विविधता को देश की ताकत बताते हुए संघ प्रमुख मोहन भागवत ने राजनीतिक दलों को सत्ता के लिए मर्यादा नहीं भूलने की सलाह दी है. संघ शिक्षा वर्ग के तीसरे वर्ष के समापन समारोह को संबोधित करते हुए आरएसएस प्रमुख भागवत ने कहा कि हमें इस बात को स्वीकार करना होगा कि हमारे पूर्वज यहां के ही थे, भले ही पूजा-पाठ का तरीका अलग है. विदेशी आक्रमणकारी हमारे पूर्वज नहीं थे.
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विदेशी आक्रमणकारियों के बारे में महत्वपूर्ण टिप्पणी
संघ अध्यक्ष ने कहा कि देश की पुरानी प्रतिष्ठा को बहाल करने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन राजनीतिक दलों को सत्ता के लिए हद पार करने का अपना रवैया छोड़ना होगा. विदेशी आक्रमण से पहले भी सांस्कृतिक विविधता हमारी संस्कृति का हिस्सा थी. जिससे यहूदियों, पारसियों और सभी सम्प्रदायों को यहां स्थान मिला. लेकिन अफसोस की बात है कि सैकड़ों वर्षों की गुलामी के बाद विदेशी आक्रमणकारी तो चले गए लेकिन उनके पहले की सांस्कृतिक विविधता को अपनाने की संस्कृति यहां वापस नहीं लौटी है.
इसके अलावा RSS प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि पूरी दुनिया में इस्लाम का आक्रमण हुआ, स्पेन से मंगोलिया तक छा गया. धीरे-धीरे वहां के लोग जागे, उन्होंने आक्रमणकारियों को परस्त किया, तो अपने कार्य क्षेत्र में इस्लाम सिकुड़ गया. सबने सब बदल दिया. अब विदेशी तो यहां से चले गए लेकिन इस्लाम की पूजा कहां सुरक्षित चलती है, यहीं सुरक्षित चलती है. कितने शतक हुए यह सह जीवन चल रहा है. इसको न पहचानते हुए आपस के भेदों को ही बरकरार रखने वाली नीति चलाना, ऐसा करेंगे तो कैसे होगा.
समारोह को संबोधित करते हुए उन्होंने आगे कहा कि जैसे गर्मी में वर्षा कि बौछारे सुखद लगती है वैसे ही स्वतंत्रता के 75 वर्ष बाद इस प्रकार कि सुखद भावनाओं का अनुभव हम जैसे कर रहे है, वैसे चिंतित करने वाला दृश्य भी हमें परिस्थिति मे मिल रहा है. इसी समय देश में कितने जगह कितने प्रकार के कलह मचे है, भाषा, पंथ, संप्रदायों, मिलने वाली सहुलियतों के लिये विवाद और केवल विवाद ही नहीं बल्कि इसका इस हद तक बढ़ना कि हम आपस में ही हिंसा करने लगे. अपने देश कि सीमाओं पर, अपनी स्वतंत्रता पर बुरी नजर रखने वाले शत्रू बैठे हैं उनको हम हमारा बल नहीं दिखा रहे, हम आपस में ही लड़ रहे हैं.
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