एलिसब्रिज के बाद साबरमती नदी के किनारे तेजी से विकसित हो रहे क्षेत्रों को दिया जाने वाला पहला नाम नारणपुरा का होना चाहिए. 1980 के दशक में गुजरात हाउसिंग बोर्ड ने शहरीकरण में तेजी लाने की दृष्टि से सस्ती दरों पर और आसान किश्तों में घर बनाने की योजना बनाई. उस समय वेजलपुर में टेनामेंट बनने शुरू हो गए थे. उसके बाद हाउसिंग बोर्ड हाउस के लिए नारणपुरा को चुना गया था. यहां करीब दस हजार परिवारों को एक के बाद एक करीब तीस बड़ी योजनाओं में आवास मिले. हाउसिंग बोर्ड की योजनाओं ने आज के शास्त्रीनगर, भुयंगदेव, प्रगतिनगर, अंकुर, विजयनगर आदि क्षेत्रों के विकास में बहुत योगदान दिया है. सांप्रदायिक दंगों से प्रभावित पोल से हिंदू अहमदाबादियों ने यहां प्रवास किया. अब यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि मूल अहमदाबादी पोल के स्थान पर नारणपुरा में निवास करते हैं. 2008 में हुए नए परिसीमन के बाद गांधीनगर लोकसभा सीट के तहत आने वाले सात विधानसभा क्षेत्रों में बदलाव हुए, नारणपुरा सीट के तहत नगर पालिका के चार वार्डों में कुल 2,29,840 मतदाता पंजीकृत हैं. भौगोलिक दृष्टि से यह सीट अपेक्षाकृत छोटी है.
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मिजाज
कई सांप्रदायिक दंगों और भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के दौरान धमकी देने वाली घटनाओं के कारण, पोल इलाके से पलायन करने वाले मूल पोल वासी मतदाताओं की मानसिकता बिल्कुल हिंदूवादी थी. जिसकी वजह से अस्सी के दशक में जनसंघ से बीजेपी नाम की पार्टी को यहां पैर जमाने के लिए उर्वर जमीन मिली. मध्यवर्गीय व्यवसायियों का रिहायशी इलाका होने के कारण नारणपुरा विधानसभा क्षेत्र बीजेपी का गढ़ बन गया है. यहां हुए दोनों चुनावों में बीजेपी प्रत्याशी को 70 फीसदी वोट मिले थे. इस बार भी इससे कोई खास फर्क पड़ता नहीं दिख रहा है.
रिकॉर्ड बुक
साल विजेता पार्टी मार्जिन
2012 अमित शाह भाजपा 63,335
2017 कौशिक पटेल भाजपा 66,215
कास्ट फैब्रिक
इस सीट पर करीब 70,000 पाटीदार सबसे अहम भूमिका निभा रहे हैं. इसके बाद रबारी समुदाय के 55 हजार वोटर हैं. जैन और ब्राह्मणों के अलावा 70,000 ओबीसी भी हैं. यहां ज्यादातर पाटीदार उम्मीदवार राजनीतिक दलों की पहली पसंद होते हैं. यहां किसी रबारी समाज के प्रत्याशी को मौका देकर कोई राजनीतिक दल जीत के लिए नया जातीय समीकरण गढ़ने की भविष्य की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता.
समस्या
भाजपा का गढ़ होने के बावजूद यहां नगर निगम पार्षदों के खिलाफ शिकायतें आम हैं. रिहायशी इलाके में कचरा डंपिंग साइट को लेकर स्थानीय लोगों को विरोध करना पड़ा था. इसके अलावा सड़क चौड़ीकरण के लिए दुकान व मकान कटिंग के मुद्दे पर भी यहां तीखी नोकझोंक हुई थी. मौजूदा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, जो इस क्षेत्र के विधायक रह चुके हैं, को इन दोनों मुद्दों पर हस्तक्षेप करना पड़ा था. अभी भी पेयजल की समस्या का समाधान नहीं हुआ है. इसके अलावा बीजेपी ने इस इलाके को काफी संवारा है. शास्त्रीनगर के पास एक अंतरराष्ट्रीय स्तर का खेल परिसर भी आकार लेगा.
मौजूदा विधायक का रिपोर्ट कार्ड
नए परिसीमन के बाद हुए पहले चुनाव में इस सीट से बीजेपी के चाणक्य अमित शाह जीते थे. उनका निवास स्थान होने के कारण यह निर्वाचन क्षेत्र उनका माना जाता है और स्थानीय लोग भी उन्हें अपना अमितभाई मानते हैं. परिणामस्वरूप उम्मीदवार यहां गौण बन जाता है. राजस्व मंत्री रहे कौशिक पटेल की जगह इस बार पूर्व गृह मंत्री स्व. हरेन पंड्या की पत्नी जागृति पंड्या को भी दावेदार बताया जा रहा था लेकिन बीजेपी ने अमित शाह के विश्वासपात्र जितेंद्रभाई पटेल को तरजीह दी है. यहां उम्मीदवार का नाम, चेहरे से ज्यादा असर कमल के निशान का होता है.
प्रतियोगी कौन?
कांग्रेस ने यहां की पूर्व नगर अध्यक्ष व महिला नेत्री सोनलबेन पटेल को मैदान में उतार कर एकतरफा लड़ाई को दिलचस्प बनाने की कोशिश की है. महिला उम्मीदवार होने के नाते इस बात की संभावना कम ही है कि सोनाल यहां बीजेपी के लिए चुनौती पेश कर सकती हैं. साफ-सुथरी व्यक्तिगत छवि के अलावा सोनलबेन स्थानीय स्तर पर भी अच्छी तरह से जुड़ी हुई हैं. लेकिन संगठन की कमी उनके अभियान में बाधा बन सकती है.
तीसरा कारक
मध्यवर्गीय शहरी क्षेत्र होने के कारण आम आदमी पार्टी की गारंटी यहां आकर्षक लगती है. प्रत्याशी पंकज पटेल की पूरे विधानसभा क्षेत्र में उतनी पहचान नहीं है, लेकिन शास्त्रीनगर, प्रगतिनगर, अखबारनगर क्षेत्र में एक सेवाभावी युवा के रूप में उनका प्रदर्शन अच्छा है. यह भी संदेहास्पद है कि क्या पंकज पटेल भाजपा के मजबूत बूथ प्रबंधन के खिलाफ प्रति बूथ कार्यकर्ताओं को ला सकते हैं. फिर भी, आप के सहज प्रशंसक उन्हें चार आंकड़ों में ला सकते हैं.
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