घने, हरे पेड़ों के बीच दिखाई देने वाले विशाल गुंबद वाली उस इमारत की डेढ़ सौ साल पुरानी तस्वीर को आज के अहमदाबाद वाले उसे बिल्कुल नहीं पहचानेंगे और अगर आप उस इलाके में रहने वाले लोगों को दिखाएंगे, वह भी विश्वास नहीं करेंगे कि आज जहां कदम रखने की जगह नहीं है उस इमारत के चारों ओर कैसा जंगल था! दरिया खान का घुम्मट यह अहमदाबाद के सल्तनत काल के स्थापत्य स्थलों में से एक है, जबकि पूरा दरियापुर क्षेत्र दरिया खान की एक कालातीत स्मृति है. सुल्तान मुहम्मद बेगड़ा के प्रधानमंत्री दरिया खान के नाम पर इस इलाके का नाम रखा गया था, और कालूपुर, उनके समकालीन सरदार कालू खान के नाम पर, अहमदाबाद का घनी आबादी वाला, मुस्लिम आबादी वाला पुराना शहरी क्षेत्र है. अहमद शाह बादशाह द्वारा निर्मित कोट में आबादी बसने लगी थी तब सबसे पहले जो इलाके कोट से बाहर विकसित हुए उसमें दरियापुर और कालूपुर मुख्या था. उसके बाद इन दोनों इलाकों के आसपास जमालपुर, रायपुर, रायखड, शाहपुर, खानपुर और सारंगपुर विकसित हुए. नए परिसीमन के बाद दरियापुर और कालूपुर दोनों सीटों को मिला दिया गया है. इस निर्वाचन क्षेत्र में 1,93,792 पंजीकृत मतदाता हैं.
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मिजाज
जब गुजरात राज्य के विभाजन के बाद 1975 में पहली बार परिसीमन किया गया था, तब दरियापुर सीट में संतुलित हिंदू-मुस्लिम आबादी थी. लेकिन जब नब्बे के दशक में नारनपुरा, सोला जैसे मध्यवर्गीय इलाके विकसित होने लगे तो पोल इलाके में रहने वाले हिंदू बड़ी संख्या में पलायन करने लगे. नए सीमांकन के बाद, कालूपुर-दरियापुर निर्वाचन क्षेत्र की 30% हिंदू आबादी को असारवा निर्वाचन क्षेत्र में और 20% मुस्लिम आबादी को जमालपुर में मिला दिया गया है. उसके बाद इस सीट का मिजाज ज्यादातर मुस्लिम समर्थक ही नजर आ रहा है. भाजपा के दिग्गज नेता भरत बारोट का यहां लंबे समय तक दबदबा रहा था. अब मुस्लिम वोटों के बंटने पर ही भाजपा को फिर मौका मिल सकता है.
रिकॉर्ड बुक
साल विजेता पार्टी मार्जिन
1998 भरत बारोट भाजपा 8,290
2002 भरत बारोट भाजपा 21,816
2007 भरत बारोट भाजपा 22,401
2012 गयासुद्दीन शेख कांग्रेस 2,621
2017 गयासुद्दीन शेख कांग्रेस 6,187
(अंतिम दो परिणाम नए सीमांकन के बाद के हैं)
कास्ट फैब्रिक
इस सीट पर लगभग 80,000 मुस्लिम मतदाता महत्वपूर्ण माने जाते हैं. इसके खिलाफ 25,000 दलित, 25,000 देवी पूजक और 30,000 गैर गुजराती मतदाताओं का समीकरण बनता है. बीजेपी के लिए मुस्लिम वोटों का बंटवारा जीत के लिए अपरिहार्य माना जा रहा है, जबकि यहां कांग्रेस एक मजबूत उम्मीदवार पर निर्भर है, जिसकी मुस्लिम और दलित वोटों के समीकरण पर मजबूत पकड़ हो.
समस्या
चूंकि यह एक शहरी क्षेत्र है, इसलिए भीड़भाड़, यातायात, नगरपालिका स्तर के मुद्दे यहां प्रमुख हैं. स्थानीय लोगों की यह भी व्यापक शिकायत है कि कोरोना काल में इस क्षेत्र के नागरिकों के साथ भेदभाव किया गया था. ऐसी स्थिति आ गई है कि हाई कोर्ट को स्ट्रीट लाइट, आवारा मवेशियों की समस्या के खिलाफ हस्तक्षेप करना पड़ रहा है.
मौजूदा विधायक का रिपोर्ट कार्ड
कांग्रेस के गयासुद्दीन शेख, जो अपने कॉलेज के दिनों में एक उत्साही क्रिकेटर थे, तीसरे कार्यकाल के लिए मैदान में उतरे हैं. व्यापक जनसंपर्क है लेकिन उनके अनुदान को पसंदीदा क्षेत्रों में आवंटित करने की भी शिकायतें हैं. चूंकि उन्हें जीत के लिए अन्य मुस्लिम नेताओं के साथ समझौता करना पड़ता है. इसलिए वह अपने पूरे कार्यकाल में समझौता करने में व्यस्त रहते हैं. इस बार इस सीट के अन्य दावेदार भी थे लेकिन गयासुद्दीन पुराने ट्रैक रिकॉर्ड के आधार पर टिकट हासिल करने में कामयाब रहे हैं. हालांकि इस बार उनकी राह आसान नहीं होगी.
प्रतियोगी है?
कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुईं युवा श्वेता ब्रह्मभट इस सीट की प्रबल दावेदार मानी जा रही थीं, लेकिन उनकी जगह बीजेपी ने कौशिक जैन को मैदान में उतार कर सबको चौंका दिया है. बीजेपी उम्मीदवार के लिए यहां दलितों, देवी पूजक, ओबीसी और गैर गुजराती का वोट हासिल करना लाजिमी हो जाता है. वहीं, मुस्लिम वोटों का बंटवारा भी बीजेपी के लिए फायदेमंद माना जा रहा है.
तीसरा कारक
एआईएमआईएम प्रत्याशी हसन खान पठान उर्फ हसन लाला एक पार्षद के रूप में क्षेत्र में काफी लोकप्रिय हैं. इसके अलावा आम आदमी पार्टी ने यहां ताज कुरैशी नाम के एक युवा मुस्लिम कार्यकर्ता को भी मैदान में उतारा है. हसन लाला के मजबूत जनाधार को देखते हुए अगर वह मुस्लिम वोटों में बड़ी सेंध लगाते हैं तो कांग्रेस के गयासुद्दीन का हैट्रिक लगाने का सपना अधूरा रह सकता है.
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