नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु में वार्षिक जल्लीकट्टू खेल को बरकरार रखा है और इस पर प्रतिबंध लगाने से इनकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु में जल्लीकट्टू की अनुमति देने वाले राज्य सरकार के कानून को बरकरार रखा है. इसमें भाग लेने वाले सांडों के प्रति क्रूरता का हवाला देते हुए कानून को निरस्त करने का आह्वान किया गया था. इतना ही नहीं तमिलनाडु के कानून को संसद द्वारा पारित पशु क्रूरता निवारण अधिनियम का उल्लंघन बताया गया था.
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पांच महीने बाद आया फैसला
8 दिसंबर 2022 को संविधान पीठ ने मामले की सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था. अब करीब पांच महीने बाद संविधान पीठ ने इस मामले में फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु में खेले जाने वाले खेल ‘जल्लीकट्टू’ की अनुमति देने वाले तमिलनाडु के कानून को बरकरार रखा है. कोर्ट का कहना है कि पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम (तमिलनाडु संशोधन) अधिनियम, 2017, जानवरों के दर्द और पीड़ा को काफी हद तक कम करता है.
पांच जजों की संविधान पीठ ने सुनाया फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि नए कानून में क्रूरता के पहलू का ख्याल रखा गया है. खेल सदियों से तमिलनाडु की संस्कृति का हिस्सा रहा है. इसे बाधित नहीं किया जा सकता है. अगर कोई जानवरों के साथ क्रूरता करता है उसके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए. जस्टिस केएम जोसेफ, अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, हृषिकेश रॉय और सीटी रविकुमार की पांच जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया है.
सुप्रीम कोर्ट का फैसला सामने आने के बाद तमिलनाडु के कानून मंत्री एस. रघुपति ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि हम कानूनी लड़ाई जीत गए हैं. तमिलनाडु के लोगों की यह इच्छा थी, वो जल्लीकट्टू खेल को जारी रखना चाहते थे. हमारी संस्कृति, परंपरा सब कुछ संरक्षित किया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने एक अच्छा निर्णय दिया है. हम सभी जानवरों को क्रूरता से बचाएंगे. जल्लीकट्टू में किसी भी जानवर के साथ क्रूरता नहीं होगी.
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