आणंद जिले के आंकलाव तालुका को चरोतर और कानम की सीमा कहा जा सकता है. तम्बाकू और कपास की खेती के लिए प्रसिद्ध इन दोनों क्षेत्रों की मिट्टी उतनी ही उपजाऊ है जितनी कि यहां की खुमारी प्रसिद्ध है. चरोतर स्वतंत्रता संग्राम में सबसे आगे था और गुजरात राज्य की स्थापना के बाद भी आंकलाव, पेटलाद जैसे गांव छोटे होने के बावजूद एक महत्वपूर्ण स्थान पर कब्जा करने में सक्षम था. जमीन का अधिकार, पट्टा देने की प्रणाली वाले चरोतर में पूरा विस्तार ऐसा है जहां क्षत्रिय बड़ी संख्या में भूमि मालिक हैं. इसलिए यहां दशकों से क्षत्रियों का दबदबा रहा है. पहले इस सीट को भादरन के नाम से जाना जाता था. नए सीमांकन के बाद इसे सीट नंबर 110 आंकलाव के नाम से जाना जाता है. आंकलाव गांव, तालुका के अलावा वासद तक के गांव इस सीट में शामिल हैं. मतदाताओं की कुल संख्या 2,23,812 है.
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मिजाज
स्वतंत्रता संग्राम में अहम योगदान देने वाले ईश्वर सिंह चावड़ा और बाद में गुजरात के प्रभावशाली मुख्यमंत्री बने माधव सिंह सोलंकी के कार्यक्षेत्र में हमेशा कांग्रेस का दबदबा रहा है. इस सीट का स्थायी मिजाज कांग्रेस पार्टी और क्षत्रिय उम्मीदवार का है. गुजरात में भारतीय जनता पार्टी के उत्थान-पतन के दौरान भी कांग्रेस प्रत्याशी यहां से आसानी से जीत हासिल करते रहे हैं. हालांकि, पिछले लोकसभा चुनाव में आंकलाव विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी के मितेश पटेल ने 12,000 वोटों के मार्जिन से जीत हासिल की थी.
रिकॉर्ड बुक
साल विजेता पार्टी मार्जिन
1998 धीर सिंह परमार कांग्रेस 20562
2000 राजेंद्र सिंह परमार कांग्रेस 23724
2002 राजेंद्र सिंह परमार कांग्रेस 20009
2007 राजेंद्र सिंह परमार कांग्रेस 27691
2012 अमित कुमार चावड़ा कांग्रेस 30319
2017 अमित कुमार चावड़ा कांग्रेस 33629
(अंतिम दो परिणाम नए सीमांकन के बाद के हैं)
कास्ट फैब्रिक
करीब ढाई लाख मतदाताओं में क्षत्रिय समुदाय का अनुपात करीब एक लाख है. इसलिए यहां हर पार्टी को क्षत्रिय उम्मीदवार को प्राथमिकता देनी पड़ती है. इसके अलावा पाटीदार, ओबीसी और दलित मतदाता भी महत्वपूर्ण हैं. लेकिन विधानसभा चुनाव में उन्हें कोई खास मौका नहीं मिला है.
समस्या
खराब सड़कें इस विधानसभा क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या हैं. विधायक की आधे से अधिक अनुदान स्वीकृत नहीं किया गया है. कांग्रेस इसका श्रेय भाजपा शासित राज्य सरकार के भ्रष्टाचार को देती है. कृषि यहां का मुख्य व्यवसाय है. अन्य वर्ग कृषि श्रम से जुड़ा हुआ है. उच्च शिक्षा और रोजगार के लिए नडियाद, आनंद या वडोदरा के अलावा युवाओं के लिए कोई स्थानीय विकल्प नहीं है.
मौजूदा विधायक का रिपोर्ट कार्ड
दो बार से लगातार बढ़ते अंतर से जीतते आ रहे अमित चावड़ा दिग्गज नेता ईश्वर सिंह चावड़ा के पोते और माधव सिंह सोलंकी के भतीजे हैं. वह गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष भी रह चुके हैं. मृदुभाषी और बहुत ही सौम्य छवि वाले अमितभाई का स्थानीय स्तर पर घनिष्ठ संपर्क है. वह अपने हर समर्थक को नाम से जानते हैं. राज्य की राजनीति में उनके कद को देखते हुए, उन्हें स्थानीय स्तर पर कांग्रेस में ज्यादा प्रतिस्पर्धा का सामना नहीं करना पड़ता है. तीसरे कार्यकाल में भी उनकी उम्मीदवारी पक्की मानी जा रही है.
प्रतियोगी है?
चुनावी चाणक्य कहे जाने वाले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कभी न जीती सीटों को जीतने के लिए खास रणनीति बनाई है. पिछले चुनाव में बीजेपी ने हंस कुंवरबा राज को अपना उम्मीदवार बनाकर स्थानीय कार्यकर्ताओं को नाराज कर दिया था. लेकिन इस बार बीजेपी ऐसी गलती नहीं करेगी. संभावना है कि लोकसभा चुनाव के दौरान इस क्षेत्र में सीट जीतकर बीजेपी इस बार पाटीदार, ओबीसी कार्ड आजमाएगी. तालुका पंचायत में भी बीजेपी को इसी समीकरण के साथ 7 सीटें मिली थीं. बीजेपी अगर विधानसभा के लिए भी यही समीकरण आजमाती है तो विशाल पटेल को मुख्य दावेदार माना जा रहा है. सांसद मितेश पटेल भी यहां केसरिया को लहराने के लिए मेहनत कर रहे हैं.
तीसरा कारक
आम आदमी पार्टी का यहां कोई खास संगठन नहीं है. वडोदरा में आयोजित केजरीवाल की रैली में स्थानीय स्तर पर ज्यादा उत्साह नहीं दिखा. जिसे देखकर लगता है कि इस सीट पर आप खास प्रभाव नहीं डाल पाएगी. इतना ही नहीं भाजपा को त्रिकोणीय मुकाबला से भी कोई खास फायदा होने की उम्मीद नहीं जताई जा रही है.
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