बड़े शहरों में क्षेत्रों के विकास के नियमित क्रम के अनुसार जैसे-जैसे एक क्षेत्र भीड़भाड़ वाला हो जाता है, पड़ोस का दूसरा क्षेत्र अधिक विकसित हो जाता है. मणिपुर, गोधावी जैसे गांव बोपल के विकास की वजह से अब रिहायशी इलाकों के रूप में विकसित हो रहे हैं. जबकि ठक्करबापा नगर अस्सी के दशक से बिखरी आवासीय सोसायटियों के साथ मालधारियों और पशुपालकों का क्षेत्र माना जाता था. बापूनगर और निकोल क्षेत्रों में पिछले बीस वर्षों में तेजी से विकास हुआ है इसका लाभ ठक्करबापा नगर को भी मिला है. अब यह क्षेत्र आवासीय और व्यापारिक व्यवसाय के लिए भी लोकप्रिय हो रहा है. नए परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई यह सीट पहले बापूनगर, राखियाल सीट में शामिल थी. अब इस विधानसभा सीट के तहत नगर पालिका के चार वार्डों के कुल 2,23,432 मतदाता पंजीकृत हैं. क्षेत्रफल और जनसंख्या दोनों की दृष्टि से सीट अपेक्षाकृत कम है.
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मिजाज
इस सीट पर हुए दोनों चुनावों में बीजेपी प्रत्याशी को भारी अंतर से जीत मिली थी. दोनों चुनावों में, भाजपा उम्मीदवार ने 60 से 65% वोट हासिल किए और प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस पर हावी रहे. पाटीदार आरक्षण आंदोलन के दौरान पुलिस कार्रवाई के दौरान जिस युवक की मौत हुई थी, वह इसी इलाके का था, बावजूद इसके यहां भाजपा प्रत्याशी को अच्छी खासी जीत मिली थी. चूंकि यहां बिल्डर लॉबी का काफी दबदबा है, इसलिए ऐसा आभास हो रहा है कि बीजेपी समर्थक बिल्डर लॉबी बीजेपी उम्मीदवार को जिताने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा रही है.
रिकॉर्ड बुक
साल विजेता पार्टी मार्जिन
2012 वल्लभ काकड़िया बीजेपी 49,251
2017 वल्लभ काकड़िया बीजेपी 34,088
कास्ट फैब्रिक
इस निर्वाचन क्षेत्र में लगभग 80,000 पाटीदार और 60,000 दलित और 60,000 ओबीसी मतदाता हैं, जिनमें सौराष्ट्र के लेउवा पटेलों का प्रभुत्व है. यहां ओबीसी समुदाय भी मुख्य रूप से सौराष्ट्र से हैं. हीरा उद्योग, कढ़ाई और गृह उद्योग से जुड़े ओबीसी वोटर बीजेपी के प्रतिबद्ध वोटर माने जाते हैं. अगर दोनों पार्टियां सौराष्ट्र के लेउवा पाटीदारों को ही उम्मीदवार बनाती हैं तो दलित और ओबीसी समीकरण भी अहम हो जाता है.
समस्या
जैसे कोई नीति या मानक नहीं है, बेतरतीब निर्माण यहां हो रहे हैं. इंपेक्ट फीस भरकर अवैध निर्माण को वैध कराने के मामले में यह इलाका सबसे ऊपर है. अवैध निर्माण के कारण यातायात की समस्या, सरकारी भूमि या सार्वजनिक सड़कों पर दबाव और जल निकासी की समस्या इस क्षेत्र की मुख्य समस्याएं हैं. सभी जानते हैं कि इन सभी समस्याओं के लिए बिल्डर लॉबी की मिलीभगत सरकारी भ्रष्टाचार जिम्मेदार है, लेकिन मतदान के समय हर समस्या गायब होती दिख रही है.
मौजूदा विधायक का रिपोर्ट कार्ड
भाजपा के शीर्ष नेता और पूर्व परिवहन मंत्री वल्लभ काकड़िया यहां मजबूत जनसंपर्क रखते हैं. उम्र के कारण काकड़िया को दोबारा नहीं उतारा गया है, लेकिन चूंकि सभी ने उनके अबाध दबदबे को स्वीकार कर लिया है, इसलिए भाजपा ने उन्हें सीट जीताने की जिम्मेदारी सौंपी है. भाजपा उम्मीदवार कंचन बेन रादडिया अहमदाबाद नगर निगम में चुनकर पहुंच चुकी है. उसके बाद अब भाजपा ने उन्हें पाटीदार महिला के रूप में विधानसभा में भेजने की तैयारी दिखाई है. चूंकि इस सीट पर पहली बार कोई महिला उम्मीदवार मैदान में है, इसलिए महिला मतदाताओं का समर्थन पाने की पार्टी की आशा गलत नहीं है. हालांकि, कंचनबेन को कास्ट फैक्टर के अलावा वल्लभ काकड़िया के समर्थन पर निर्भर माना जाता है.
प्रतियोगी कौन?
कांग्रेस ने इस प्रतिष्ठित सीट पर विजय पटेल को उम्मीदवार बनाकर मुकाबले की दिलचस्प बनाने की कोशिश की है. सौराष्ट्र पाटीदार समाज से जुड़े विजय पटेल हालांकि पिछले चुनाव के कांग्रेस प्रत्याशी बाबूभाई मांगुकिया की तरह चुनाव प्रचार के बजाय घर-घर संपर्क पर ज्यादा भरोसा कर रहे हैं, इसलिए अभी तक कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनता नहीं दिख रहा है.
तीसरा कारक
आप के उम्मीदवार के रूप में, संजय मोरी सौराष्ट्र से हैं, लेकिन ओबीसी समुदाय पर आधारित हैं. आम आदमी पार्टी का प्रत्याशी कुछ खास असर नहीं डाल पाएगा, क्योंकि यहां वोटिंग घोर जातिवादी समीकरणों के आधार पर होती है.
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