पीराम के पादशाह कहे जाने वाले मोखडाजी गोहिल का समुद्री तट पर किसी जमाने में बोलबाला था. दिल्ली के सुल्तान मुहम्मद तुगलक को आंख दिखाने वाले मोखडाजी को वास्तव में हिंदुस्तान के पहला समुद्री राजा माना जाना चाहिए. आज भी पीरम बेट से गुजरते समय भारतीय नौसेना दल सहित जहाज मोखडाजी को टेक्स के रूप में नारियल चढ़ाते हैं यह एक परंपरा है. एक गौरवशाली इतिहास, समृद्ध नौवहन व्यापार और वीरतापूर्ण कारनामों के साथ, घोघा के तट ने कई अनकही कहानियों को संरक्षित किया है. नए परिसीमन के बाद घोघा विधानसभा सीट अब भावनगर ग्राम्य के नाम से जानी जाती है. सामान्य श्रेणी की यह सीट क्षेत्रफल की दृष्टि से बहुत बड़ी है क्योंकि इसमें भावनगर, घोघा, सीहोर और सोनगढ़ तालुका के गांव शामिल हैं. यहां मतदाताओं की संख्या 2,91,461 पंजीकृत है.
Advertisement
Advertisement
मिजाज
एक ही नाम और यही इस सीट का मिजाज है. पिछले ढाई दशक से पुरुषोत्तम सोलंकी यहां भाजपा प्रत्याशी के रूप में शानदार जीत हासिल करते आ रहे हैं. खराब स्वास्थ्य के कारण वे पिछले चुनाव में प्रचार करने भी नहीं निकले थे, बावजूद इसके वह तीस हजार वोटों से जीते थे. यहां भाजपा से ज्यादा परषोत्तम सोलंकी का नाम चर्चित है. अगर इस सीट से पुरुषोत्तम सोलंकी की उम्मीदवारी होती है तो इससे भावनगर के अलावा गिर सोमनाथ जिला और अमरेली तक बीजेपी के लिए एक माहौल बन जाता है. इसलिए भाजपा निष्क्रियता और मनमानी के बावजूद इस दबंग नेता की अनदेखी नहीं कर सकती.
रिकॉर्ड बुक
साल विजेता पार्टी मार्जिन
1998 पुरुषोत्तम सोलंकी बीजेपी 16101
2002 पुरुषोत्तम सोलंकी बीजेपी 15719
2007 पुरुषोत्तम सोलंकी बीजेपी 34591
2012 पुरुषोत्तम सोलंकी बीजेपी 18554
2017 पुरुषोत्तम सोलंकी बीजेपी 30993
(अंतिम दो परिणाम नए सीमांकन के बाद के हैं)
कास्ट फैब्रिक
लगभग 80,000 कोली समुदाय के मतदाताओं का एकतरफा मतदान इस सीट पर जीत की कुंजी है, जिस पर पुरुषोत्तम सोलंकी का कब्जा है. इसके अलावा 30,000 क्षत्रिय, 20,000 पाटीदार भी महत्वपूर्ण हैं. पुरुषोत्तम सोलंकी के राजनीतिक उत्थान से पहले इस सीट से किरीटसिंह गोहिल, दिलीपसिंह गोहिल, परबतसिंह गोहिल जैसे नेता जीत चुके हैं, लेकिन अब वे दिन बीत गए जब यहां क्षत्रिय उम्मीदवार जीत हासिल करते थे.
समस्या
समृद्ध समुद्र तट के बावजूद, लगातार बढ़ते सूखे की समस्या का समाधान नहीं किया जा सका है. बड़े जोर शोर से शुरू की गई रो-रो फेरी सेवा भी सफल नहीं हो पाई है, इसलिए घोघा के विकास की बात सिर्फ गुलाबी सपने जैसा है. स्थानीय स्तर पर रोजगार या उच्च शिक्षा का कोई प्रावधान नहीं है. स्थानीय लोगों की शिकायत है कि स्वास्थ्य सेवाएं भी बदहाल हैं. लेकिन अगर इतनी समस्याएं हैं तो एक ही उम्मीदवार को दशकों तक क्यों चुना जाता है इसका जवाब किसी के पास नहीं है.
मौजूदा विधायक का रिपोर्ट कार्ड
पुरुषोत्तम सोलंकी नाम इतना वजनदार है कि उनके सामने रिपोर्ट कार्ड शब्द भी छोटा लगता है. पच्चीस साल पहले जब से उन्होंने कोली समुदाय के शोषण के खिलाफ जुझारू लड़ाई लड़ी, तब से एक मसीहा के रूप में उनकी छवि इतनी गहरी हो गई है कि आज उनके बिना चुनाव की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. घोघा के अलावा भावनगर पश्चिम, पूर्व, तलाजा, महुवा जैसी जिला सीटों पर भी उनका प्रभाव है.
प्रतियोगी कौन?
स्थानीय स्तर पर कांग्रेस का कोई संगठन नहीं है, इसलिए इस सीट पर चुनाव लड़ने के लिए कांग्रेस में कोई खास दावेदार भी नहीं हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि रेवंतसिंह गोहिल स्थानीय स्तर पर एक उल्लेखनीय नाम हैं, लेकिन कास्ट फैक्टर और पुरुषोत्तमभाई के करिश्मे के सामने वह टिक नहीं पाएंगे. जिले में क्षत्रियों की उपेक्षा को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने यहां क्षत्रिय प्रत्याशी खड़ा किया है, ताकि भावनगर पश्चिम और पलिताना जैसी सीटों पर भी कांग्रेस को फायदा हो सके.
तीसरा कारक
आम आदमी पार्टी ने भी यहां क्षत्रिय उम्मीदवार को टिकट दिया है. खुमानसिंह गोहिल एक स्थानीय और सक्रिय कार्यकर्ता हैं. लेकिन इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है कि वे कांग्रेस के वोटों को तोड़ देंगे और अंत में भाजपा की बढ़त को बढ़ा देंगे.
#बैठकपुराण भावनगर (पूर्व): अपने ही गढ़ में भाजपा प्रयोग न कर किसका डर व्यक्त किया?
Advertisement