दिल्ली: बिहार के विकास आयुक्त विवेक सिंह ने जाति आधारित जनगणना का डेटा जारी कर दिया है. पांच राज्यों के आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनाव से पहले जारी की गई इस रिपोर्ट में चुनावी एजेंडा भी तय किया गया है. विपक्षी दलों की गठबंधन इंडिया लगातार केंद्र से जाति आधारित जनगणना कराने की मांग कर रही है. बिहार सरकार की इस रिपोर्ट के बाद सामाजिक न्याय का मुद्दा जोर पकड़ सकता है.
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कांग्रेस ने की केंद्र से जाति आधारित जनगणना की मांग
कांग्रेस के मुताबिक, जितनी जनसंख्या, उतना अधिकार के साथ जाति आधारित जनगणना का मुद्दा जोर-शोर से उठाया जा रहा है. पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट किया कि बिहार की जाति जनगणना से पता चलता है कि ओबीसी, एससी और एसटी की आबादी 84 प्रतिशत है. लेकिन केंद्र में 90 सचिवों में से केवल तीन ही ओबीसी हैं. जो भारत का मात्र 5% बजट संभालते हैं. इसलिए, भारत के जातिगत आंकड़े जानना ज़रूरी है. जितनी आबादी, उतना हक़ – ये हमारा प्रण है.
पांच राज्यों में चुनाव का मसौदा तैयार किया जा सकता है
पांच राज्यों के चुनाव में कांग्रेस इसे चुनावी मुद्दा बना रही है. मध्य प्रदेश में पार्टी ने वादा किया है कि राज्य में सरकार बनने पर जाति आधारित जनगणना कराई जाएगी. पार्टी अन्य चुनावी राज्यों में भी ऐसे ही वादे कर रही है. कर्नाटक में सरकार बनाने के बाद मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने पिछड़ा वर्ग आयोग की 2015 की जाति-वार सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया है, जो जाति-आधारित जनगणना के लिए कांग्रेस की प्रतिबद्धता का संकेत है.
नए गठबंधन के लिए जाति आधारित जनगणना अहमियत
जाति आधारित जनगणना I.N.D.I.A. गठबंधन का अहम चुनावी मुद्दा है. 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में ओबीसी मतदाताओं के एक बड़े वर्ग ने बीजेपी का समर्थन किया था. सीएसडीएस की रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 में प्रमुख ओबीसी जाति के 40 फीसदी मतदाताओं ने बीजेपी को वोट दिया था. जबकि कमजोर ओबीसी जातियों के 48 फीसदी वोट बीजेपी को मिले हैं. ऐसे में I.N.D.I.A जाति आधारित गणना के मुद्दे पर ओबीसी का वोट बैंक साधने की कोशिशों में जुट गई है.
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