दिल्ली: भारत के बहुप्रतीक्षित मिशन चंद्रयान-3 की चौथी कक्षा परिवर्तन प्रक्रिया (अर्थ बाउंड ऑर्बिट मैन्युवर) गुरुवार को सफलतापूर्वक पूरी हो गई. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने कहा कि चंद्रयान-3 अपने मिशन पर सफलतापूर्वक आगे बढ़ रहा है. अब अगली फायरिंग 25 जुलाई को दोपहर 2 से 3 बजे के बीच करने की योजना है.
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इससे पहले 15 जुलाई को चंद्रयान-3 सफलतापूर्वक पृथ्वी की पहली कक्षा में प्रवेश कर गया था. उसके बाद, चंद्रयान ने 17 जुलाई को पृथ्वी की दूसरी कक्षा और 18 जुलाई को पृथ्वी की तीसरी कक्षा में सफलतापूर्वक प्रवेश किया था. चंद्रयान 3 तब पृथ्वी से 51400 किमी x 228 किमी की दूरी पर पृथ्वी की कक्षा में था.
कब लॉन्च किया गया था?
14 जुलाई को दोपहर 2:35 बजे श्रीहरिकोटा केंद्र से चंद्रयान-3 को सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया था. योजना के अनुसार अगर सब कुछ ठीक रहा तो 23 या 24 अगस्त को चंद्रमा पर चंद्रयान लैंड करेगा. इस मिशन को कार्ड साइड ऑफ मून के तौर पर पहचाने जाने वाले चांद के भाग में भेजा जा रहा है. यह भाग पृथ्वी के सामने नहीं आता है इसलिए इसे कार्ड साइड ऑफ मून भी कहा जाता है.
क्यों खास है चंद्रयान-3 की यात्रा?
मिशन फिलहाल चंद्रमा की अपनी यात्रा पर है, जो बहुत खास है. इससे पहले चंद्रयान-3 को इसरो के ‘बाहुबली’ रॉकेट LVM3 से लॉन्च किया गया था. वास्तव में, पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से बचने के लिए बूस्टर या शक्तिशाली रॉकेट यान के साथ-साथ उड़ते हैं. यदि आप सीधे चंद्रमा पर जाना चाहते हैं, तो आपको एक बड़े और अधिक शक्तिशाली रॉकेट की आवश्यकता होगी. इसमें अधिक ईंधन की भी आवश्यकता होती है, जिसका सीधा असर प्रोजेक्ट बजट पर पड़ता है. यानी अगर हम सीधे पृथ्वी से चंद्रमा की दूरी तय करेंगे तो हमें ज्यादा खर्च करना होगा. नासा भी ऐसा ही करता है. लेकिन इसरो का चंद्र मिशन सस्ता है क्योंकि वह चंद्रयान को सीधे चंद्रमा पर नहीं भेजता है.
हमारे मिशन में इतना समय क्यों लग रहा है?
पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की दूरी केवल चार दिन है, एक निश्चित दूरी तय करने के बाद चंद्रयान को आगे की यात्रा अकेले ही पूरी करनी होती है. जंबो रॉकेट के इस्तेमाल से चीन और रूस जैसे देशों के मिशन दो से चार दिन में पहुंच जाते थे. चीन और अमेरिका इस मिशन पर 1000 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च करते हैं. लेकिन इसरो के रॉकेट 500-600 करोड़ में लॉन्च होते हैं. दरअसल, इसरो के पास इतना शक्तिशाली कोई रॉकेट नहीं है जो अंतरिक्ष यान को सीधे चंद्रमा की कक्षा में ले जा सके.
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