दिल्ली: आगामी लोकसभा चुनाव में अन्य मुद्दों के साथ-साथ समान नागरिक संहिता भी एक अहम मुद्दा रहने वाला है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान के बाद समान नागरिक संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड) को लेकर बहस शुरू हो गई है. इसे लेकर विपक्षी दल ने बीजेपी और मोदी सरकार पर निशाना साधा है और कहा कि चुनाव नजदीक आते ही वह इस मुद्दे को उठा रहे हैं ताकि हिंदू-मुस्लिम किया जा सके.
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विपक्ष का आरोप है कि महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाया जा रहा है. प्रधानमंत्री के बयान के बाद एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने तीखा हमला बोला है. वहीं डीएमके ने समान नागरिक संहिता पर टिप्पणी करते हुए कहा कि इसे हिंदू धर्म में लागू किया जाना चाहिए ताकि एससी/एसटी को मंदिरों में प्रवेश मिल सके. समान नागरिक संहिता पर पीएम मोदी के बयान के बाद ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कड़ा विरोध करने का फैसला किया है.
गौरतलब है कि अमेरिकी दौरे से लौटने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मेरा बूथ सबसे मजबूत’ अभियान के तहत मंगलवार को मोतीलाल नेहरू स्टेडियम में बीजेपी कार्यकर्ताओं को संबोधित किया था. इस दौरान उन्होंने कहा कि वर्तमान में समान नागरिक संहिता के नाम पर लोगों को भड़काने का काम किया जा रहा है. ऐसे में दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चलेगा?
यूसीसी बीजेपी के चुनावी एजेंडे से बाहर नहीं है
समान नागरिक संहिता के साथ राम मंदिर और धारा 370 हमेशा से बीजेपी के चुनावी एजेंडे का हिस्सा रहे हैं. 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र में इसका खुलकर जिक्र किया था. 2014 में सत्ता में आने के बाद से बीजेपी नेता यूसीसी को लेकर लगातार बयान देते रहे हैं. समान नागरिक संहिता की दिशा में सबसे बड़ा कदम 9 दिसंबर 2022 को उठाया गया था. ‘भारत में समान नागरिक संहिता 2020’ विधेयक को राज्यसभा में एक निजी सदस्य विधेयक के रूप में पेश किया गया था. बीजेपी सांसद किरोड़ी लाल मीणा ने बिल को सदन के पटल पर रखा था. कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस सहित के कई सांसदों ने वोट में हिस्सा नहीं लिया था.
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