मध्य गुजरात की सीमा समाप्त होते ही दक्षिण गुजरात शुरू होता है उसके बॉर्डर पर नर्मदा जिले की नांदोद (राजपीपला) सीट, अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित है और चुनाव आयोग द्वारा इसे 148वां स्थान दिया गया है. नांदोद शब्द मूल रूप से नर्मदोद (जिसका अर्थ है नर्मदा की शुरुआत) से लिया गया माना जाता है. राजपीपला नांदोद तालुका और नर्मदा जिले का मुख्यालय है. भावनगर के गोहिल वंश की एक शाखा यहां पहुंची और नर्मदा में सिंहासन की स्थापना की. आज भी राजपिपला गोहिल राजवंश के राजघरानों द्वारा निर्मित कलात्मक महलों के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें वाडिया पैलेस भी शामिल है. प्राकृतिक सुंदरता वाला यह क्षेत्र गुजराती और हिंदी फिल्मों की शूटिंग के लिए बहुत लोकप्रिय है. स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के बाद यहां पर्यटन को भारी बढ़ावा मिलने की उम्मीद है.
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मिजाज
राजपीपला को कभी नर्मदा नदी के साथ अपनी प्राचीन सीमा के कारण शेष गुजरात को जोड़ने वाला पुल माना जाता था. यह व्यापक भावना है कि घने जंगल, समृद्ध वन्य जीवन और खनिज संसाधनों वाले क्षेत्र का विकास उस तरह नहीं हुआ है जैसा आजादी के बाद होना चाहिए था. यहां का राजनीतिक नजरिया लगातार बदल रहा है. गुजरात राज्य की स्थापना के बाद तीस साल तक कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाले इस सीट पर अब भाजपा ने भी पैर पसार लिया है. बावजूद इसके यह नहीं कहा जा सकता कि यहां किसी एक पार्टी का दबदबा है. इस बैठक में राजपिपला सहित संपूर्ण नांदोद तालुका, तिलकवाड़ा और गरुड़ेश्वर तालुका भी शामिल हैं. यहां जनजातियों के उपप्रकार बहुत भिन्न हैं. यहां जाति, उप-जाति समीकरण उतनी ही जटिल हैं जितना कि आदिवासी संस्कृति,
रिकॉर्ड बुक
साल विजेता पार्टी मार्जिन
1998 प्रेम सिंह वसावा कांग्रेस 1236
2002 हर्षदभाई वसावा भाजपा 18304
2007 हर्षदभाई वसावा भाजपा 631
2012 शब्दशरण तडवी भाजपा 15727
2017 प्रेम सिंह वसावा कांग्रेस 6329
कास्ट फैब्रिक
यहां आदिवासी मतदाताओं की संख्या सवा लाख से अधिक और डेढ़ लाख से कम होने का अनुमान है. हालांकि, तडवी, वसावा, भील जैसे उप-प्रकार हैं और उनके बीच की आंतरिक राजनीति बहुत मजबूत है. प्रत्येक राजनीतिक दल के लिए किसी उम्मीदवार के बारे में निर्णय लेने से पहले इन जटिल आंतरिक समीकरणों को समझना अनिवार्य है. तडवी मतदाता सबसे अधिक संख्या में और प्रभावशाली हैं. इसके बाद वसावा उपजाति आती है. इसके अलावा, पाटीदार और ब्राह्मण, बनिया, क्षत्रिय मतदाताओं की संयुक्त संख्या 32,000 है. मुस्लिम और दलित मतदाता क्रमश: 15 और 18 हजार के करीब हैं. हालांकि यह तय है कि आदिवासियों के अलावा कोई अन्य जाति समुदाय का उम्मीदवार इस सीट से नहीं जीतेगा. जाति समीकरण के अलावा, छोटूभाई वसावा के जमीनी पकड़ को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. छोटूभाई वसावा की भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) का क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रभाव है. छोटूभाई का पड़ोस की डेडियापाडा और झगड़िया सीटों पर कब्जा है. पिछले चुनाव में उन्होंने पीडी वसावा के खिलाफ उम्मीदवार उतारने से परहेज कर उनकी जीत आसान बना दी थी. इस बार भी ऐसा ही होगा यह नहीं कहा जा सकता है.
समस्या
स्थानीय लोगों की शिकायत है कि यह क्षेत्र मुख्यधारा के विकास से पीछे रह गया है. बड़े उद्योगों के न होने और सख्त पर्यावरण नियमों के कारण स्थानीय स्तर पर सरकार के साथ अक्सर झड़पें होती रहती हैं. राजपीपला और आसपास के गांवों के बीच सड़क या परिवहन सुविधा भी यहां मानक के अनुरूप नहीं है. स्टैच्यू ऑफ यूनिटी प्रोजेक्ट के बाद इको सेंसिटिव जोन घोषित करने के बाद खुद बीजेपी सांसद मनसुख वसावा को सरकार की आलोचना करनी पड़ी थी. एक मजबूत भावना है कि सरकार जल, जमीन और जंगल के आदिवासी अधिकारों का अतिक्रमण करना चाहती है.
मौजूदा विधायक का रिपोर्ट कार्ड
प्रेम सिंह वसावा क्षेत्र के पुराने जोगी हैं और स्थानीय स्तर पर उनकी मजबूत पकड़ है. वह सात बार चुनाव लड़कर चार बार विधायक बनने में सफल रहे हैं. तडवी समुदाय के साथ भी वह संतुलन बनाना जानते हैं. 2017 में वह पाटीदारों के साथ मनमुटाव को दूर कर चुके हैं. चूंकि पाटीदार को कांग्रेस ने जिलाध्यक्ष नहीं बनाया है. जिसके बाद ऐसी संभावना जताई जा रही है कि इस बार पाटीदार समुदाय उसके खिलाफ जा सकता है. माना जा रहा है कि पीडी वसावा इस बार भी कांग्रेस के उम्मीदवार होंगे. जिला और तालुका पंचायतों में कांग्रेस का दबदबा प्लस प्वाइंट होगा. लेकिन जीत सुनिश्चित करने के लिए कांग्रेस को छोटूभाई से बातचीत करनी होगी.
प्रतियोगी कौन?
कांग्रेस से प्रेमसिंह उर्फ पीडी वसावा लगभग निर्विरोध हैं, भाजपा के पुराने जोगी शब्दशरण तडवी फिर चुनाव लड़ सकते हैं. अगर बीजेपी शब्दशरण को हारने वाले उम्मीदवार के रूप में खारिज करती है, तो बीजेपी को ऐसे उम्मीदवार की तलाश करनी होगी जो तडवी, भील संयोजन के अलावा पाटीदार समुदाय को एक साथ रख सके. पिछले चुनाव में पाटीदार आरक्षण आंदोलन के प्रभाव के चलते स्थानीय पाटीदार मतदाता भाजपा के खिलाफ थे, जो इस बार भाजपा के साथ है यह भाजपा का एक प्लस पॉइंट है.
तीसरा कारक
आम आदमी पार्टी ने आदिवासी आंदोलन के जरिए इस इलाके में अच्छी पकड़ बना ली है. छोटू वसावा के साथ गठबंधन टूट गया है. आम आदमी पार्टी ने इस सीट से डॉ. प्रफुल्ल वसावा को प्रत्याशी घोषित कर चुकी है. वह स्थानिक नहीं होने की वजह से उनके खिलाफ आम आदमी पार्टी के जिला संगठन ने मोर्चा खोलकर पार्टी से उम्मीदवार को बदलने की मांग की है. कुल मिलाकर आम आदमी पार्टी यहां बीजेपी या कांग्रेस की बढ़त को कम करने के अलावा नतीजों में कुछ खास बदलाव नहीं कर पाएगी.
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