दिल्ली: लोकसभा चुनाव से ठीक पहले केंद्र की मोदी सरकार को समान नागरिक संहिता का मुद्दा उठाना अब भारी पड़ता दिख रहा है. विपक्ष के साथ ही साथ अब कई सहयोगियों ने इस मुद्दे को लेकर नाराजगी जता रहे हैं जिसके चलते भाजपा अकेली पड़ती जा रही है. इस बीच यूसीसी को लेकर केंद्र सरकार को एक और बड़ा झटका लगा है. एनडीए की सबसे पुरानी सहयोगी पार्टी शिरोमणि अकाली दल ने भी यूसीसी का विरोध किया है.
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20 जुलाई से शुरू होने वाले मानसून सत्र में यूसीसी को संसद में पेश किए जाने की संभावना है, लेकिन यूसीसी की आवश्यकता पर अब बहस शुरू हो गई है. कई पार्टियां यूसीसी के साथ हैं तो कई इसके खिलाफ हैं. अकाली दल ने कहा कि राष्ट्रव्यापी अंतर-धार्मिक सहमति के बिना यूसीसी लागू करना गलत है. इससे अल्पसंख्यकों में भय का माहौल बनेगा. साथ ही यह संविधान की भावना का भी उल्लंघन होगा.
भारत विविधता में एकता का प्रतीक – बादल
शिरोमणि अकाली दल ने कहा कि 22वें विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता का प्रस्ताव दिया था जो देश के हित में नहीं है. आयोग के सदस्य को लिखे पत्र में पार्टी अध्यक्ष सुखबीर बादल ने लिखा कि एकरूपता को एकता से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए. भारत विविधता में एकता का प्रतीक है, एकरूपता का नहीं, केवल एक सच्चा संघीय ढांचा ही हमारी समस्याओं का समाधान कर सकता है और भारत को दुनिया में एक महाशक्ति बना सकता है.
शांति और सांप्रदायिक सद्भावना जरूरी
बादल ने मोदी सरकार से यूसीसी के विचार को आगे नहीं बढ़ाने का आग्रह करते हुए केंद्र से इस मुद्दे पर कोई भी निर्णय लेने से पहले देशभक्त सिख समुदाय की भावनाओं का सम्मान करने का आग्रह किया. यह महत्वपूर्ण है क्योंकि संवेदनशील सीमावर्ती राज्य पंजाब में शांति और सांप्रदायिक सद्भाव हमेशा सर्वोच्च राष्ट्रीय प्राथमिकता बनी रहनी चाहिए. एएसडी अध्यक्ष ने आयोग को यह भी बताया कि पार्टी ने राज्य और बाहर विभिन्न हितधारकों के साथ चर्चा की है.
यूसीसी से अल्पसंख्यकों की स्वतंत्रता प्रभावित होगी
सुखबीर सिंह बादल ने आगे कहा कि यूसीसी लागू होने पर विभिन्न जातियों, पंथों और धर्मों के अल्पसंख्यक समुदायों की स्वतंत्रता निश्चित रूप से प्रभावित होगी. पत्र में यह भी कहा गया है कि प्रस्तावित यूसीसी का कोई मसौदा तैयार नहीं किया गया है और विभिन्न धर्मों के मौजूदा व्यक्तिगत कानूनों में प्रस्तावित संशोधनों के संबंध में विधि आयोग द्वारा जारी किए गए नोटिसों को प्रसारित नहीं किया गया है. इसलिए इस मुद्दे पर कोई ठोस सुझाव देना असंभव है. सुखबीर बादल ने यह भी कहा कि प्रस्तावित यूसीसी उन सामाजिक जनजातियों को भी प्रभावित करेगा जिनके अपने अलग रीति-रिवाज, संस्कृति और अलग-अलग व्यक्तिगत कानून हैं.
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