दिल्ली: कांग्रेस नेता राहुल गांधी को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलने के बाद अब उनकी संसद सदस्यता को लेकर बड़ी खबर आ रही है. लोकसभा स्पीकर ने संसद सदस्यता की बहाली पर मंजूरी की मुहर लगा दी है. मानसून सत्र शुरू है ऐसे में वह वह फिर से कार्रवाई में हिस्सा लेते हुए नजर आएंगे. विपक्षी गठबंधन के लिए यह बड़ी खबर मानी जा रही है. गौरतलब है कि मोदी सरनेम मामले में सूरत की अदालत द्वारा 2 साल की सजा सुनाए जाने के बाद उनसे सदस्यता छीन ली गई थी. इस मामले में गुजरात हाई कोर्ट ने भी उन्हें झटका दिया और सजा को यथावत रखा था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाते हुए उनकी सजा पर रोक लगा दी थी.
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कांग्रेस कार्यकर्ताओं और नेताओं में खुशी
लोकसभा सचिवालय की ओर से अधिसूचना जारी होने के बाद कांग्रेस कार्यकर्ताओं और नेताओं में खुशी की लहर दौड़ गई. अब राहुल गांधी एक बार फिर संसद में नजर आएंगे. हालिया मॉनसून सत्र में ही उन्हें सदन में देखा जा सकता है. कोर्ट के फैसले के बाद कांग्रेस लगातार उनकी सदस्यता वापसी के लिए कोशिश कर रही थी. तमाम दस्तावेजी प्रक्रियाएं पूरी करने के बाद मामला सिर्फ लोकसभा अध्यक्ष की मंजूरी मिलने तक अटका हुआ था. अब इस मंजूरी के साथ ही राहुल का संसद पहुंचने का रास्ता साफ हो गया है.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने एक अंतरिम आदेश में ‘मोदी सरनेम’ टिप्पणी पर आपराधिक मानहानि मामले में कांग्रेस नेता राहुल गांधी की सजा पर रोक लगा दी. कोर्ट ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को राहत देते हुए कहा कि ट्रायल कोर्ट के आदेश के प्रभाव व्यापक हैं. इससे न केवल राहुल गांधी का सार्वजनिक जीवन में बने रहने का अधिकार प्रभावित हुआ, बल्कि उन्हें चुनने वाले मतदाताओं का अधिकार भी प्रभावित हुआ. ‘मोदी’ उपनाम टिप्पणी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि निचली अदालत के न्यायाधीश द्वारा अधिकतम सजा देने का कोई कारण नहीं बताया गया है, अंतिम फैसला आने तक दोषसिद्धि के आदेश पर रोक लगाने की जरूरत है.
क्या है पूरा मामला
2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान कर्नाटक में एक रैली के दौरान राहुल गांधी ने मोदी उपनाम पर टिप्पणी की थी. इस टिप्पणी के खिलाफ बीजेपी विधायक पूर्णेश मोदी ने शिकायत दर्ज कराई थी, जिसके चार साल बाद 23 मार्च 2023 को गुजरात के सूरत की अदालत ने राहुल गांधी को आपराधिक मानहानि का दोषी ठहराया था और दो साल जेल की सजा सुनाई थी. राहुल गांधी ने निचली कोर्ट के फैसले के खिलाफ गुजरात हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. लेकिन उनको वहां से भी राहत नहीं मिली थी.
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