पिछले चुनाव में सौराष्ट्र की 48 में से बीजेपी को केवल 19 सीटें मिली थीं, जिसकी वजह से कुल सीटों की संख्या दो अंकों में सिमट गई थी. इस बार ऐसी स्थिति को रोकने के लिए बीजेपी ने पूरी ताकत झोंक दी है. कांग्रेस राहुल, प्रियंका बिल्कुल तस्वीर में नहीं हैं, लेकिन कांग्रेस रोड शो जैसे बड़े-बड़े तमाशे के बजाय गांवों में अपना वोट बैंक मजबूत करने के लिए घर-घर प्रचार पर ध्यान दे रही है. आम आदमी पार्टी के रूप में तीसरा फैक्टर इस बार हर सीट पर नए समीकरण बना रही है. कुछ सीटों पर आप उम्मीदवार भाजपा के लिए दिक्कत पैदा कर रहे हैं तो कुछ सीटों पर कांग्रेस के वोट काट रहे हैं. अब जब पहले चरण के मतदान के लिए उल्टी गिनती शुरू हो गई है तब सौराष्ट्र के चार जिलों राजकोट, जामनगर, मोरबी, देवभूमि द्वारका के हालात को देखकर यहां बीजेपी की कोशिशें कामयाब होती नजर आ रही हैं.
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राजकोट जिला: 8 सीटें
2017 में: भाजपा – 06, कांग्रेस – 02
पिछले चुनाव में पाटीदार आंदोलन के गंभीर प्रभाव के बावजूद, बड़े पाटीदार समुदाय वाले राजकोट ने दृढ़ता से भाजपा का समर्थन किया था. बाद में कुंवरजी बावलिया को कांग्रेस से लाकर भाजपा ने एक सीट बढ़ा ली थी. इस बार भी राजकोट में बीजेपी का दबदबा बरकरार रहने के संकेत मिल रहे हैं.
राजकोट पूर्व: इस सीट से पूर्व मेयर और अहीर नेता उदय कानगड़ भाजपा के उम्मीदवार हैं. चूंकि पिछले चुनाव में तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय रूपाणी यहां चुनाव लड़ रहे थे, तब जो माहौल दिख रहा था वैसा उत्साह इस बार नहीं दिख रहा है. कुछ समय के लिए आम आदमी पार्टी में शामिल होने वाले मूल कांग्रेसी इंद्रनील राज्यगुरु यहां कड़ी चुनौती दे रहे हैं, लेकिन बीजेपी के लिए सीट गंवाने का कोई खतरा नहीं दिख रहा है.
राजकोट पश्चिम: भाजपा की डॉ. दर्शिता शाह को जीत के लिए वोटरों के बीच खास अपील की जरूरत नहीं लगती. इस बात की पूरी संभावना है कि ये दो मुद्दे संघ परिवार की पृष्ठभूमि और महिला डॉक्टर होने की वजह से उनको लोग अच्छी मार्जिन से जीत दिला देंगे.
राजकोट दक्षिण: खोडलधाम के ट्रस्टीशिप से इस्तीफा देकर बीजेपी प्रत्याशी बने उद्योगपति रमेश टिलाला को इस सीट से खास चिंता नहीं है.
राजकोट ग्रामीण: अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस सीट पर भाजपा की दिग्गज नेता भानुबेन बाबरिया के लिए चुनाव की राह खास मुश्किल नहीं होगी. वह अभियान के दौरान अपने पक्ष में माहौल बनाने में सक्षम मानी जाती है.
जसदन: यहां गुरु और शिष्य के बीच मुकाबला होगा. भाजपा में शामिल होने के बाद कैबिनेट मंत्री बने कुंवरजी अपना मंत्री पद खो दिया है, लेकिन वह फिर से चुनावी मैदान में उतरे हैं. उनके खिलाफ यहां कांग्रेस के भोलाभाई गोहिल हैं जो कभी कुंवरजी के विश्वासपात्र और निजी सहयोगी थे. गुरु के गढ़ में सेंध लगाने के लिए भोलाभाई जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं, इसलिए अगर कुंवरजी जीत भी जाते हैं, तो इस बात की पूरी संभावना है कि उनकी मार्जिन में कमी आएगी.
जेतपुर: दिग्गज नेता जयेश रादडिया के लिए यह चुनाव प्रतिष्ठा का प्रश्न माना जाता था, लेकिन मोदी की सभा के बाद उनके टिकट की गारंटी मिलने के बाद से रादडिया के चेहरे पर तनाव की लकीर लगातार कम होती जा रही है. रादडिया ने प्रचार अभियान में एक-एक गांव तक बड़ी बारीकी से संपर्क किया है. कोई आश्चर्य नहीं कि वे अब लीड पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं.
गोंडल: काफी चर्चा में रहने वाली सीट पर जोरदार खींचतान के बाद बीजेपी ने जयराज सिंह की पत्नी गीताबा जडेजा को अपना उम्मीदवार बनाया है. हालांकि यहां जातिगत समीकरण पाटीदार की ओर है, बावजूद इसके कांग्रेस ने यतीश देसाई और आप ने निमिशा खुंट को मैदान में उतारा है. यह दोनों प्रचार के दौरान कोई खास चुनौती पेश नहीं कर पा रहे हैं. लेकिन जयराज सिंह द्वारा भुनावा गांव में दिए गए उग्र भाषण के बाद अब अनिरुद्ध सिंह जडेजा ने भी खुलकर कांग्रेस प्रत्याशी का समर्थन किया है. नतीजतन, कांटे की टक्कर की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता.
धोराजी: पिछले चुनाव में कांग्रेस के ललित वसोया ने जिस सीट पर कब्जा किया था, उसे फिर से हासिल करने के लिए भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. लेकिन स्थानीय स्तर पर यह महसूस किया जा रहा है कि वसोया बीजेपी के महेंद्र पाडालिया से आगे हैं. वसोया का व्यापक जनसंपर्क और उनकी जनसभाओं में लोगों की उमड़ने वाली भीड़ से उम्मीद जताई जा रही है कि वसोया यहां से फिर कामयाब हो जाएंगे. इस सीट को वापस जीतने के लिए पाडालिया के साथ ही बीजेपी संगठन और वरिष्ठ नेताओं की फौज मैदान में है.
मोरबी जिला: 3 सीटें
2017 में: भाजपा – 00, कांग्रेस – 03
चूंकि मोरबी पिछले चुनाव में पाटीदार आंदोलन का केंद्र था, इसलिए बीजेपी को यहां की तीनों सीटों पर झटका लगा था. लेकिन इस बार चुनाव की घोषणा से चंद दिन पहले ही झूलता पुल गिरने की वजह से भाजपा को भारी नुकसान पहुंचा सकता है. लेकिन ऐसा लगता है कि चुनाव प्रचार में यह मुद्दा बिल्कुल गायब हो गया है.
मोरबी: पूल टूटने के बाद मसीहा बनाकर मच्छू नदी में लोगों की जान बचाने के लिए छलांग लगाने वाली कांति अमृतिया को बीजेपी ने प्रत्याशी बनाया है. कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए बृजेश मेरजा अमृतिया के जीत के रास्ते में रोड़ा नहीं पैदा कर पाएंगे. कांग्रेस ने जयंती पटेल और आप ने पंकज रनसारिया को चुनावी मैदान में उतारा है. यह तमाम शहरों से ज्यादा ग्रामीण इलाकों में प्रचार करते नजर आ रहे हैं.
टंकारा: पाटीदार आंदोलन से उभरे ललित कगथरा ने इस सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर जीत हासिल की थी. इस बार भी वह भाजपा के दुर्लभजी देथरिया के खिलाफ ग्रामीण इलाकों में अच्छा दबदबा हासिल कर रहे हैं. ऐसा लगता है कि आप के प्रत्याशी संजय भटासना यहां खास मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं. कुल मिलाकर ललित कगथरा अगर इसी तरीके से एक्टिव रहते हैं तो वह दूसरी बार विधायक बन सकते हैं.
वांकानेर: इस सीट पर मौजूदा कांग्रेस विधायक मोहम्मद पीरजादा के खिलाफ कोली समुदाय के युवा नेता विक्रम सोरानी और भाजपा के जीतू सोमानी मैदान में हैं. कोली और मुस्लिम बहुल निर्वाचन क्षेत्रों में आप और बीजेपी दोनों बराबर वोट काटती है तो पीरजादा के लिए दोबारा चुनाव जीतना मुश्किल नहीं होगा.
जामनगर जिला: कुल सीट 5
2017 में: भाजपा – 02, कांग्रेस – 03
पिछले चुनाव में, भाजपा जामनगर जिले की जामजोधपुर, कालावड़ और जामनगर ग्रामीण सीटों पर हार गई थी. लेकिन इस बार बीजेपी के लिए ज्यादा परेशानी नजर नहीं आ रही है. यहां जामजोधपुर को छोड़कर जिले में कहीं भी आम आदमी पार्टी की तस्वीर नहीं है. लिहाजा बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर में बीजेपी की जमीन खिसकती नजर आ रही है.
जामनगर उत्तर: कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए धर्मेंद्रसिंह जडेजा उर्फ हकुभा का टिकट काटकर इस बार भाजपा ने क्रिकेटर रवींद्र जडेजा की पत्नी रीवाबा को उम्मीदवार बनाया है, लेकिन हकुभा के असंतोष से चिंतित होने की जरूरत नहीं है. एक सेलिब्रिटी क्रिकेटर की पत्नी, एक शिक्षित महिला और एक क्षत्रिय के साथ सभी कारक रीवाबा की कांग्रेस के बिपेंद्र सिंह के खिलाफ लड़ाई को आसान बना सकते हैं. यहां बीजेपी के प्रतिबद्ध वोटर भी बड़ी संख्या में हैं. बिपेंद्रसिंह निश्चित रूप से किसी अन्य उम्मीदवार को टक्कर दे सकते थे. मौजूदा हालात को देखने के बाद भाजपा इस सीट को जीतने का दावा कर रही है.
जामनगर दक्षिण: यह सीट लंबे समय से भाजपा को समर्पित रही है. यहां मतदाता दिव्येश अकबरी के नाम या काम से ज्यादा कमल के निशान पर वोट कर रहे हैं तो कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार को कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है, लेकिन तीन दिन में कांग्रेस आप के उम्मीदवार नतीजों पर खास असर नहीं छोड़ पाएंगे.
जामनगर ग्रामीण: भाजपा प्रत्याशी के तौर पर राघवजी पटेल हर समस्या का समाधान करने में चतुर साबित होते हैं. उन्होंने अपने खिलाफ शुरू होने वाली नाराजगी और अन्य दावेदारों की नाराजगी को खारिज कर दिया है. कांग्रेस उम्मीदवार पिछले चुनाव में जामनगर उत्तर में पहले ही हार चुका है. इसलिए राघवजी को कोई विशेष परेशानी नहीं होगी.
जामजोधपुर: कांग्रेस के मौजूदा विधायक चिराग कालरिया और भाजपा के चिमन शापरिया एक बार फिर आमने-सामने हैं. कुल मिलाकर कालारिया के लिए माहौल सकारात्मक रहा था लेकिन आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार हेमंत खवा बहुत मजबूती से आगे बढ़ रहे हैं. उनके पिता हरदास खवा भी एक बड़ा नाम थे. खवा किसका वोट तोड़ रहे हैं, यह बताना मुश्किल है जबकि अहीर वोटबैंक ज्यादातर कांग्रेस समर्थक है. चूंकि भाजपा-कांग्रेस दोनों उम्मीदवार पुराने और पाटिदार हैं, इसलिए नया चेहरा और अहीर नेताओं के रूप में वह मैदान मार जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होगा.
कालावड़: अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट पर कांग्रेस के प्रवीण मुछड़िया का जनसंपर्क काफी मजबूत माना जा रहा है. अमितभाई की जनसभाओं के बाद भी भाजपा के मेघजी चावड़ा का आंतरिक असंतोष का सामना करना पड़ रहा है. पिछले तीन दिनों में यहां बीजेपी के शीर्ष नेताओं की वापसी होने वाली है. मेघजी चावड़ा तभी आशावादी बने रह सकते हैं जब यह अपेक्षित प्रभाव पैदा कर सकें.
देवभूमिक द्वारका जिला: कुल सीटें 02
2017 में: भाजपा – 01, कांग्रेस – 01
परंपरागत रूप से यह निर्वाचन क्षेत्र भाजपा और कांग्रेस दोनों को खुश रखता रहा है. लेकिन इस बार यहां दोनों सीटों पर कड़ा मुकाबला है. आप के मुख्यमंत्री पद के दावेदार इसुदान यहां मैदान में हैं, इसलिए पुरे गुजरात की नजर इस सीट पर टीकी हुई है.
खंभालिया: इस इलाके पर पकड़ रखने वाले विक्रम माडम वर्तमान विधायक हैं. उनके खिलाफ आम आदमी पार्टी के घोषित मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार इसुदन गढ़वी और कांग्रेस के मुलु बेरा हैं. अहीर समुदाय पर भाजपा, कांग्रेस के उम्मीदवारों की पकड़ है. जबकि नए चेहरे के तौर पर इसुदान को यहां प्रभावशाली माना जा रहा है. अहिर वोटों का बंटवारा होता है तो इसुदान सथवारा समाज पर आश्रित होते हैं. इसुदान और विक्रमभाई के बीच होने वाले मुकाबले में मुलु बेरा को सीधा फायदा हो सकता है.
द्वारका: भाजपा के पबुभा विरंभा मानेक आठवीं बार चुनाव लड़ रहे हैं. सात बार उनकी बढ़त पांच हजार के आसपास रही है. अहीर समुदाय इस बार पबुभा को हराने के लिए एक अभूतपूर्व तरीके से एकजुट होता दिख रहा है, क्योंकि पबुभा ने कथावाचक मोरारीबापू के साथ अपमानजनक व्यवहार किया था. उसके बाद वह माफी मांगने से भी इनकार कर दिया था. अगर आप के लखमन नकुम को सथवारा समुदाय का वोट मिल जाता है, तो पबुभा के लिए आठवीं बार जीतने और रिकॉर्ड बनाने के अपने सपने को साकार करना मुश्किल होगा.
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