दिल्ली: शिवसेना पार्टी और उसका चुनाव चिन्ह एकनाथ शिंदे को दिए जाने के खिलाफ एक बार फिर उद्धव ठाकरे ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. उद्धव ठाकरे ने अपनी याचिका में चुनाव आयोग के फैसले को रद्द करने की मांग की है. उद्धव का कहना है कि विधायक दल में टूट को पार्टी टूट कहना गलत है. चीफ जस्टिस ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर 31 जुलाई को सुनवाई करेगा.
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उद्धव ठाकरे की याचिका में क्या कहा गया?
उद्धव ठाकरे ने अपनी याचिका में दावा किया है कि एकनाथ शिंदे को चुनाव चिन्ह देने का चुनाव आयोग का फैसला कानूनी त्रुटियों से भरा है और आयोग ने प्रतीक आदेश के खंड 15 के तहत अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया है. याचिका में आगे कहा गया कि आयोग ने विधायकों की पार्टी में टूट को पार्टी में टूट माना है. चुनाव आयोग ने इस तथ्य को भी नजरअंदाज कर दिया कि पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण एकनाथ शिंदे समेत 16 विधायकों को सदस्यता से अयोग्य ठहराया जा सकता है.
चुनाव आयोग ने क्या कहा था?
विवाद शुरू होने के बाद पिछले साल चुनाव आयोग ने आदेश दिया था कि पार्टी का नाम शिवसेना और पार्टी का प्रतीक धनुष और तीर एकनाथ शिंदे गुट के पास रहेगा. आयोग के मुताबिक शिवसेना का वर्तमान संविधान अलोकतांत्रिक है. बिना किसी चुनाव के पदाधिकारियों के रूप में एक गुट के लोगों को अलोकतांत्रिक रूप से नियुक्त करने के लिए इसे विकृत कर दिया गया है. इस तरह की पार्टी की संरचना विश्वास को प्रेरित करने में विफल रहती है. आयोग के फैसले के खिलाफ उद्धव ठाकरे ग्रुप ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था लेकिन वहां से भी उनको झटका ही लगा था.
कोर्ट ने ठाकरे को राहत देने से किया इनकार
महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे बनाम एकनाथ शिंदे मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए राज्यपाल की भूमिका पर भी सवाल खड़ा किया था. कोर्ट ने कहा कि आंतरिक पार्टी के विवादों को हल करने के लिए फ्लोर टेस्ट का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. न तो संविधान और न ही कानून राज्यपाल को राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश करने और अंतर-पार्टी या अंतर-पार्टी विवादों में भूमिका निभाने का अधिकार देता है. इसके अलावा गोगावाले (शिंदे समूह) को शिवसेना पार्टी के मुख्य सचेतक के रूप में नियुक्त करने का स्पीकर का फैसला अवैध था. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि स्पीकर को राजनीतिक दल द्वारा नियुक्त व्हिप को ही मान्यता देनी चाहिए थी.
कैसे शुरू हुई राजनीतिक लड़ाई?
2019 के विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद शिवसेना ने भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन तोड़ लिया था. शिवसेना ने दावा किया कि भाजपा मुख्यमंत्री पद साझा करने के अपने वादे से पीछे हट गई है. जिसके बाद उद्धव ठाकरे ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस के साथ महाराष्ट्र विकास अघाड़ी गठबंधन का गठन किया था, इस गठबंधन के खिलाफ एकनाथ शिंदे ने विद्रोह किया और सरकार गिरा दी थी. उसके बाद वह भाजपा के साथ मिलकर सरकार चला रहे हैं. पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह भी उनके नाम हो गया है. इसी के खिलाफ एक बार फिर उद्धव ठाकरे ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.
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