नई दिल्ली: दिल्ली अध्यादेश के बाद चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के फैसले को पलटने के लिए केंद्र सरकार ने गुरुवार को मुख्य चुनाव आयुक्तों और चुनाव आयुक्तों के चयन से संबंधित एक विधेयक राज्यसभा में पेश किया. इस विधेयक के मुताबिक प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की सिफारिश करेगी. लेकिन चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया से सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को बाहर रखे जाने पर विपक्ष ने हंगामा खड़ा कर दिया है. दूसरी ओर, इस बिल से केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच नए सिरे से टकराव बढ़ने की संभावना है.
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केंद्र सरकार द्वारा पेश किए गए नए बिल के मुताबिक, प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में तीन सदस्यों की एक समिति मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों का चयन करेगी. इस समिति की अनुशंसा पर राष्ट्रपति द्वारा उनकी नियुक्ति की जायेगी. इस समिति में प्रधानमंत्री के अलावा लोकसभा में विपक्ष के नेता और एक कैबिनेट मंत्री शामिल होंगे.
तेज हुई सियासी बयानबाजी
कांग्रेस सांसद केसी वेणुगोपाल ने कहा कि यह पूरी तरह से अनुचित है. सरकार तटस्थता नहीं चाहती, वे चुनाव आयोग को एक सरकारी विभाग बनाना चाहते हैं. स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की बात पूरी तरह से गायब हो जाएगी. हम इस बिल को स्वीकार नहीं कर सकते.
कांग्रेस सांसद रणदीप सिंह सुरजेवाला ने भी बिल का विरोध करते हुए कहा कि आज एक काला दिन था, चुनाव आयोग देश में लोकतांत्रिक और निष्पक्ष चुनाव कराने वाली आखिरी स्वतंत्र संस्था है. प्रधानमंत्री मोदी इसे मोदी चुनाव आयोग बनाना चाहते हैं.
मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (सेवा की नियुक्ति शर्तें और कार्यकाल) विधेयक, 2023 पर केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में फैसला दिया था. इसलिए हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक कानून लेकर आए हैं. नए बिल में हम एक सर्च कमेटी बना रहे हैं, जिसका नेतृत्व कैबिनेट सचिव करेंगे, उसके बाद एक चयन समिति होगी जिसका नेतृत्व प्रधानमंत्री करेंगे. इसमें गलत क्या है?
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