एक समय अमरेली जिला सौराष्ट्र का पिछड़ा जिला माना जाता था, लेकिन आज यह बहुत मजबूत माना जाता है, जिसका केंद्र राजुला है. कालमिंधा पर्वत श्रृंखला के दक्षिण में समुद्र, पश्चिम में गिर वन और उत्तर में गिरनार पर्वत श्रृंखला से हजारों वर्ष पुराना संबंध है. प्रकृति की ऐसी दुर्लभ त्रिमूर्ति के साथ विकसित राजुला शहर तट के किनारे विकसित हुए उद्योगों के कारण तेजी से बढ़ रहा है. पिपावाव पोर्ट, अल्ट्राटेक सीमेंट जैसे बड़े उद्योगों के कारण तटीय क्षेत्र में जमीन की कीमत बढ़ गई है, इससे स्थानीय व्यापार की वृद्धि पर सीधा असर पड़ा है और राजुला की तस्वीर बदल गई है. इस विधानसभा सीट के अंतर्गत राजुला और जाफराबाद और खांभा तालुका भी शामिल हैं, जिसे चुनाव आयोग ने 98वां स्थान दिया है. अमरेली लोकसभा में आने वाली इस विधानसभा सीट पर कुल 2,46,825 मतदाता पंजीकृत हैं.
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मिजाज
इस सीट से लगातार 4 बार जीत हासिल करने वाले भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार हीरालाल सोलंकी को 2017 के चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार अंबरीश डेर ने हराकर जीत हासिल की थी. इस एक अपवाद को छोड़ दें तो यह सीट बीजेपी का गढ़ है. 1960 में गुजरात राज्य बनने के बाद से कांग्रेस का दबदबा था लेकिन राम जन्मभूमि आंदोलन के मद्देनजर पूरे राज्य की तरह राजुला भी भगवा लहर की चपेट में आ गया है. दो दशक बाद 2017 में कांग्रेस प्रत्याशी अंबरीश डेर ने यहां भाजपा के गढ़ में सेंध लगाई थी. इस विधानसभा सीट की एक दिलचस्प विशेषता यह है कि यहां निर्वाचित कोई भी विधायक स्थानीय नहीं था. हीराभाई सोलंकी से लेकर पूर्व राज्य मंत्री मधुभाई भुवा या जसु मेहता, जिन्हें सौराष्ट्र के सुभाष बाबू के नाम से जाना जाता है, कोई भी राजुला शहर का नहीं था. राजुला ने पहली बार अंबरीश डेर के रूप में किसी स्थानीय व्यक्ति को चुना है.
रिकॉर्ड बुक
साल विजेता पार्टी मार्जिन
1998 हीरालाल सोलंकी भाजपा 12,089
2002 हीरालाल सोलंकी भाजपा 37,062
2007 हीरालाल सोलंकी भाजपा 32,330
2012 हीरालाल सोलंकी भाजपा 18,710
2017 अंबरीश डेर कांग्रेस 12,719
कास्ट फैब्रिक
राजुला, जाफराबाद, खांभा में मुख्य रूप से पंचोली अहीर, नाधेरा अहीर, कोली और खारवा समुदायों का वर्चस्व है. इसके अलावा मुसलमानों और दलितों की संख्या भी काफी है. काठी क्षत्रिय समुदाय का वोट यहां गेम चेंजर माना जाता है. शहरी क्षेत्रों में ब्राह्मण, वणिक और लोहाना समुदायों को संख्या में छोटा लेकिन प्रभाव में प्रभावी माना जाता है. वावेरा, समुहखेती जैसे गांवों को छोड़कर इस सीट पर पाटीदार फैक्टर न के बराबर है. पूर्व विधायक स्व. प्रताप वरु के निधन के बाद काठी समुदाय की युवा पीढ़ी लंबे समय से भाजपा की समर्थक रही है. पंचोली अहीर समाज बंटा हुआ नजर आ रहा है. हालांकि, डॉ. कनुभाई कलासरिया को कांग्रेस ने महुवा से अपना उम्मीदवार बनाया इसलिए इसका असर इस सीट पर भी पड़ सकता है.
समस्या
स्थानीय स्तर पर पिपावाव पोर्ट और अल्ट्राटेक सीमेंट, सिंटेक्स जैसी कंपनियों के आने के बावजूद स्थानीय रोजगार के अवसर कम हो रहे हैं. बड़े उद्योगों पर निर्भर लघु उद्योग विकसित नहीं हो सके. राजुला शहर सफाई की कमी और नियमित बिजली कटौती जैसी समस्याओं का सामना कर रहा है. राजुला को अन्य शहरों से जोड़ने वाली जर्जर सड़कों की शिकायतों का समाधान नहीं किया गया है. जाफराबाद में भी शिकायतें व्यापक हैं कि तौकत चक्रवात के दौरान मछुआरों को मदद मिलने में देरी हुई थी.
मौजूदा विधायक का रिपोर्ट कार्ड
इस सीट से चुने जाने के बाद से अंबरीश डेर पांच साल से सुर्खियों में हैं. चूंकि विधानसभा में उनकी सक्रियता भी महत्वपूर्ण रही है, इसलिए कांग्रेस ने उन्हें कार्यकारी अध्यक्ष का पद दिया है. उनका प्लस पॉइंट जॉगर्स पार्क के मुद्दे पर रेलवे के खिलाफ उनका आंदोलन है. वहीं, कांग्रेस के स्वामित्व वाली राजुला नगर पालिका के ढुलमुल प्रशासनिक व्यवस्था की वजह से शहरी क्षेत्र में विधायक के प्रति नाराजगी को नजरंदाज नहीं किया जा सकता है. भाजपा द्वारा डेर को तोड़ने का प्रयास बेरोकटोक जारी हैं.
प्रतियोगी कौन?
बीजेपी के हीरालाल सोलंकी को मुख्य दावेदार माना जा रहा है क्योंकि वह इस सीट से चार बार जीत चुके हैं. चुनाव हारने के बाद भी उन्होंने मतदाताओं से लगातार संपर्क बनाए रखा है. बहरहाल, भाजपा के अंदरूनी कलह में हीरालाल की मेहनत बेकार जाने और किसी और को टिकट मिलने की स्थिति में युवा कोली समाज के नेता करण बारैया, पुरानी पीढ़ी के भाजपा नेता किशोर रेणुका, अमरेली जिला भाजपा के पूर्व महासचिव रवुभाई खुमान और कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुए पंचोली अहीर नेता पीठाभाई नकुम को मुख्य दावेदार माना जा रहा है.
तीसरा कारक
इस सीट पर आम आदमी पार्टी का संगठन न के बराबर है. भरत बलदानिया यहां आप उम्मीदवार के तौर पर मैदान में हैं लेकिन स्थानीय स्तर पर उनकी खास पहचान नहीं है. पिछला चुनाव हारने के बाद बीजेपी यहां पूरी ताकत के साथ वापसी करने की कोशिश कर रही है, वहीं कांग्रेस भी इस सीट को बरकरार रखने के लिए कृतसंकल्प है, इसलिए यहां भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला होने की संभावना जताई जा रही है.
#बैठकपुराण ओलपाड: भारी मार्जिन के केसरिया ख्बाव के बीच अब सीट को बरकरार रखने की चुनौती
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