“कच्छडो बारे मास” यह कहावत कम से कम बीजेपी के लिए सच साबित हो रही है. भूकंप के बाद केशुभाई को गुजरात की गद्दी से हटाने और नरेंद्र मोदी को बिठाने में अहम भूमिका निभाने वाले कच्छ जिले का भूकंप के बाद कायापलट करने का पूरा श्रेय मोदी को दिया जा रहा है और बदले में कच्छ के मतदाता भी भाजपा की ओर झुकाव रखने वाले बन गए हैं. 2017 के चुनाव में अबडासा और रापर को छोड़कर कच्छ जिले की 6 विधानसभा सीटों में से भुज, मांडवी, गांधीधाम और अंजार इन चार सीटों पर भाजपा ने जीत हासिल की थी. फिर अबडासा से कांग्रेस विधायक ने दलबदल की जिसकी वजह से बीजेपी ने एक और सीट हासिल कर ली थी. लेकिन इस बात की पूरी संभावना है कि इस बार कच्छ भाजपा को फिफ्टी-फिफ्टी खिलाने के मूड में हैं.
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अबडासा: चूंकि इस सीट पर मुस्लिम मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा है. इसलिए बीजेपी को यहां कई पैंतरेबाज़ी करनी पड़ रही है. वर्तमान विधायक और इस चुनाव के उम्मीदवार प्रद्युम्न सिंह जडेजा कांग्रेस के टिकट पर चुने गए और बाद में दलबदल कर भाजपा में शामिल हो गए थे. उपचुनाव में एक निर्दलीय मुस्लिम उम्मीदवार को लगभग 24,000 वोट मिलने से कांग्रेस को झटका लगा था. इस बार कांग्रेस ने काफी सतर्कता बरती है. जाडेजा के खिलाफ यहां एक स्थानीय मुस्लिम नेता मामद जाट को मैदान में उतारा है. जडेजा को स्थानीय भाजपा संगठन गर्मजोशी से स्वीकार नहीं करता है और जनता के बीच उनकी दबंग छवि भी उन्हें परेशान करती दिख रही है. इसलिए कांग्रेस इस सीट से उम्मीद लगा सकती है.
मांडवी: इस सीट पर कच्छ के दिग्गज नेता रहे पूर्व सांसद अनंत दवे के भतीजे अनिरुद्ध दवे को बीजेपी ने चुना है. कांग्रेस के राजेंद्र सिंह जडेजा और आप के कैलास गढ़वी को अनिरुद्ध दवे के खिलाफ चुनावी मैदान में उतारा गया है. यहां क्षत्रिय वोटर अहम हैं लेकिन आप के प्रत्याशी गढ़वी भी वोट हासिल कर सकते हैं. बीजेपी प्रत्याशी की साफ-सुथरी छवि उनके काम आ रही है. अगर बीजेपी इस सीट को लेकर आश्वस्त है तो गलत नहीं है.
भुज: इस सीट से चुनी गईं डॉ. नीमाबेन विधानसभा की अध्यक्ष थीं और इस बार उन्हें आयु सीमा के नाम पर टिकट नहीं दिया गया. गांधीधाम में रहने के कारण डॉ. नीमाबेन को यहां आयातक माना जाता था लेकिन उनके स्थानीय प्रभाव को कोई नकार नहीं सकता है. इस चुनाव में उनकी निष्क्रियता कई सवाल खड़े कर रहे हैं. यहां भाजपा के केशवलाल पटेल और आप प्रत्याशी राजेश पांडोरिया कड़वा पाटीदार हैं जबकि कांग्रेस प्रत्याशी अर्जन भूडिया लेउवा पटेल हैं. संख्यात्मक रूप से, 24 गांवों में लेउवा पटेल समुदाय का वर्चस्व है. यहां कांग्रेस का जोर देखा जा सकता है. बन्नी इलाके के मुसलमानों को आमतौर पर बीजेपी समर्थक माना जाता है लेकिन इस बार बीजेपी विरोधी लहर है. इस सीट पर बीजेपी के हारने की स्थानीय चर्चा पूरी तरह निराधार नहीं है.
अंजार: कच्छ के रूडां शहर कहे जाने वाले अंजार में भाजपा ने विवादित वासन अहीर को काटकर त्रिकम छांगा को चुना है. उनके खिलाफ कांग्रेस ने रमेश डांगर को अपना उम्मीदवार बनाया है वह भी अहीर हैं. जबकि आप उम्मीदवार अर्जन रबारी हैं. यहां अहीर वोटों का बोलबाला है. वासन अहीर टिकट कटने के बाद भी त्रिकम छांगा को अपना छोटा भाई बताकर जिताने की अपील कर रहे हैं. बीजेपी इस सीट को बरकरार रख सकती है.
गांधीधाम: गुजरात बीजेपी को मिलने वाले फंड का करीब पच्चीस फीसदी हिस्सा गांधीधाम-कंडला से मिलता बताया जाता है. इस इलाके में बीजेपी के पुराने खिलाड़ी रमेश माहेश्वरी की खासी पकड़ है. उनकी भांजी मालती माहेश्वरी दूसरे कार्यकाल के लिए यहां भाजपा की उम्मीदवार हैं. मामा उसे जीतने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं. आप की प्रत्याशी बीटी माहेश्वरी भी माहेश्वरी समाज के वोटों का बंटवारा कर सकती हैं लेकिन कांग्रेस प्रत्याशी भरत सोलंकी को इसका फायदा मिलता नजर नहीं आ रहा है. इस खजाने जैसी सीट के लिए बीजेपी को डरने की जरूरत नहीं है.
रापर: सौराष्ट्र में जो स्थान गोंडल का है वैसे ही कच्छ में रापर विधानसभा सीट का माना जाता है. यहां बीजेपी ने पिछले चुनाव में मांडवी से चुने गए और स्थानीय स्तर पर बाहुबली की छवि रखने वाले वीरेंद्रसिंह जडेजा को मैदान में उतारा है. कच्छ क्षत्रिय समाज के अध्यक्ष होने के नाते वीरेंद्रसिंह जडेजा कच्छ की सभी सीटों पर प्रभाव डाल सकते हैं. उनके खिलाफ मजबूत धन बल वाले बचू अरेठिया मैदान में हैं. बचूभाई की पत्नी संतोक अरेठिया पिछले चुनाव में यहां से जीती थीं. यहां मसल पावर बनाम मनी पावर की लड़ाई में दोनों पक्ष अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं. इस सीट को लेकर अभी कोई अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है.
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