पिछली शताब्दी के शुरुआती दशकों में जब अहमदाबाद पुराने कोट क्षेत्र को छोड़कर साबरमती नदी के उस पार विकसित हो रहा था, वह क्षेत्र जो तेजी से कोट क्षेत्र से पश्चिम में एलिसब्रिज क्षेत्र के समानांतर उत्तर की ओर विकसित हुआ और समृद्ध के रूप में प्रसिद्ध हुआ अहमदाबाद का इलाका आज का साबरमती है. इस क्षेत्र का नाम साबरमती नदी से पड़ा क्योंकि यह नदी के किनारे पर विकसित हुआ है. उत्तर गुजरात के पाटीदारों के अलावा राधनपुर, धानेरा, पालनपुर, डिसा के जैन और राजस्थान से व्यापार और रोजगार के लिए अहमदाबाद में बसे जैन समुदाय इस क्षेत्र की पहचान माने जाते हैं. कालूपुर के समानांतर रेलवे स्टेशन वाले साबरमती को अब मेट्रो और बुलेट ट्रेन स्टेशन भी मिलने जा रहा है. तीनों रेलवे स्टेशनों वाला गुजरात का पहला और वर्तमान में एकमात्र क्षेत्र होगा. साबरमती विधानसभा सीट, जो एक शांतिपूर्ण, वाणिज्यिक क्षेत्र होने का आभास देती है, में पास के कालीगाम, मोटेरा, चांदखेड़ा, रानिप और चांदलोडिया के अलावा दो नगरपालिका वार्ड शामिल हैं. सामान्य श्रेणी की इस सीट पर कुल 2,53,585 मतदाता पंजीकृत हैं.
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मिजाज
एक अपवाद को छोड़कर, यह सीट 1995 से भाजपा की समर्पित रही है. भूकंप के बाद हुए इस सीट के उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी की हार ने केशुभाई पटेल को अपदस्थ कर नरेंद्र मोदी को मुख्यमंत्री बनाने में अहम भूमिका निभाई थी. चूंकि इस सीट से पूर्व मुख्यमंत्री बाबूभाई पटेल, पूर्व उप मुख्यमंत्री नरहरि अमीन जैसे दिग्गज नेता प्रतिनिधित्व कर चुके हैं, इसलिए इस सीट पर जीत हासिल करना प्रतिष्ठा का प्रश्न माना जाता है. बीजेपी लगातार जीतती आई है लेकिन अगर प्रत्याशी चयन में सावधानी बरती जाए और जातीय समीकरण संतुलित रहे तो यहां हर पार्टी को बराबर का मौका मिल सकता है. बीजेपी को भी इस संभावना को ध्यान में रखते हुए हर चुनाव में कड़ी मेहनत करनी पड़ती है.
रिकॉर्ड बुक
साल विजेता पार्टी मार्जिन
1998 यतिन ओझा बीजेपी 21,017
2002 डॉ. जीतू पटेल बीजेपी 59,190
2007 गीताबेन शाह बीजेपी 69,323
2012 अरविंद पटेल बीजेपी 67,583
2017 अरविंद पटेल बीजेपी 68,810
कास्ट फैब्रिक
गुजरात में पाटीदार बहुल सीटों की सूची में साबरमती को शामिल करने से पता चलता है कि यहां पाटीदार समुदाय निर्णायक भूमिका निभाते हैं. लगभग 70,000 पाटीदारों में उत्तर गुजरात के कड़वा पाटीदारों की संख्या अधिक है. इसके बाद 60,000 ओबीसी जाति के मतदाता हैं. ठाकोर, क्षत्रियों की संख्या 40,000, दलितों की संख्या लगभग 25,000 और उच्च जातियों जैसे जैन, ब्राह्मणों की भी आबादी लगभग 30,000 है. पिछले कुछ चुनावों से दोनों पार्टियां पाटीदार उम्मीदवार को अहमियत देती रही हैं. लेकिन इस बार कांग्रेस ने अपना पैटर्न बदल दिया है.
समस्या
यह क्षेत्र रेलवे, मेट्रो और अब बुलेट ट्रेन के साथ-साथ बीआरटीएस स्टेशनों के साथ कनेक्टिविटी में सबसे आगे है, और दुनिया का सबसे बड़ा क्रिकेट स्टेडियम यहां स्थित है, लेकिन बुनियादी ढांचे की कमी यहां एक मूलभूत समस्या है, ऐसा स्थानीय लोगों का ऐसा कहना है. कुछ क्षेत्रों में पीने योग्य साफ पानी नहीं है. व्यापारियों की शिकायत है कि स्थानीय बाजारों में मांग कम हो रही है क्योंकि बीआरटीएस ट्रैक के आसपास की सड़कें बेतरतीब ढंग से पार्क किए गए वाहनों से भरी रहती हैं.
मौजूदा विधायक का रिपोर्ट कार्ड
चूंकि अरविंद पटेल, जो दो कार्यकालों से यहां का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं, अपेक्षाकृत लो प्रोफ़ाइल वाले हैं, इस सीट के लिए भाजपा के तीस से अधिक दावेदार थे. लेकिन बीजेपी ने मौजूदा विधायक का टिकट काट कर नए चेहरा डॉक्टर हर्षद पटेल को चुनावी मैदान में उतारा है. स्थानीय प्रत्याशी और अमित शाह के विश्वासपात्र होने के नाते हर्षद पटेल को संगठन का समर्थन मिल सकता है.
प्रतियोगी कौन?
कांग्रेस ने यहां क्षत्रिय प्रत्याशी दिनेश महिडा को मौका दिया है. कांग्रेस ने भाजपा के पाटीदार कार्ड के खिलाफ क्षत्रिय, ठाकोर, दलित और ओबीसी वोटबैंक को संतुलित करने की कोशिश की है. दिनेश महिडा को स्थानीय स्तर पर एक सक्रिय और आक्रामक नेता माना जाता है. लेकिन कांग्रेस के हर प्रत्याशी की तरह उन्हें भी पार्टी संगठन के बजाय अपने निजी कार्यकर्ताओं पर निर्भर रहना पड़ता दिख रहा है.
तीसरा कारक
जसवंत ठाकोर यहां से आम आदमी पार्टी से चुनाव लड़ रहे हैं. चूंकि बनासकांठा ठाकोर समाज के विभिन्न संगठनों में सेवा गतिविधियों में शामिल हैं, इसलिए उन्हें पूरी तरह से अनजान नहीं कहा जा सकता है, लेकिन यह एक बड़ा सवाल है कि क्या उन्हें अपने समाज के बाहर वोट मिल सकता है. इस क्षेत्र में आप के गारंटी के वादों का भी कुछ खास असर नहीं होता दिख रहा है. ऐसे में आप प्रत्याशी कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगा सकता है.
#बैठकपुराण असारवा: जिस सीट पर बीजेपी के सबसे ज्यादा 100 दावेदार थे उसकी जीत तय?
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