कथावाचक प्रेमानंद ने अपने गृहनगर को ‘व्हालुं वडोदरू’ कहा, शहर का पालन-पोषण सयाजीराव गायकवाड़ की दूरदर्शिता से हुआ. बाबासाहेब अम्बेडकर हों या महर्षि अरबिंद, सयाजीराव ने दुनिया भर के प्रतिभाशाली लोगों को आमंत्रित करके अपने शहर की शिक्षा का वैश्वीकरण किया. शहर को दुनिया के सर्वश्रेष्ठ मूर्तिकारों की कला से सजाया और राजा रवि वर्मा जैसे प्रसिद्ध कलाकारों के चित्र बनाए. फैयाजखान और इनायतखान जैसे दिग्गजों को वडोदरा में देश के पहले संगीत महाविद्यालय में शामिल किया और ललित कला को व्यवस्थित शिक्षा का दर्जा दिया. सयाजीराव ने वडोदरा शहर को एक उदाहरण के रूप में पेश किया कि एक शासक अपने शासनकाल में क्या कर सकता है जिसे पूरी दुनिया के सामने रखा जा सकता है. गुजरात राज्य बनने के बाद वड़ोदरा शहर की इस सीट को वाडी के नाम से जाना जाता था. नए सीमांकन के बाद उस क्षेत्र का कुछ हिस्सा सयाजीगंज में जोड़ दिया गया और अब यह सीट वडोदरा सिटी के नाम से जानी जाती है. नए परिसीमन के बाद यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गई है. यहां कुल 2,74,421 मतदाता पंजीकृत हैं.
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मिजाज
मराठी भाषी वैचारिक रूप से प्रबल थे इसलिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हिंदुत्व का विचार सबसे पहले गुजरात के वडोदरा में देखने को मिला था. आजादी के बाद भी जब राष्ट्रीय स्वयंसंघ ने अपनी विचारधारा को राजनीतिक रूप दिया और जनसंघ की स्थापना की तो जनसंघ का पहला कार्यालय वड़ोदरा में खुला. इसलिए हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के मेल ने हमेशा वडोदरा को आकर्षित किया है. वाडी और पिछले दो चुनावों को लगातार वडोदरा शहर सीट मानते हुए 1985 के बाद से यहां कांग्रेस का कोई उम्मीदवार नहीं जीता है.
रिकॉर्ड बुक
साल विजेता पार्टी मार्जिन
1998 भूपेंद्र लाखावाला भाजपा 20,401
2002 भूपेंद्र लाखावाला भाजपा 46,076
2007 भूपेंद्र लाखावाला भाजपा 29,387
2012 मनीषा वकील भाजपा 51,889
2017 मनीषा वकील भाजपा 52,383
कास्ट फैब्रिक
इस सीट पर करीब 75 हजार ओबीसी वोटरों का संख्यात्मक दबदबा है. इसके अलावा, 50,000 दलित और 35,000 पाटीदार भी महत्वपूर्ण हैं. पाटीदार और ओबीसी जातियां यहां महत्वपूर्ण हो जाती हैं क्योंकि अनुसूचित जातियों के लिए सीट आरक्षित है. हालांकि, वड़ोदरा शहर में कास्ट फैक्टर विशेष रूप से प्रभावशाली नहीं है. मतदाता इतने शिक्षित और परिपक्व हैं कि वे जाति की परवाह किए बिना पार्टी की नीति और उम्मीदवार के एजेंडे के आधार पर अपना वोट डालते हैं.
समस्या
भीड़भाड़ वाली सड़कें, अवैध निर्माण, पुराने ढांचों का विध्वंस या पुनर्विकास की अनियंत्रित प्रक्रिया स्थानीय स्तर पर प्रमुख समस्याएं हैं. आवारा पशुओं की समस्या भी नागरिकों को परेशान करती है, इसके अलावा मांडवी से न्यायमंदिर तक पुराने बाजार क्षेत्र को पुनर्जीवित करने की बात को लागू नहीं किया गया है. जिस तरीके से अहमदाबाद में भद्रा बाजार की तस्वीर बदल दी गई है.
मौजूदा विधायक का रिपोर्ट कार्ड
मनीषा वकील यहां दो बार विधायक रह चुकी हैं और तीसरी बार भी उन्हें चुनकर बीजेपी ने सबको चौंका दिया है. पूर्व महापौर सुनील सोलंकी समेत दावेदार नाराज हैं और अब उनके प्रचार अभियान में कुछ खास सक्रिय नजर नहीं आ रहे हैं. हालांकि, मनीषा वकील का जनसंपर्क काफी अच्छा है. यह धारणा कि उनका कार्यालय नागरिकों की शिकायतों का तुरंत जवाब देता है, यही वजह है कि उन्हें तीसरे कार्यकाल का टिकट दिलाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. इस सीट का तीन कार्यकाल के बाद मार्जिन में गिरावट का इतिहास रहा है. इससे पहले भूपेंद्र लाखावाला को भी तीसरे कार्यकाल के बाद दोहराया नहीं गया था.
प्रतियोगी कौन?
पिछले चुनाव में हारे हुए उम्मीदवार अनिल परमार कांग्रेस द्वारा गुणवंत परमार को मैदान में उतारने के कारण बगावती मूड में थे, लेकिन उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवारी दाखिल करने के बजाय चुनाव प्रचार से किनारा कर लिया है, बावजूद इसके वह गुणवंत परमार को भारी झटका दे सकते हैं. भाजपा के मुकाबले कांग्रेस के पास इतना अनुभवी संगठन या बूथ प्रबंधन नहीं है.
तीसरा कारक
आम आदमी पार्टी के जिगर सोलंकी दलित युवा नेता के रूप में युवाओं में लोकप्रिय हैं लेकिन उनकी कोई खास पहचान नहीं है. इसके बावजूद स्थानीय लोगों में इस बात की चर्चा है कि वे कांग्रेस का वोट तोड़ने में कामयाब होंगे. कुल मिलाकर अगर बीजेपी की मनीषाबेन इस सीट पर हैट्रिक की उम्मीद कर रही हैं तो इसे पूरी तरह गलत नहीं माना जा सकता है.
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