या बेटी को सक्रिय राजनीति में प्रवेश करने की अनिच्छा के बावजूद कांग्रेस का मुख्य दावेदार माना जाता है. हालांकि, जनसंपर्क और जातिगत समीकरणों को संतुलित करने वाले उम्मीदवार की अनुपस्थिति में, इस सीट को जीतने का सपना कांग्रेस के लिए सपना ही साबित हो सकता है.
तीसरा कारक
आम आदमी पार्टी ने यहां दलित नेता मनहर परमार को मैदान में उतारा है, जिनका तालुका स्तर पर प्रभाव नगण्य है. ऐसे में इस सीट पर बीजेपी की बढ़त खोने का सवाल ही नहीं उठता. एमआईएम द्वारा यहां उम्मीदवार को मैदान में उतारने की पूरी संभावना है. जिससे कांग्रेस के उम्मीदवार को परेशानी हो सकती है.
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