हिंदू पुराण इसे स्तम्भतीर्थ कहते हैं जिसका अर्थ है स्तंभों का शहर, इस शहर के स्तंभों का उल्लेख सम्राट अशोक के समय के यूनानी योद्धा मेगस्थनीज के लेखों में भी मिलता है. अंग्रेजों को स्तम्भतीर्थ का उच्चारण करना मुश्किल लगता था, इसलिए ब्रिटिश शासन के इसे केम्बे के रूप में पहचान मिली, उसके बाद मुस्लिम शासकों ने इसे खंभात नाम दिया था. खंभात का इतिहास उतना ही प्राचीन है जितना कि व्यापार को समृद्ध माना जाता था. हिंद महासागर की खाड़ी पर एक क्षेत्र होने के नाते, अफ्रीका के ज़ांज़ीबार, जिबूटी के साथ पूरे पश्चिम भारत का समुद्री व्यापार यहां से होकर गुजरता था. सम्राट जहांगीर के समय से यहां मुस्लिम शासन शुरू हुआ और मुगलों के कमजोर होने के बाद खंभात के सूबे स्वतंत्र नवाब बन गए. आज भी खंभात में हिंदू, जैन, बौद्ध स्थापत्य के साथ-साथ बड़ी संख्या में मुस्लिम शासन के भवन भी हैं. खंभात विधानसभा सीट संख्या 108 के साथ एक सामान्य श्रेणी की सीट है. जिसमें कुल 2,30,988 मतदाता हैं.
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मिजाज
भाजपा की स्थापना 1980 में हुई थी और 1998 के चुनावों के बाद गुजरात की अधिकांश विधानसभा सीटों पर अपना पैर जमा लिया था. लेकिन खंभात इससे पहले 1995 में ही भाजपा को स्वीकार कर लिया था और तब से यह सीट भाजपा का गढ़ मानी जाती रही है. कांग्रेस के किसी उम्मीदवार को 37 साल से यहां मौका नहीं मिला है. इससे पता चलता है कि अन्य शहरों की तुलना में खंभात में हिंदूत्व का असर कहीं और से ज्यादा मजबूत है. यहां नागरिक मुद्दों पर भावनात्मक मुद्दों को प्राथमिकता देने की प्रवृत्ति है. साम्प्रदायिक तनाव भी यहां की एक चिरस्थायी समस्या है जिसे इस राजनीतिक मिजाज को आकार देने में एक कारक माना जाता है.
रिकॉर्ड बुक
साल विजेता पार्टी मार्जिन
1998 शिरीष शुक्ल भाजपा 2268
2002 शिरीष शुक्ल भाजपा 10402
2007 शिरीष शुक्ल भाजपा 10077
2012 संजय कुमार पटेल भाजपा 15386
2017 महेश कुमार रावल भाजपा 2318
कास्ट फैब्रिक
ओबीसी और पाटीदारों की सबसे बड़ी संख्या वाली इस सीट में मुसलमानों और दलितों की महत्वपूर्ण उपस्थिति है. इसके अलावा यहां ब्राह्मणों की संख्या भी 6% है और राजनीतिक प्रभाव विशेष होने के कारण शिरीष शुक्ल यहां तीन कार्यकाल तक चुने गए थे. वर्तमान विधायक महेश रावल भी ब्राह्मण हैं. यहां जाति के बजाय धर्म के आधार पर वोट देने का चलन है, जिसका फायदा बीजेपी को मिल रहा है.
समस्या
यहां शहरी विकास की समस्या सबसे प्रमुख है. सड़कों के चौड़ीकरण और नगर पालिका प्रशासन की ढिलाई का जोरदार विरोध हो रहा है. समुद्र के जलस्तर में और वृद्धि को रोकने के लिए सरकार की निष्क्रियता को लेकर भी किसानों में आक्रोश है. लेकिन हर चुनाव के साथ स्थानीय मुद्दों को भूलकर सांप्रदायिक कारणों से वोट देने की प्रवृत्ति होती है, इसलिए अहम मुद्दे की बहस गौण हो जाती हैं.
मौजूदा विधायक का रिपोर्ट कार्ड
महेश कुमार रावल का यह पहला कार्यकाल है उनको स्थानीय रूप से मयूर के नाम से जाना जाता है. नियमित जनसंपर्क वाले नेता की छाप है. उन्होंने विधानसभा में सक्रिय रूप से खंभात के मुद्दों को उठाया है और विकास के लिए पार्टी के दंडक पंकज देसाई और सांसद मितेश पटेल से मिलने वाले अनुदान का अधिकतम लाभ उठाया है. उनका टिकट फिक्स माना जा रहा है.
प्रतियोगी कौन?
कांग्रेस पर्यवेक्षकों द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में सीट के लिए 12 दावेदारों को सूचीबद्ध किया गया था लेकिन कांग्रेस अभी भी सही नाम से संतुष्ट नहीं है. भाजपा के इस गढ़ को तोड़ने के लिए एक सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत और निर्विवाद नाम खोजना मुश्किल लगता है. वहीं, शहर, तालुका स्तर पर कांग्रेस का संगठन भी कमजोर माना जाता है.
तीसरा कारक
आम आदमी पार्टी के युवा नेता महिपत सिंह चौहान को मातर सीट से उम्मीदवार बनाया गया है लेकिन उन्होंने खंभात सीट से भी चुनाव लड़ने का दावा किया है. अगर उनके मांग को स्वीकार किया जाता है, तो वे मातर और खंभात दोनों सीटों से चुनाव लड़ सकते हैं. इन परिस्थितियों में यहां कांटे की टक्कर होने की संभावना है. अगर ओवैसी की पार्टी भी यहां अपना उम्मीदवार उतारती है तो चतुष्कोणीय मुकाबला में कांग्रेस पूरी तरह से हार जाएगी.
#बैठकपुराण भरूच: कांग्रेस का मिशन इंपॉसिबल इस बार भी क्या पॉसिबल नहीं होगा?
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