अहमदाबाद जब आस्टोडिया था और उसके बाद कर्णावती बना उस समय से कोट इलाके के उत्तर में असारवा गांव अस्तित्व में था. पुराने असारवा की तंग गलियों और देशी शैली के घरों में आज भी मूल गांव की विशेषताएं देखी जा सकती हैं. सुल्तान मुहम्मद बेगड़ा के मंत्री दरियाखान और सैन्य अधिकारी कालूखान ने दरियापुर और कालूपुर को क्रमशः कोट के बाहर मिली जागीरों पर बसाया था. दोनों क्षेत्रों का तेजी से विकास हुआ और माधुपुरा, चमनपुरा और असारवा जैसे गांव दिल्ली दरवाजा के आगे विकसित हुए. पिछली शताब्दी के पहले दशकों में, जब सूती मिल उद्योग के मद्देनजर अहमदाबाद का शहरीकरण हुआ, उस वक्त का असारवा गांव अब अहमदाबाद का एक क्षेत्र बन गया था. माधुपुरा और दिल्ली दरवाजा क्षेत्र अनाज, दाल और मसालों के प्रमुख बाजारों के रूप में विकसित हुए जबकि चमनपुरा, असारवा, दूधेश्वर आदि कपास मिल से संबंधित मशीनरी उद्योगों के केंद्र बन गए थे. मिल मजदूरों की जनसंख्या अधिक होने के कारण यहां आवासीय विकास भी अच्छा हुआ था. गुजरात राज्य के गठन के बाद से एक विधानसभा सीट के रूप में मौजूद है, पिछले चुनाव से अनुसूचित जाति के लिए यह सीट आरक्षित हो गई है. असारवा के अलावा, दूधेश्वर, शाहीबाग, दिल्ली चकला क्षेत्र सहित पांच वार्ड इस सीट के अंतर्गत आते हैं और कुल मतदाता 2,12,775 पंजीकृत हैं.
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मिजाज
1985 तक इस सीट पर कांग्रेस का दबदबा था, लेकिन 1990 के बाद यहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के गहन कार्य का परिणाम भाजपा की जीत हुई थी. राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान इस क्षेत्र से बड़ी संख्या में लोगों ने कारसेवा और बाद में आडवाणी की सोमनाथ से अयोध्या रथ यात्रा में भाग लिया था. इसने भाजपा समर्थक माहौल बनाया और 1990 में संघ परिवार से भाजपा के उम्मीदवार विठ्ठलभाई पटेल ने कांग्रेस के शीर्ष नेता प्रबोध रावल के खिलाफ जीत हासिल की, तब से इस सीट पर बीजेपी का दबदबा है. 1998 के एक अपवाद को छोड़ दें तो यहां बीजेपी का उम्मीदवार लगातार बढ़ते अंतर से जीत हासिल करता रहा है.
रिकॉर्ड बुक
साल विजेता पार्टी मार्जिन
1998 अमरीश पटेल बीजेपी 958
2002 प्रदीप सिंह जडेजा बीजेपी 24,703
2007 प्रदीप सिंह जडेजा बीजेपी 17,703
2012 रजनीकांत पटेल बीजेपी 35,045
2017 प्रदीप परमार बीजेपी 49,264
कास्ट फैब्रिक
यह सीट लगभग 50,000 दलित मतदाताओं के साथ अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. उसके बाद 22,000 क्षत्रिय और 15,000 पर ठाकोर समुदाय के लोग भी रहते हैं. पाटीदारों की संख्या भी लगभग 18,000 है जिनमें कड़वा-लेउवा की संख्या लगभग बराबर है. यहां रहने वाले पाटीदार मुख्य रूप से उत्तर गुजरात के हैं. यहां बीजेपी दलित, क्षत्रिय और पाटीदार समीकरण के आधार पर रणनीति बनाती है. जबकि कांग्रेस दलित, ठाकोर या दलित, क्षत्रिय समीकरण बनाने की कोशिश करती है.
समस्या
चूंकि क्षेत्र में आवासीय, वाणिज्यिक और औद्योगिक, रोजगारोन्मुखी गतिविधियों के साथ जुड़ा है. इसलिए ट्राफिक समस्या, अवैध निर्माण और पीने के पानी की समस्या यहां के प्रमुख मुद्दे हैं. औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले कचरे के अमानक निस्तारण के कारण भी प्रदूषण की शिकायतें व्यापक हैं. पुराने गांवों के पोल विकसित करने की योजनाओं को लागू नहीं किया गया है. गांव का तालाब अवैध मकानों के नीचे दब जाने से जल निकासी की भी समस्या है.
मौजूदा विधायक का रिपोर्ट कार्ड
प्रदीप परमार ने अच्छे अंतर से सीट जीती और भूपेंद्र पटेल की सरकार में मंत्री भी बने, लेकिन खराब प्रदर्शन और जनसंपर्क की कमी की शिकायतों के कारण उनका पत्ता इस बार कट गया है. इस सीट से रिकॉर्ड तोड़ बीजेपी के 100 नेताओं ने दावेदारी की थी. लेकिन बीजेपी ने आखिरकार इस सीट से दर्शनाबेन वाघेला को चुना है. अहमदाबाद की पूर्व डिप्टी मेयर दर्शनाबेन स्थानीय स्तर पर सक्रिय हैं और दलितों और महिलाओं के साथ उनका मजबूत संपर्क है. साफ-सुथरी छवि की वजह से उनको स्थानीय संगठन से भी अच्छा साथ मिल रहा है. जिसका सीधा फायदा उन्हें प्रचार में मिलता दिख रहा है.
प्रतियोगी कौन?
इस सीट के लिए कांग्रेस ने विपुल परमार को चुना है. नगर निगम पार्षद रह चुके विपुल परमार की विभिन्न संगठनों के माध्यम से दलित युवाओं में अच्छी खासी लोकप्रियता रखते हैं. आक्रामक नेता होने के नाते उम्मीद की जा रही है कि वह बीजेपी को कड़ी टक्कर देंगे. लेकिन वह पूरी तरह से अपने व्यक्तिगत वफादार कार्यकर्ताओं पर निर्भर प्रतीत होते हैं. स्थानीय स्तर पर प्रदेश स्तर का कोई भी नेता उनके प्रचार कार्य में विशेष रूप से शामिल होता नहीं दिख रहा है.
तीसरा कारक
आम आदमी पार्टी ने यहां से पूर्व शहर अध्यक्ष और सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी जेजे मेवाड़ा को मैदान में उतारा है. उच्च न्यायालय द्वारा मेवाड़ा के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के मामले की जांच का आदेश देने के बाद उनके अभियान को थोड़ा ब्रेक लगा है. मजबूत और आक्रामक शुरुआत के बाद मेवाड़ा अब खुद के बचाव की मुद्रा में नजर आ रहे है. कुल मिलाकर आम आदमी पार्टी यहां कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगा सकती है.
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