दिल्ली: चंद्रयान-3 की सफलता के बाद अब बारी है ‘समुद्रयान’ मिशन की, भारतीय वैज्ञानिकों की नजर अब समुद्र की गहराइयों पर है और जल्द ही इसका परीक्षण भी शुरू होने वाला है. मिशन समुद्रयान का उद्देश्य है कोबाल्ट, निकल और मैंगनीज जैसी कीमती धातुओं और खनिजों की खोज करना है. इसके लिए तीन वैज्ञानिकों को 6000 मीटर पानी के नीचे पनडुब्बी में भेजने की तैयारी की जा रही है. इस पनडुब्बी का नाम ‘मत्स्य 6000’ रखा गया है.
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मिली जानकारी के मुताबिक इस पनडुब्बी को बनाने में लगभग दो साल का समय लगा है. इसका पहला परीक्षण 2024 की शुरुआत में चेन्नई के तट पर बंगाल की खाड़ी में किया जाएगा. हाल ही में पर्यटकों को ले जाते समय टाइटन में विस्फोट होने के बाद वैज्ञानिक इसके डिजाइन पर बारीकी से विचार कर रहे हैं.
‘मत्स्य 6000’ पनडुब्बी के निर्माण में लगे राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान के वैज्ञानिक इसकी अंतिम समीक्षा कर रहे हैं. डीप ओशन मिशन के हिस्से के रूप में समुद्रयान मिशन का काम जारी है. पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव एम रविचंद्रन ने कहा, “हम 2024 की पहली तिमाही में 500 मीटर की गहराई पर समुद्री परीक्षण करेंगे. इस मिशन के 2026 तक साकार होने की उम्मीद है. केवल अमेरिका, रूस, जापान, फ्रांस और चीन ने ही मानवयुक्त पनडुब्बियां लॉन्च की हैं.
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव एम रविचंद्रन ने इस मिशन के बारे में जानकारी देते हुए आगे कहा कि कोबाल्ट, मैंगनीज और निकल के अलावा, रासायनिक जैव विविधता, हाइड्रोथर्मल वेंट और कम तापमान वाले मीथेन का पता लगाया जाएगा. इस पनडुब्बी में वैज्ञानिकों की टीम को भेजा जाएगा.
मत्स्य 6000 नामक पनडुब्बी 6000 मीटर की गहराई तक दबाव झेलने की क्षमता रखता है. यह पनडुब्बी पानी के अंदर 12 से 16 घंटे तक लगातार काम कर सके ऐसा डिजाइन किया गया है. इसमें 96 घंटे तक पर्याप्त ऑक्सीजन की व्यवस्था रहेगी. ‘मत्स्य’ 6000 समुद्र में जहाजों के संपर्क में रहेंगे. मत्स्य 6000 का वजन 25 टन है और यह 9 मीटर लंबा और 4 मीटर चौड़ा है.
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