1980 और नब्बे के दशक में बार-बार आने वाले सूखे का सीधा संबंध आज के वराछा रोड के विकास से है. उस समय सूरत हीरा और कढ़ाई उद्योग का एक संपन्न केंद्र बनता जा रहा था और दूसरी ओर सौराष्ट्र में सूखे के कारण भूमि सूखी जा रही थी. रोजगार की कमी के कारण, सौराष्ट्र के गांवों के लोग बड़ी संख्या में वराछा चले गए और हीरा उद्योग या कढ़ाई में रोजगार की तलाश की, ये सभी आज स्थाई होकर वराछा रोड को मिनी सौराष्ट्र का खिताब दे रहे हैं. कुम्भनिया भजिया हो या पान-मसाला, सौराष्ट्र की विशेषता कही जाने वाली हर चीज यहां पाई जाती है और चारों ओर बहुतायत में उपलब्ध है. वराछा रोड विधानसभा सीट सूरत की दो बड़ी विधानसभा सीटों उत्तर और पश्चिम से वराछा रोड के क्षेत्र को अलग करके बनाई गई सामान्य श्रेणी की है. जिसमें कुल 198,634 मतदाता पंजीकृत हैं.
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मिजाज
टिपिकल सौराष्ट्र के बगावती मिजाज वाली यह सीट नए परिसीमन के बाद दोनों बार भाजपा के पास गई है, लेकिन इसे 100 प्रतिशत भाजपा समर्थित नहीं कहा जा सकता है. पिछले चुनाव में पाटीदार आरक्षण आंदोलन के मद्देनजर इस क्षेत्र में प्रचार करने जाने से भाजपा नेताओं के पैर कांप रहे थे और यहां तक कि स्वयं सांसद दर्शना जरदोश पर अंडे भी फेंके गए थे. हालांकि मतदाताओं ने डर दिखाकर बढ़त कम कर बीजेपी को जीत दिला दी थी. इस बार भी संभावना है कि यहां भी कुछ इसी तरह की स्थिति बनेगी. इस बार कोई आरक्षण आंदोलन नहीं है लेकिन इसकी रही-सही असर इस चुनाव को निर्णायक बना सकती है. आक्रमकता और बगावत इस क्षेत्र की पहचान है.
रिकॉर्ड बुक
साल विजेता पार्टी मार्जिन
1998 परेश वसावा कांग्रेस 29,801
2002 परेश वसावा कांग्रेस 16,463
2007 परेश वसावा कांग्रेस 1,668
2012 किशोर कनानी भाजपा 20,359
2017 किशोर कनानी भाजपा 13,998
(अंतिम दो परिणाम नए सीमांकन के बाद के हैं)
कास्ट फैब्रिक
करीब दो लाख मतदाताओं में भावनगर, अमरेली, जूनागढ़ और बोटाद जिलों के लेउवा पटेलों की संख्या करीब डेढ़ लाख है. इसलिए स्वाभाविक रूप से यहां पटेल पावर का दबदबा रहता है. इसके अलावा भावनगर, अमरेली के पंचोली अहीर समाज के साथ बोटाद क्षेत्र के क्षत्रिय मोची और प्रजापति समाज का भी अहम हिस्सा है. हालांकि, पाटीदार परिणाम के लिए निर्णायक बने हुए हैं. इसलिए हर पार्टी यहां केवल पाटीदारों को ही मैदान में उतारना पसंद करती है.
समस्या
इस क्षेत्र के रत्न कलाकारों को कोरोना काल में काफी नुकसान हुआ था. इसलिए उन्हें राहत पैकेज देने की मांग अभी तक पूरी नहीं हुई है. नगर निगम से जुड़ी समस्या यहां का प्रमुख मुद्दा है. पूरे राज्य का सबसे लंबा फ्लाईओवर यहां से होकर गुजरता है लेकिन बेतरतीब ट्रैफिक एक बारहमासी समस्या है. वाहन पार्किंग की समस्या के समाधान के लिए बहुमंजिला पार्किंग परिसर की मांग भी अब तक पूरी नहीं हो पाई है.
मौजूदा विधायक का रिपोर्ट कार्ड
किशोर कनानी, जो विजय रूपाणी सरकार में मंत्री थे, स्थानीय रूप से कुमार कनानी के नाम से जाने जाते हैं. अपने बयानों की वजह अक्सर विवादों में घिरे रहने वाले कनानी इलाके में मजबूत पकड़ बनाए हुए हैं. इस सीट से दो बार जीत हासिल कर चुके हैं और अपनी विवादास्पद छवि की वजह से इस बात की प्रबल संभावना है कि उन्हें इस बार टिकट नहीं मिल सकता है. उनके खिलाफ हीरा उद्योग का प्रमुख नाम माने जाने वाले दिनेश नावाडिया भाजपा के टिकट के मुख्य दावेदार हैं. इसके अलावा कनानी से दो बार कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर हार चुके धीरू गजेरा अब भाजपा में शामिल हो गए हैं और टिकट की मांग की है.
प्रतियोगी कौन?
कांग्रेस ने इस सीट के लिए पपन तोगड़िया को उम्मीदवार बनाया है. सूरत नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष रह चुके पपन तोगड़िया अमरेली जिले के रहने वाले हैं. एक आक्रामक युवा नेता के रूप में उनकी छवि है. लेकिन वह भाजपा के खिलाफ चुनौती पैदा करने में सक्षम नहीं दिख रहे हैं.
तीसरा कारक
बीजेपी के लिए असली चुनौती आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर अल्पेश कथिरिया से है. पास के आक्रामक नेता के तौर पर भाजपा सरकार द्वारा कई बार जेल जा चुके कथिरिया अब आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए हैं और अपनी 14 महीने की कैद का हिसाब मांगने के लिए चुनावी मैदान में उतर चुके हैं. आप में शामिल होने के बाद बाइक रैली कर इलाके में वह अपना शक्ति प्रदर्शन कर चुके हैं. स्थानीय युवाओं के बीच उनकी लोकप्रियता को देखते हुए यह तय है कि बीजेपी इस बार भी वराछा को जीतने के लिए पसीना बहाएगी.
#बैठकपुराण करंज (सूरत शहर): यह सीट कड़ाके की ठंड में भाजपा का पसीना छुड़ाएगी
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