राजनीतिक नेता… इतना कीवर्ड देते ही गूगल भी कुर्ता, टोपी, बनियान या खेसाधारी नेताओं का चित्र दिखा देता है. हिंदी फिल्मों में भी एक शब्द कहे बिना किसी नेता को चित्रित करना चाहते हैं, तो कुर्ता अनिवार्य माना जाता है. सार्वजनिक जीवन में लोकप्रिय हो चुका यह ड्रेस कोड इस हद तक अनिवार्य हो गया है कि आज भी राजनीतिक हस्तियों के लिए कुर्ता अनिवार्य है. हालांकि सौभाग्य से अब एक धीमा लेकिन स्थिर परिवर्तन दिखाई दे रहा है. सफेद कुर्ता की परंपरा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रंगीन, आधे बाजू का कर्ता पहनकर तोड़ दिया. वहीं आज के युवा नेता कुर्ता के एकाधिकार को खारिज कर रहे हैं.
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खादी का ढीला कुर्ते आज़ादी के बाद थोड़ा चुस्त हो गए
स्वतंत्रता संग्राम में शामिल नेताओं पर महात्मा गांधी का प्रभाव था, इसलिए उनके पहनावे में भी सादगी देखी गई. महात्मा स्वयं छोटा वस्त्र पहनकर अनुयायियों को यह सबक दिया था. अपने निजी जीवन में स्टाइलिश और फैशनेबल जवाहरलाल नेहरू भी छोटे कुर्ते और सलवार पहनते थे. कुर्ते के ऊपर कोट और कोट के बटन में गुलाब की शिखा आजादी के बाद उनके द्वारा अपनाई गई थी. यह शायद राजनेताओं के ड्रेस कोड में पहला बदलाव था. सरदार पटेल अपने छात्र दिनों की तस्वीरों में या एक वकील के रूप में कोट-पैंट की विदेशी वेशभूषा में देखे जाते हैं, लेकिन गांधीजी के संगत में आने के बाद उन्होंने कुर्ता, धोती और सामयिक खादी की बनियान के अलावा किसी अन्य तरह की पोशाक को अपनाया हो ऐसा जानने को नहीं मिलता है. पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद लंबे और प्रभावशाली थे. आजादी से पहले राजेंद्र बाबू जो ज्यादातर मोटे कपड़े और धोती पहनते थे, राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने साधारण लेकिन स्टाइलिश, मोजड़ी और बनारसी टोपी को अपनाया. उस दौर के राजनेताओं के पहनावे पर गांधी का प्रभाव लगभग तीन दशकों तक रहा.
स्टाइल आइकॉन बनीं इंदिरा की साड़ी
उस दौर में जब नेताओं के लिए कुर्ता और धोती अनिवार्य था उस दौर की महिला नेताओं ने भी बिल्कुल सादी, सफेद और नीले रंग की बॉर्डर वाली खादी की साड़ी पहनती थीं. कस्तूरबा, सरोजिनी नायडू अमृतकौर की तस्वीरों में ज्यादातर इसी ड्रेस देखने को मिलती हैं. जब विजयालक्ष्मी पंडित को संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधि के रूप में भेजा गया था, तो रंगीन साड़ी और स्टाइलिश काले चश्मे पहने हुए उनकी तस्वीरों ने सबसे पहले चर्चा शुरु की थी. लेकिन असली बहस इंदिरा गांधी की साड़ियों को लेकर हुई थी. आजादी से पहले और आजादी के बाद के दशकों में ज्यादातर सफेद खादी पहनने वाली इंदिरा ने भी सत्तर के दशक में अपना दबदबा साबित करने के बाद पोशाक में भारी बदलाव किया था. इंदिरा हस्तकला या बंगाली प्रिंट की रंगीन साड़ियों में शाही लग रही थीं. साड़ी पहनने का उनका अंदाज भी देश भर की महिलाओं के बीच अनुकरणीय बन गया था.
दक्षिण के नेताओं ने खेस जोड़ा
हालांकि इंदिरा की ठाठबाठ के बावजूद ज्यादातर पुरुष नेताओं के पहनावे में कोई खास बदलाव नहीं आया था. मोरारजी देसाई या बाबू जगजीवनराम जैसे गांधी युग के नेताओं ने अभी भी कुर्ता, बनियान और धोती पहनने पर जोर दे रहे थे. चंद्रशेखर, राजनारायण, चौधरी चरण सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी जैसे बाद की पीढ़ी के नेताओं ने भी पोशाक परंपरा का पालन किया. एकमात्र जॉर्ज फर्नांडीज शर्ट-पैंट और चप्पल में सबसे अलग लग रहे थे. उस दौर के दक्षिण भारत के फिल्मी स्टार ने राजनेताओं के पोशाक की सफेदी में कुछ रंग जोड़ा था. एमजी रामचंद्रन और एनटी रामाराव ने सफेद पोशाक के ऊपर रंगीन खेस पहने थे, जो उनकी शोभा बढ़ा रहा था. यह देख भाजपा के मुरली मनोहर जोशी ने भी लाल बॉर्डर वाला खेस शुरू कर दिया और धीरे-धीरे यह खेस नेताओं के ड्रेस कोड का हिस्सा बन गया.
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राजीव गांधी ने जोधपुरी का ट्रैंड शुरू किया
अस्सी के दशक के अंत में राजीव गांधी ने कुर्ता के तुलना में जोधपुरी सूट को लोकप्रिय बनाया था. राजीव गांधी जोधपुरी सूट में काफी हैंडसम लग रहे थे. जिसके बाद देखते ही देखते अरुण नेहरू, रामविलास पासवान, शरद पवार जैसे नेता भी जोधपुरी में दिखने लगे. वीपी सिंह को जोधपुरी के ऊपर टोपी पहनने का भी शौक था. बहरहाल, नेताओं के पहनावे को रंगीन बनाने का श्रेय मौजूदा प्रधानमंत्री मोदी को ही जाता है. उन्होंने खादी की जगह हल्के लेनिन के आधे बाजू के कुर्ते पहनना शुरू किया था, जो आज पूरे देश में मोदी कुर्ता के रूप में फैशन का प्रतीक बन गया है. मोदी ने रंग दिया, लेकिन ड्रेस का कुर्ता अजेय रहा. इसे बदलने का श्रेय अरविंद केजरीवाल को जाता है (भले ही भाजपा को यह पसंद न हो)।
अब केजरीवाल स्टाइल
गुजरात की राजनीति में कुछ ऐसे राजनेता हैं जो ड्रेस कोड का पालन नहीं करते हैं. विधानसभा में जींस पहनने वाले विधायकों में कांग्रेस के शक्ति सिंह गोहिल पहले होंगे. नई पीढ़ी ने धोती को कब का त्याग दिया है लेकिन अब धीरे-धीरे कुर्ता भी पीछे छूटता जा रहा है. आम आदमी पार्टी के केजरीवाल सिंपल चेक शर्ट और ढीली पैंट में नजर आते हैं. इसी तरह गोपाल इटालिया को भी पैंट और शर्ट में ही देखा जाता है. गृह मंत्री हर्ष सांघवी भी मंत्रालय में अनिवार्य कुर्ता स्वीकार करने के बजाय पैंट-शर्ट में नजर आते हैं. शायद ही किसी ने प्रदीप सिंह जाडेजा को कुर्ता और पायजामा में देखा होगा. आम आदमी पार्टी के नेता इसूदान गढ़वी भी प्रदीप सिंह जाडेजा के समान ड्रेस कोड पसंद करते हैं. कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष अंबरीश डेर जींस और खुली शर्ट पहनना पसंद करते हैं. कुर्ता और पायजामे में उनका चित्र दुर्लभ माना जाता है. नई पीढ़ी अब ड्रेस कोड में भारी बदलाव ला रहे हैं, इसे देखकर नई असेंबली में कुर्ता के चलन में काफी गिरावट की उम्मीद जताई जा रही है.
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