अहमदाबाद: मोरबी ब्रिज हादसा मामले की गुजरात हाईकोर्ट में आज सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से कई तीखे सवाल किए. हाईकोर्ट ने सभी लोगों को दिए गए मुआवजे पर नाराजगी जताई. इसके अलावा कोर्ट ने इस मामले में 10 दिन के भीतर पूरी रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया है.
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गुजरात हाई कोर्ट ने सुनवाई के दौरान राज्य सरकार से पूछा कि आपने ओरेवा ग्रुप के खिलाफ क्या कदम उठाए हैं? एसआईटी जांच रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में देने का आदेश दिया है.
मोरबी ब्रिज त्रासदी के मामले में उच्च न्यायालय द्वारा स्वत: संज्ञान लेने के बाद सुनवाई शुरू की गई है. राज्य सरकार की ओर से पेश किए गए हलफनामे पर अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि ओरेवा कंपनी और मोरबी नगर पालिका ने सिर्फ टिकट के नाम पर पैसा जुटाने में दिलचस्पी दिखाई, लेकिन मरम्मत का काम नहीं करवाया. कोर्ट ने अहम आदेश दिया है कि एसआईटी की जांच की रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में सौंपी जाए और अगर एसआईटी की जांच उचित नहीं मानी गई तो हाईकोर्ट किसी दूसरी एजेंसी को जांच सौंप सकता है.
राज्य सरकार द्वारा बनाई गई कमेटी में कौन-कौन है, इसकी भी जानकारी मांगी गई है. हाईकोर्ट ने मोरबी नगरपालिका से पूछा कि ओरेवा समूह को बिना किसी समझौते के साढ़े पांच साल पुल का इस्तेमाल करने के लिए क्यों दिया गया, आप पांच साल तक चुप क्यों रहे.
इसके अलावा हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की आलोचना करते हुए कहा, मरने वालों की जाति लिखने की क्या जरूरत है? सभी मृतकों को समान माना जाए. आगे कोर्ट ने कहा कि इस त्रासदी में 7 बच्चों ने अपने माता-पिता दोनों को खो दिया है. हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि मृतकों के परिवारों को दिया गया 4 लाख रुपये का मुआवजा पर्याप्त नहीं है और कम से कम 10 लाख रुपये का भुगतान किया जाना चाहिए. इसके अलावा, उच्च न्यायालय ने राज्य भर में पुलों के सर्वेक्षण का आदेश दिया है.
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