भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने एक बार फिर भारत सरकार की आर्थिक नीतियों पर संदेह जताया है और कुछ सवाल खड़े किए हैं. इस बार उनका टारगेट केंद्र सरकार की प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव स्कीम (PLI) है और उन्होंने पूछा है कि क्या सरकार की यह स्कीम फेल साबित हुई है.
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पीएलआई योजना की सफलता के मोदी सरकार के दावे पर उठे सवाल
आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के साथ कई अन्य लेखकों ने एक सोशल मीडिया नोट में सवाल किया है कि मोदी सरकार की पीएलआई योजना की सफलता का क्या सबूत है, जो मूल रूप से देश में विनिर्माण गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई थी. उन्होंने सवाल किया है कि क्या भारत वास्तव में मैन्युफैक्चरिंग का हब बन गया है, जिसके बारे में दावा किया जा रहा है. उन्होंने लिखा कि देश में मोबाइल फोन मैन्युफैक्चरिंग के आंकड़ों को देखने के बाद ऐसी चिंताएं सामने आ रही हैं, जिनका जवाब दिया जाना जरूरी है. क्योंकि इस योजना का फोकस मुख्य रूप से देश में मोबाइल फोन के उत्पादन को ध्यान में रखकर पेश किया गया था.
मैन्युफैक्चरिंग का हब नहीं बन सका भारत: रघुराम राजन
अपने शोध नोट में, रघुराम राजन ने लिखा है कि भारत अभी तक मोबाइल फोन निर्माण के क्षेत्र में दिग्गज नहीं बन पाया है, जैसा कि उम्मीद की गई थी और पीएलआई योजना के लॉन्च के समय बड़े-बड़े वादे किए गए थे. उनके साथ दो और लेखकों राहुल चौहान और रोहित लांबा ने उल्लेख किया है कि यह योजना विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने में विफल रही है.
10 हजार के नोट छापने की दी थी सलाह
अक्टूबर 2014 में आरबीआई के मौजूदा गवर्नर रघुराम राजन ने केंद्र सरकार को 5,000 और 10,000 रुपए के नोट जारी करने का सुझाव दिया था. इसके पीछे रघुराम राजन का तर्क था कि देश में बढ़ती महंगाई की वजह से 1000 रुपए के नोट की कीमत घट गई है. उन्होंने बड़े नोट छापने की सिफारिश की थी ताकि बढ़ती महंगाई पर लगाम लगाई जा सके. लेकिन केंद्र की मोदी सरकार ने आरबीआई गवर्नर के इस सुझाव को मानने से इनकार कर दिया था. तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि सरकार ने इस सिफारिश को खारिज कर दिया क्योंकि वह जल्द ही एक नई मुद्रा चाहती थी.
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