अहमदाबाद: गुजरात विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही भाजपा नेताओं ने 2002 के दंगाग्रस्त साल को याद कर वोटों का ध्रुवीकरण शुरू कर दिया है. पीएम मोदी, योगी और अब अमित शाह ने कुछ ऐसा ही बयान दिया है. अमित शाह ने भी परोक्ष रूप से 2002 के दंगों को एक सबक के रूप में इंगित किया है. ऐसे में अब तक विकास की बात करने वाली बीजेपी ने चुनाव नजदीक आते ही अचानक हिंदू-मुस्लिम राजनीति की तरफ अपना रुख बदल लिया है.
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मौजूदा समय में भाजपा ने महंगाई, बेरोजगारी, किसानों की दयनीय स्थिति आदि कई मुद्दों के बीच विकास की बात को दरकिनार कर हिंदू-मुस्लिम राजनीति शुरू कर दी है. अमित शाह को 27 साल पहले की बातें याद आ रही हैं. लेकिन क्यों? क्योंकि 27 साल में गुजरात की जनता को महंगाई और बेरोजगारी में धकेलने के अलावा कुछ नहीं किया गया. इसलिए अब बीजेपी कब्र से कंकाल निकालने की कोशिश कर रही है. राज्य में नफरत की राजनीति की जा रही है.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को गुजरात के खेड़ा जिले में एक रैली को संबोधित करते हुए कहा कि 1995 से पहले गुजरात में कांग्रेस के शासन के दौरान बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक दंगे होते थे. इस दौरान उन्होंने कांग्रेस पर आरोप लगाते हुए कहा कि कांग्रेस विभिन्न समुदायों और जातियों के लोगों को आपस में लड़ने के लिए उकसा रही थी.
भाजपा ने स्थायी शांति व्यवस्था स्थापित की
गृह मंत्री शाह ने कहा कि गुजरात में असामाजिक तत्व कांग्रेस के समर्थन से हिंसा करते थे. उन्होंने कहा कि उन्होंने अपराधियों को सबक सिखाने के बाद 2002 में राज्य में इस तरह की गतिविधियों पर रोक लगा दी. भारतीय जनता पार्टी ने गुजरात में एक स्थायी शांति व्यवस्था स्थापित की है. इतना ही नहीं शाह ने आगे दावा करते हुए कहा कि 2002 में सबक सिखाने के बाद असामाजिक तत्वों ने हिंसा का रास्ता छोड़ दिया है. गौरतलब हो कि फरवरी 2002 में गोधरा रेलवे स्टेशन पर ट्रेन में आग लगने के बाद गुजरात के कई हिस्सों में बड़े पैमाने पर हिंसा भड़क उठी थी.
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