नई दिल्ली: देशभर की अदालतों में लंबित मामलों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है. वर्तमान में स्थिति इतनी भयावह है कि सर्वोच्च न्यायालय ने स्वयं कहा है कि यदि इतने सारे लंबित मामलों का निपटारा नहीं किया गया तो जनता का न्याय के प्रति विश्वास कम हो सकता है और न्याय प्रणाली से मोहभंग हो रहा है. कुछ अदालतों में तो 50 साल पुराने मामले भी लंबित हैं. जस्टिस रवींद्र भट्ट और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ ने प्रत्येक राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को पांच साल से अधिक पुराने मामलों के शीघ्र निपटान के लिए 11 बिंदुओं वाला एक आदेश जारी किया है.
Advertisement
Advertisement
43 साल पुराने एक दीवानी मामले पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने लंबित मामलों पर चिंता जताते हुए कहा कि अगर कानूनी प्रक्रिया कछुआ गति से आगे बढ़ेगी तो लोगों का न्याय से भरोसा उठ जाएगा और वादकारियों का मोहभंग हो सकता है. पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में कुछ मामलों में 65 वर्ष से अधिक पुराने मामले लंबित हैं, जिसका अभी तक समाधान नहीं हो सका है. ऐसे सभी पुराने मामलों के आंकड़ों पर गौर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी की थी.
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश अरविंद कुमार ने याचिकाकर्ता से कहा कि जहां भी संभव हो मामले को स्थगित करने से बचने के लिए वकीलों और न्यायाधीशों दोनों को प्रयास करना चाहिए. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने देशभर की अदालतों, तालुका, जिला स्तर से लेकर उच्च न्यायालयों को आदेश दिया कि वे समन, लिखित जवाब या बयान, मुकदमा तय करने सहित तत्काल कदम उठाएं. उन्होंने देशभर में हाई कोर्ट के जजों की एक कमेटी बनाने और पांच साल से पुराने मामलों की निगरानी करने का भी आदेश दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोग जल्द न्याय की उम्मीद लेकर कोर्ट आते हैं. हर क्षेत्र न्याय से जुड़ा है, देश का आर्थिक विकास भी मजबूत न्याय व्यवस्था पर निर्भर करता है.
सुप्रीम कोर्ट में उत्तराखंड के 43 साल के यशपाल जैन नाम के शख्स ने अपने एक मामले के जल्द निपटारे के लिए सुप्रीम कोर्ट से अपील की थी. सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों को छह महीने के भीतर मामलों का निपटारा करने का आदेश दिया, और देश भर की अदालतों में ऐसे लंबित मामलों के शीघ्र निपटारे के लिए 11 बिंदुओं वाला आदेश जारी किया है. नेशनल ज्यूडिशियल डेटा ग्रिड के आंकड़ों के मुताबिक, देशभर में इस समय पांच करोड़ मामले लंबित हैं. जिनमें से 8 फीसदी मामले महिलाओं द्वारा दर्ज कराए गए हैं. जिनकी संख्या 36.57 लाख है.
Advertisement