सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एलोपैथी और आयुर्वेद डॉक्टरों के वेतन मुद्दे पर बड़ी टिप्पणी की थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आयुर्वेदिक डॉक्टरों को एलोपैथिक डॉक्टरों के समान वेतन और सुविधाओं का हकदार नहीं माना जा सकता है.
Advertisement
Advertisement
इस टिप्पणी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में गुजरात हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ राज्य सरकार की अपील को स्वीकार कर लिया है. गुजरात हाईकोर्ट ने कहा था कि राज्य सरकार द्वारा नियुक्त आयुर्वेदिक डॉक्टर सरकारी एलोपैथी डॉक्टरों के समान वेतन और अन्य सुविधाओं के हकदार हैं. सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि हम यह बिल्कुल नहीं कह रहे हैं कि आयुर्वेदिक डॉक्टरों का काम कम महत्वपूर्ण है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निश्चित रूप से दोनों श्रेणी के डॉक्टर समान वेतन के हकदार होने के लिए समान कार्य नहीं कर रहे हैं. कोर्ट ने कहा कि इमरजेंसी ड्यूटी और ट्रॉमा केयर में जो एलोपैथिक डॉक्टर दक्ष होते हैं, आयुर्वेदिक डॉक्टर वह नहीं कर सकते, पीठ ने कहा कि जटिल सर्जरी में आयुर्वेद डॉक्टरों की मदद करना संभव नहीं है लेकिन एमबीबीएस डॉक्टर यह काम कर सकते हैं. कोर्ट ने आगे कहा कि पोस्टमार्टम में आयुर्वेद के डॉक्टरों की जरूरत नहीं है. जहां एमबीबीएस डॉक्टर शहरों और कस्बों के सामान्य अस्पतालों की ओपीडी में सैकड़ों मरीजों को देखते हैं, वहीं आयुर्वेद डॉक्टरों के मामले में ऐसा नहीं है.
गुजरात के सरकारी आयुर्वेदिक डॉक्टरों ने मांग की थी कि 1990 में केंद्र सरकार द्वारा गठित टीकू आयोग की सिफारिशें उन पर भी लागू की जाएं. गुजरात उच्च न्यायालय ने 2012 में उनके इस मांग को बरकरार रखा था. इसके खिलाफ गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी. अब सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट के इस फैसले को रद्द कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में बार-बार दोहराया है कि आयुर्वेद चिकित्सक की प्रैक्टिस भी बहुत महत्वपूर्ण है और इसका एक गौरवशाली इतिहास है.
UP: पूर्व मंत्री ने 59 साल की उम्र में पास की 12वीं की परीक्षा, कहा- पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती
Advertisement