गुजरात के सुल्तान मुहम्मद बेगड़ा के शासन काल में सरकारी अभिलेखों में मातबर नामक तहसील का उल्लेख मिले तो आश्चर्य करने की आवश्यकता नहीं है. यह आज का खेड़ा जिले का मातर तालुका है. चरोतर का प्रवेश द्वार होने के कारण, मातर को मुस्लिम शासकों और गायकवाड़ द्वारा मातबर के नाम से जाना जाता था क्योंकि यह राजस्व और कृषि उपज में बहुत समृद्ध था. आज उसमें से ब निकल गया और सिर्फ मातर रह गया है. एक तरफ अहमदाबाद और दूसरी तरफ नदियाद, आणंद के बीच स्थित है मातर के पास अब मातबार के नाम से जीआईडीसी विकसित हो गया है. यहां के अधिकांश लोग कृषि और कृषि श्रम में लगे हुए हैं. तालुका मुख्यालय के रूप मात्र 18-20 हजार की आबादी वाले मातर विधानसभा क्षेत्र में 2,30,673 मतदाता पंजीकृत हैं.
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मिजाज
1998 तक कांग्रेस उम्मीदवार को जीत दिलाने वाला यह निर्वाचन क्षेत्र उसके बाद भाजपा समर्थित हो गया है. खेड़ा जिला के दिग्गज नेता देवुसिंह चौहान ने कम उम्र में पहला चुनाव लड़ा और यहां कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में अनुभवी नेता नरहरि अमीन को हरा दिया था. देवुसिंह का इस निर्वाचन क्षेत्र पर व्यापक प्रभाव रहा है. मातर सीट से दो बार चुने जाने के बाद देवुसिंह लोकसभा चुनाव में दिनशा पटेल को हराकर दूसरी बार ज्वाइट किलर साबित हुए. अब केंद्र में राज्य स्तरीय मंत्री बने देवुसिंह की मातर पर मजबूत पकड़ है. वे उम्मीदवारों को चुनने और जीतने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
रिकॉर्ड बुक
साल विजेता पार्टी मार्जिन
1998 धीरूभाई चावड़ा कांग्रेस 1,432
2002 राकेश राव भाजपा 10,018
2007 देवुसिंह चौहान भाजपा 7,799
2012 देवुसिंह चौहान भाजपा 11,640
2017 केसरीसिंह सोलंकी भाजपा 2,406
कास्ट फैब्रिक
लगभग 41% आबादी वाले क्षत्रिय समुदाय का यहां हमेशा से ही महत्व रहा है. दोनों पार्टियां ज्यादातर क्षत्रिय उम्मीदवारों को टिकट देना पसंद करती हैं. इसके अलावा, 20% ओबीसी, 16% मुस्लिम, 12% पाटीदार और 5% दलित भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं. अतीत में नरहरि अमीन ने भी पाटीदार, मुस्लिम, दलित जैसे समीकरण बनाकर यहां जीतने की कोशिश की थी. हालांकि, अब क्षत्रियों और पाटीदारों का वोट बैंक भाजपा के प्रति अडिग बना हुआ है.
समस्या
कृषि और खेतिहर मजदूरों पर निर्भर होने के अलावा यहां रोजगार के और कोई विकल्प नहीं हैं. जीआईडीसी की बहुत अच्छी प्रतिष्ठा है लेकिन उच्च शिक्षित युवाओं को नौकरी के लिए अहमदाबाद पर निर्भर रहना पड़ता है. मातर शहर के विकास के लिए तैयार की गई योजनाओं पर अब तक अमल नहीं हो सका है. आणंद, नडियाद के नजदीक होने के कारण उच्च शिक्षा संस्थान भी यहां खास नहीं हैं.
मौजूदा विधायक का रिपोर्ट कार्ड
चूंकि केसरीसिंह सोलंकी का पहला कार्यकाल यहां काफी विवादास्पद रहा था, इसलिए इस बात की पूरी संभावना है कि बीजेपी उन्हें इस बार नहीं दोहराएगी. इन परिस्थितियों में लगभग पंद्रह दावेदार निरीक्षकों के सामने दावेदारी पेश की है. जिसमें जनकसिंह झाला, तालुका भाजपा अध्यक्ष चंद्रेश पटेल मुख्य माने जा रहे हैं. गोधरा के पुलिस इंस्पेक्टर राजेश मुंडवा ने भी इस सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी दिखाकर सबको चौंका दिया है.
प्रतियोगी कौन?
कांग्रेस शायद ऐसे उम्मीदवार को टिकट देगी जो इस सीट पर पाटीदार, मुस्लिम, दलित समीकरण को संतुलित कर सके. जब निरीक्षक सेंस लेने आए तो 11 दावेदारों ने अपनी दावेदारी पेश की है.
तीसरा कारक
माही सरपंच के रूप में क्षेत्र में काफी लोकप्रिय महिपत सिंह चौहान को मैदान में उतारकर आम आदमी पार्टी ने यहां मास्टरस्ट्रोक लगाने की कोशिश की है. युवा और कुशल छवि वाले महिपत सिंह ने स्थानीय स्तर पर तेजी से लोकप्रियता हासिल की है. गरीब, बेसहारा बच्चों के लिए ‘शिक्षण कल्याण संकुल’ जैसी योजनाओं की सफलता पूरे देश में नोट की गई है. उनकी उम्मीदवारी से भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए परेशानी पैदा कर सकती है. इसके अलावा महिपत सिंह मातर के अलावा खंभात से भी चुनाव लड़ने को तैयार हैं.
#बैठकपुराण खंभात: चतुष्कोणीय मुकाबला होने पर कांग्रेस को हारने का डर
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