तालाला को केसर आम, केसरी बाघ और गिर के जंगल की गहरी संस्कृति के लिए जाना जाता है. जूनागढ़ से अलग हुए गिर सोमनाथ जिला सामान्य श्रेणी की सीट है. जिला गिर सोमनाथ स्वयं लोकसभा क्षेत्र के जूनागढ़ में शामिल है. तालाला निर्वाचन क्षेत्र में तालाला शहर, तालुक के अलावा सूत्रपाड़ा और मेंदरडा तालुका का एक गांव शामिल है. इस सीट पर कुल 2,31,585 मतदाता पंजीकृत हैं. तालाला में जलवायु परिवर्तन का केसर आम के उत्पादन पर बहुत गंभीर प्रभाव पड़ता है. तौकते चक्रवाती तूफान के चलते यहां आमों को भारी नुकसान हुआ था, इसलिए इस साल पूरे गुजरात को कम या बहुत महंगे आम मिले. इसी तरह तालाला का राजनीतिक माहौल भी काफी अहम माना जाता है.
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मिजाज
तालाला की विशेषता, जो न केवल गुजरात या भारत में, बल्कि समुद्र के पार भी गिर के केसर के आमों के लिए प्रसिद्ध है, यहां की मिट्टी जितनी उपजाऊ है उतनी ही यहां की राजनीतिक मिजाज भी अनोखी है. यहां मतदाताओं ने नो रिपीट थ्योरी को हमेशा के लिए लागू कर दिया है. पार्टी भले ही वही बनी रहे, लेकिन स्थानीय मतदाता हर चुनाव में एक नए उम्मीदवार को मौका दे रहे हैं. नतीजा यह रहा कि यह कोई पार्टी या कोई उम्मीदवार का यह कभी गढ़ नहीं बना. इस सीट पर बीजेपी भी काफी आक्रामक है जिस पर ज्यादातर कांग्रेस का कब्जा रहा है. साथ ही किसी प्रत्याशी को कम अंतर से जीताना भी यहां की विशेषता है. अपवादों को छोड़कर यहां जीतने वाले उम्मीदवार का मार्जिन कुछ खास नहीं है. हालांकि पिछले चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार ने 31,730 वोटों की भारी बढ़त हासिल कर सबको चौंका दिया था.
रिकॉर्ड बुक
साल विजेता पार्टी मार्जिन
1998 जशुभाई बारड कांग्रेस 19362
2002 गोविंदभाई परमार भाजपा 626
2007 भगवानभाई बारड कांग्रेस 5632
2012 जशुभाई बारड कांग्रेस 1478
2017 भगवानभाई बारड कांग्रेस 31730
कास्ट फैब्रिक
तालाला एक गिर क्षेत्र है और इसमें अहिर और कारडिया समुदायों का भारी वर्चस्व है. चूंकि दोनों समाज पिछले कुछ वर्षों से राजनीतिक मामलों में बहुत जागरूक हो गए हैं, इसीलिए तालाला न केवल राजनीतिक बल्कि सामाजिक और धार्मिक गतिविधियों का भी केंद्र बन रहा है. इसके अलावा पाटीदार, दलित, कोली समुदायों की भी अच्छी खासी संख्या है. अहिर और कारडिया समाज के उम्मीदवार को भी जीतने के लिए इन समीकरणों को संतुलित करना होगा. 1975 के बाद दो चुनावों को छोड़कर यहां केवल अहिर या कारडिया समाज के उम्मीदवार ही विजयी हुए हैं. जातीय प्रभुत्व का यह प्रभाव नगर पालिका और पंचायतों के चुनावों में भी देखने को मिलता है.
समस्या
समग्र रूप से सौराष्ट्र की तरह, तालाला में पेयजल और कृषि के लिए सिंचाई की सबसे विकट समस्या है. शिकायतें व्यापक हैं कि तौकते चक्रवाती तूफान में हुए भारी नुकसान के लिए राज्य सरकार द्वारा घोषित राहत अपर्याप्त है. गैर-कृषि रोजगार का पूर्ण अभाव है. जीएचसीएल जैसी बड़ी कंपनी को छोड़कर स्थानीय स्तर पर कोई बड़ा उद्योग नहीं लगा है.
मौजूदा विधायक का रिपोर्ट कार्ड
पिछले चुनाव में अहिर जाति के भगवानभाई बारड ने इस सीट से रिकॉर्ड तोड़ अंतर से जीत हासिल की थी. तालाला की ख़ासियत के विपरीत, उन्हें लगभग 59% वोट मिले थे. उनका चुनाव रद्द होने के बाद, वह बड़ी कानूनी लड़ाई लड़कर उपचुनाव से बचने में सफल रहे. उनके समर्थन में आयोजित अहिर समाज के सम्मेलनों ने भी उनके पक्ष में सहानुभूति का माहौल बना दिया है. इस बात की पूरी संभावना है कि अगले चुनाव में भगवान भाई को इसका फायदा मिलेगा. इस सीट पर अच्छी पकड़ रखने वाले पूर्व विधायक जशुभाई बारड के वह छोटे भाई हैं, इससे भी उनको फायदा मिलेगा. हालांकि तालाला और सूत्रपाड़ा नगर निगम और पंचायत चुनाव में बीजेपी की आंधी इस कदर लौट आई है कि कांग्रेस के ज्यादातर आम के पेड़ उखड़ गए है. कांग्रेस विधानसभा चुनाव तभी जीत सकती है जब इन गिरे हुए आम के पेड़ों को फिर से खड़ा किया जाए.
प्रतियोगी कौन?
इस सीट पर बीजेपी की ओर से मनोनीत होने के दावेदारों में कई नाम हैं. इनमें पूर्व सांसद और विवादास्पद नेता दीनू बोघा से लेकर गोविंदभाई परमार तक शामिल हैं, जो पिछला चुनाव हार गए थे. इसके अलावा अगर बीजेपी बिल्कुल नए नामों के बारे में सोचती है तो कोली समुदाय के नेता राजाभाई चारिया का नाम भी सबसे आगे माना जाता है. हालांकि, स्थानीय जाति समीकरण को देखते हुए, इस बात की अधिक संभावना है कि भाजपा या तो अहिर या फिर कारडिया समुदाय के किसी नेता को चुनावी मैदान में उतार सकती है. इस सीट पर बीजेपी के लिए बगावत के खतरे से इंकार नहीं किया जा सकता है.
तीसरा कारक
यहां किसी भी प्रकार का कोई तीसरा कारक नहीं है. ऐसे में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधी लड़ाई तय है. हालांकि, दोनों प्रमुख दलों के लिए बगावत का खतरा महत्वपूर्ण बना हुआ है. अगर कांग्रेस के भगवानभाई बारड़ अपने पक्ष में मजबूत माहौल बना सकते हैं, तो वे अपने प्रतिद्वंद्वियों को साथ ले जाएंगे, लेकिन भाजपा में विद्रोह के खतरे से बचा नहीं जा सकता है. जब तक बीजेपी यहां ऐसे नाम का चयन करे जो सबको साथ ला सके. फिलहाल ऐसा ही एक नाम दीनू बोघा सोलंकी लगता है. लेकिन उनके विवादास्पद अतीत को देखते हुए यह संदेहास्पद है कि क्या भाजपा उन्हें फिर से मैदान में उतारेगी.
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