महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे बनाम एकनाथ शिंदे मामले में आज सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है. इस फैसले के बाद महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे सरकार पर छाया खतरों का बादल छंट गया है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने एकनाथ शिंदे समेत 16 विधायकों की अयोग्यता पर फैसला नहीं सुनाया और कहा कि इस मामले में और विचार करने की जरूरत है. इसके साथ ही कोर्ट ने नबाम राबिया केस का हवाला देते हुए इसे 7 जजों की बड़ी बेंच को विचार के लिए रेफर कर दिया है. इतना ही नहीं राज्यपाल के फैसले और भूमिका पर भी सवाल खड़ा किया है.
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सुप्रीम कोर्ट ने उद्धव ठाकरे को राहत देने से इनकार कर दिया, कोर्ट ने कहा कि उन्होंने फ्लोर टेस्ट का सामना नहीं किया था. सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक स्पीकर को अयोग्यता याचिकाओं पर उचित समय के भीतर फैसला करना चाहिए था. कोर्ट ने आगे कहा कि यथास्थिति बहाल नहीं की जा सकती क्योंकि उद्धव ठाकरे ने फ्लोर टेस्ट का सामना नहीं किया और अपना इस्तीफा दे दिया. अगर ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं दिया होता, तो उन्हें राहत दी जा सकती थी.
मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल के पास ऐसा कोई संचार नहीं था जिससे यह संकेत मिले कि असंतुष्ट विधायक सरकार से समर्थन वापस लेना चाहते हैं. राज्यपाल ने शिवसेना के विधायकों के एक गुट के प्रस्ताव पर भरोसा करके यह निष्कर्ष निकाला कि उद्धव ठाकरे अधिकांश विधायकों का समर्थन खो चुके हैं. सुप्रीम कोर्ट ने माना कि महाराष्ट्र के राज्यपाल का निर्णय भारत के संविधान के अनुसार नहीं था. इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि यह पार्टी का मामला था इसलिए राज्यपाल को उसमे दखलअंदाजी नहीं करनी चाहिए थी.
कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए आगे कहा कि आंतरिक पार्टी के विवादों को हल करने के लिए फ्लोर टेस्ट का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. न तो संविधान और न ही कानून राज्यपाल को राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश करने और अंतर-पार्टी या अंतर-पार्टी विवादों में भूमिका निभाने का अधिकार देता है. इसके अलावा गोगावाले (शिंदे समूह) को शिवसेना पार्टी के मुख्य सचेतक के रूप में नियुक्त करने का स्पीकर का फैसला अवैध था. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि स्पीकर को राजनीतिक दल द्वारा नियुक्त व्हिप को ही मान्यता देनी चाहिए थी.
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