अहमदाबाद: गुजरात उच्च न्यायालय ने मोरबी पुल मरम्मत का ठेका देने के तरीके की आलोचना की है. हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अरविंद कुमार ने सुनवाई के दौरान राज्य के मुख्य सचिव से पूछा कि सार्वजनिक रूप से पुल की मरम्मत का टेंडर क्यों नहीं जारी किया गया? बोली क्यों नहीं लगाई गई? कोर्ट ने कहा, इतने अहम काम का समझौता महज डेढ़ पेज में कैसे पूरा हो सकता है? क्या बिना टेंडर के अजंता कंपनी को राज्य की उदारता दी गई थी?
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इस त्रासदी पर कोर्ट ने खुद छह विभागों से जवाब मांगा था. चीफ जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस आशुतोष जे शास्त्री इस मामले की सुनवाई कर रहे हैं. गौरतलब है कि अजंता ब्रांड की घड़ियों के लिए मशहूर ओरेवा ग्रुप को मोरबी नगर पालिका ने 15 साल का ठेका दिया था.
मृतक के परिजनों को नौकरी को लेकर सवाल
पीठ ने राज्य सरकार से यह भी जानना चाहा कि क्या उन लोगों के परिवार के सदस्य, जो अपने परिवार में एकमात्र कमाने वाले थे, लेकिन दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई, को समर्थन के रूप में रोजगार दिया जा सकता है. राज्य मानवाधिकार आयोग के वकील ने अदालत को बताया कि यह सत्यापित किया जा रहा है कि संबंधित परिवारों को मुआवजा दिया गया है या नहीं.
आगे की सुनवाई 24 नवंबर को होगी
मामले की आगे की सुनवाई 24 नवंबर को हाईकोर्ट में होगी. पीठ ने पूछा कि पहला समझौता समाप्त होने के बाद किस आधार पर ठेकेदार को तीन साल तक पुल के संचालन की अनुमति दी गई? कोर्ट ने कहा कि दो हफ्ते बाद होने वाली अगली सुनवाई के दौरान हलफनामे में इन सवालों के जवाब दिए जाएं.
गौरतलब है कि 30 अक्टूबर को गुजरात के मोरबी में मच्छू नदी पर ब्रिटिश औपनिवेशिक काल का पुल गिरने से 130 से अधिक लोगों की जान चली गई थी. पुलिस ने 31 अक्टूबर को नौ लोगों को गिरफ्तार किया, जिनमें ओरेवा समूह के चार लोग शामिल हैं, जो मोरबी पुल का प्रबंधन करती है.
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