गुजरात में दो शहर ऐसे हैं जिनका नाम विशाल बरगद के वृक्ष के नाम पर रखा गया है. एक है वडोदरा (मूल नाम वटपद्रा) और दूसरा है वलसाड (मूल नाम वडसाल)। कहा जाता है कि कुछ साल पहले भी वलसाड शहर और उसके आसपास 1000 से ज्यादा पेड़ पाए गए थे. अब पेड़ भी नहीं रहे और वडसाल से अंग्रेजों ने बलसार बनाया और उसी से वलसाड नाम को स्थानीय नगरवासियों ने स्वीकार किया. पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की जन्मस्थली और गांधीवादी विचारधारा के प्रवर्तक नारायण देसाई की जन्मस्थली सूरत, नवसारी के अलावा दक्षिण गुजरात की राजनीति का केंद्र माना जाता है.
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मिजाज
गुजरात भर में 179 नंबर वाली इस सामान्य श्रेणी की सीट की विशेषता यह है कि यह सत्ता की हवा को समझने में माहिर है. गुजरात के बंटवारे के बाद 1985 तक हुए सभी चुनावों में यहां कांग्रेस प्रत्याशी की जीत हुई तो राज्य में सरकार की कांग्रेस भी बनी. 1990 से 2017 तक इस सीट से बीजेपी का उम्मीदवार जीतता आया है और राज्य में सरकार बीजेपी की बनी है. इसलिए कहा जाता है कि अगर जो वलसाड जीता वह गुजरात भी जीत जाता है. पहली बार कांग्रेस के गढ़ में सेंध लगाने वाले दौलतभाई देसाई ने यहां पांच बार प्रतिनिधित्व किया है और 2002 में एक अपवाद को छोड़कर हमेशा भारी बहुमत से जीत हासिल की है.
रिकॉर्ड बुक
साल विजेता पार्टी मार्जिन
1998 दौलतभाई देसाई भाजपा 22331
2002 दौलतभाई देसाई भाजपा 6063
2007 दौलतभाई देसाई भाजपा 14356
2012 भरतभाई पटेल भाजपा 35999
2017 भरतभाई पटेल भाजपा 43092
कास्ट फैब्रिक
इस सीट पर अब कोली समुदाय का दबदबा है. इस इलाके में रहने वाले कोली पटेल उपनाम लिखते हैं और सौराष्ट्र के कोली से खुद को अलग मानते हैं. उनमें शिक्षा का स्तर और राजनीतिक जागरूकता भी बहुत अधिक है. ग्रामीण क्षेत्रों में जनजातीय समुदायों को गेम चेंजर भी माना जाता है. मराठी समुदाय की जनसंख्या भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पूर्ववर्ती गायकवाड़ी राज की मूल सीट थी. मुस्लिम और दलित समुदाय भी अच्छी संख्या में हैं. यदि दोनों पार्टियां यहां कोली समुदाय से किसी उम्मीदवार का चुनाव करती हैं तो अन्य समुदायों के वोट निर्णायक हो जाते हैं.
समस्या
सत्तारूढ़ दल के विधायक निर्वाचित होने के बावजूद यह क्षेत्र पेयजल की समस्या से जूझ रहा है.चौंकाने वाली बात यह है कि यहां वर्षा गुजरात राज्य के औसत से अधिक है, फिर भी भूजल स्तर लगातार कम हो रहा है और जल संग्रहण व्यवस्था आज तक ठीक नहीं हुई है. इस चुनाव में कांग्रेस के लिए सबसे आशाजनक मुद्दा रिवर लिंक प्रोजेक्ट है. धर्मपुर क्षेत्र में एक महत्वाकांक्षी नदी-जोड़ने की परियोजना को बांधे जाने के कारण सैकड़ों आदिवासियों को उनकी भूमि से बेदखल किए जाने की आशंका है. इस मुद्दे पर तीखे आंदोलन के बाद केंद्र सरकार ने फैसला रद्द करने का ऐलान कर दिया, लेकिन आंदोलन की आग अब भी जल रही है.
मौजूदा विधायक का रिपोर्ट कार्ड
स्थानीय कोली पटेल समाज के अध्यक्ष भरत पटेल को यहां से दो बार विधायक के रूप में चुने जा चुके हैं. उनका अपने अपने समाज के अलावा, अन्य समुदायों पर भी अच्छी पकड़ है. लेकिन इस बार बीजेपी अगर किसी महिला उम्मीदवार को तरजीह देती है तो सोनल पटेल का नाम यहां मुख्य दावेदार माना जा सकता है. इसके अलावा जिला पंचायत की राजनीति में सक्रिय बिपिन पटेल भी इस दौड़ में शामिल बताए जा रहे हैं.
प्रतियोगी कौन?
इस बार कांग्रेस बीजेपी के गढ़ में सेंध लगाने की तैयारी करती दिख रही है. इस सीट पर भी नदी जोड़ो परियोजना के मुद्दे पर आंदोलन में वांसदा विधायक अनंत पटेल की सक्रियता का फायदा कांग्रेस को मिल सकता है. बीजेपी अगर किसी महिला उम्मीदवार को मौका देती है तो कांग्रेस की तरफ से शीतलबहन पटेल को मुख्य दावेदार माना जा रहा है. इसके अलावा भोलाभाई पटेल और अनविल नेता विजय देसाई के नाम पर भी चर्चा चल रही है.
तीसरा कारक
आम आदमी पार्टी ने वलसाड सीट से राजेश मंगूभाई पटेल के नाम का ऐलान कर चुकी है. राजेश पटेल को उनकी वाक्पटुता और गर्म स्वभाव के कारण यहां मिर्ची के उपनाम से जाने जाते हैं. वलसाड नगर पालिका में तीन बार निर्दलीय निर्वाचित हुए राजेश पटेल एक बार अध्यक्ष भी बने हैं. उम्मीद जताई जा रही है कि वह भाजपा के वोटबैंक में बड़ी सेंध लगाने में कामयाब हो सकते हैं.
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