पिछले चुनाव में अमरेली के अलावा बीजेपी को जूनागढ़ और गिर सोमनाथ जिलों में बड़ा झटका लगा था. पाटीदार आंदोलन के अलावा किसानों की नाराजगी इसकी वजह थी. सुरेंद्रनगर जिला परंपरागत रूप से कांग्रेस का मजबूत वोट बैंक माना जाता है. बीजेपी ने बीते 5 साल के दौरान साम, दाम, दंड, भेद का उपयोग कर जूनागढ़ और गिर सोमनाथ जिले के एक-एक विधायक और सुरेंद्रनगर जिले के दो विधायकों को दलबदल अपने खेम में शामिल कर चुकी है. अब जब भाजपा और दलबदलुओं का जनता की अदालत में फैसला होना है तो इन तीन जिलों में फिर से भाजपा के लिए माहौल आसान नहीं है.
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जूनागढ़ जिला: कुल सीटें 5
2017 में: भाजपा – 01, कांग्रेस – 04
जूनागढ़: इस शहर में जहां हर जगह इतिहास छिपा है, कांग्रेस के भीखाभाई जोशी की दशकों की मेहनत पिछले चुनाव में रंग लाई थी. 2017 में उनका सामना भाजपा के दिग्गज नेता महेंद्र मशरू से हुआ था, लेकिन भीखाभाई 6,000 से अधिक मतों के अंतर से जीत हासिल की थी. इस बार कांग्रेस के संजय कोरडिया और आप के चेतन गजेरा भीखाभाई के खिलाफ चुनावी मैदान में हैं. यहां पाटीदार वोटर बंट जाने की वजह से भीखाभाई मजबूत नजर आ रहे हैं. उनका प्लस पॉइंट यह है कि उन्होंने पांच साल तक साफ-सुथरी छवि बनाए रखी है. हालांकि विपक्षी विधायक होने के नाते वे खास प्रदर्शन नहीं दिखा सके, इसलिए उन्हें माइनस प्वाइंट माना जाना था. हालांकि जूनागढ़ की जनता उन्हें एक मौका और दे तो हैरानी नहीं होगी.
मांगरोल: जूनागढ़ के बाबी शासकों के चचेरे भाई की इस रियासत को ज्यादातर कांग्रेस की रियासत माना जाता रहा है. पिछले चुनाव के दोनों उम्मीदवार भाजपा के भगवानजी करगठिया और कांग्रेस के बाबू वाजा मैदान में हैं. आप के पीयूष परमार भी अच्छा प्रभाव डाल रहे हैं. यहां का कास्ट फैब्रिक कांग्रेस को फायदा पहुंचा सकता है. अगर कांग्रेस दलित और मुस्लिम वोटबैंक को बनाए रख सकती है, तो बाबू वाजा यहां से फिर से जीत हासिल कर सकते हैं.
केशोद: पिछले चुनाव में यहां बीजेपी के लो प्रोफाइल देवाभाई मालम जीते थे. इस सीट पर कड़वा पाटीदार, कोली और अहीर वोटर अहम हैं. भाजपा के देवाभाई और आप के रामजी चुडासमा कोली हैं जबकि कांग्रेस के हीराभाई जोटवा अहीर हैं. भाजपा के शीर्ष नेता, पूर्व विधायक और कड़वा पाटीदार नेता अरविंद लाडानी बगावत कर निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं. इसलिए यहां चतुष्कोणीय मुकाबाल स्पष्ट है. आप के चुडासमा और बागी लाडानी की सक्रियता के चलता भाजपा को नुकसान पहुंचने की संभावना है. अहिर वोट बैंक बरकरार रहा तो यह सीट आसानी से कांग्रेस के पाले में जा सकती है.
माणावदर: अपने दम पर यह सीट जीतने वाले जवाहर चावड़ा अब भाजपा में हैं लेकिन इस बार उनके लिए चढ़ाई कठिन है. अहीर के अलावा इस सीट पर कड़वा पाटीदार समुदाय का बड़ा वोट बैंक है. चूंकि कांग्रेस उम्मीदवार अरविंद जिन्ना लाडानी कड़वा पाटीदार समुदाय के नेता हैं, इसलिए उनके अपने वोट बैंक को बनाए रखने की संभावना है. लेकिन जवाहर चावड़ा आप के अहीर उम्मीदवार करशन भादरका से डरे हुए नजर आ रहे हैं. प्रचार अभियान में अप्रत्याशित रूप से कारगर साबित हुए भादरका को अपना वोट बैंक तोड़ने से रोकने के लिए जवाहर चावड़ा को अपनी पूरी ताकत लगानी होगी. अब सब कुछ आखिरी मिनट के समझौते पर निर्भर करता है.
विसावदर: कांग्रेस के टिकट पर चुने गए हर्षद रिबडिया इस चुनाव में आखिरी समय में भाजपा का चोला पहनकर चुनावी मैदान में उतरे हैं. ऐसे लगाता है कि दलबदल करने की वजह से उनको स्थानिक लोगों के नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है. कांग्रेस के करशन वडोदरिया से ज्यादा आप के भूपत भयानी के प्रचार से रिबडिया के पसीने छूट रहे हैं. आप के मुफ्त बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे मुद्दों के अलावा ये दलबदल के मुद्दे को भी तूल दे रहे हैं. अगर रिबडिया आखिरी वक्त में कोई बड़ा खेल नहीं कर पाए तो इस सीट पर कुछ भी नया होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है.
गिर सोमनाथ जिला: कुल सीटें 04
2017 में: भाजपा – 00, कांग्रेस – 04
विधानसभा की चार सीटों वाला यह जिला पिछले चुनाव में अमरेली जिले की तरह भाजपा मुक्त हो गया था. इस बार यहां बीजेपी को खासी उम्मीद हो सकती है. आम आदमी पार्टी फैक्टर भी बीजेपी को कुछ हद तक मदद कर सकता है.
तालाला: कांग्रेस के गढ़ माने जाने वाले तलाला में भगाभाई को अपने पाले में लाकर भाजपा ने राहत की सांस ली है. हालांकि भागाभाई खुद राहत की सांस लेने की स्थिति में नहीं हैं. इस सीट पर कारडिया, अहीर और कोली वोटबैंक निर्णायक हैं. भगाभाई के खिलाफ कारडिया नेता मानसिंह डोडिया और आप के कोली नेता नरेंद्र सोलंकी कड़ी मेहनत कर पटखनी देने की कोशिश कर रहे हैं. इसलिए भगाभाई के लिए इस बार कड़ी मेहनत करना अनिवार्य है. हालांकि, परिवार के प्रभुत्व के कारण, भगाभाई अंतिम समय में बड़ा बदलाव कर सकते हैं.
कोडिनार: पिछले चुनाव में कांग्रेस के मोहन वाला ने यहां करीब पंद्रह हजार वोटों की बढ़त हासिल कर भारी उलटफेर किया था. इस बार बीजेपी ने सूझबूझ से डॉ. प्रद्युम्न वाजा को मैदान में उतारा है. गांवों में लोकप्रिय वाजा और दीनू बोघा सोलंकी फैक्टर के कारण भाजपा इस बार कोडिनार के लिए आशांवित है.
सोमनाथ: इस सीट पर भी कोली, कारडिया और अहीर समीकरण मान्य माने जाते हैं. कांग्रेस के कोली नेता विमल चुडासमा मौजूदा विधायक हैं. उनके खिलाफ भाजपा के मानसिंह परमार कारडिया समाज के नेता हैं. आम आदमी पार्टी के अहीर नेता जगमाल वाला ने इस सीट पर पहले निर्दलीय के रूप में 22,000 वोट हासिल किए थे. इस बार वे गेम चेंजर साबित हो सकते हैं. यहां अहिर को ज्यादातर कांग्रेस समर्थक वोट बैंक माना जाता है. ऐसे में जगमाल वाला विमल चुडासमा को नुकसान पहुंचाएं इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है.
ऊना: भाजपा जहां अब तक सिर्फ एक बार जीत दर्ज ही है इस सीट पर पूंजा वंश और भाजपा के कालू चना राठौर के बीच होने वाले मुकाबले को आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी ने दिलचस्प बना दिया है. इस सीट पर सबसे ज्यादा संख्या कोली समुदाय की है. दूसरे स्थान पर 52000 पाटीदार हैं. आप के सेजल खुंट पाटीदारों के वोट बांट सकते हैं इस परिस्थिति में बीजेपी और कांग्रेस दोनों को फायदा पहुंच सकता है. सबसे अधिक संभावना है कि यह सीट बहुत कम अंतर से हार-जीत होगी जिसमें कांग्रेस का पलड़ा भारी रहेगा.
सुरेंद्रनगर जिला: कुल सीट 5
2017 में: भाजपा – 01, कांग्रेस – 04
पिछले चुनाव में इस जिले में मिला झटका भाजपा पर भारी पड़ा था. इस बार बीजेपी ने स्थिति सुधारने के लिए दलबदल से लेकर हर संभव कदम उठाए हैं, जिसका फल बीजेपी को मिल सकता है.
चोटिला: पिछले चुनाव के विजेता ऋत्विक मकवाना इस बार भी कांग्रेस के उम्मीदवार हैं. उनके खिलाफ भाजपा के शामजी चौहान से ज्यादा आप के राजू करपड़ा का पलड़ा भारी नजर आ रहा है. स्थानीय किसान नेता की छवि रखने वाले राजू करपड़ा ऋत्विक मकवाना के वोट तोड़ सकते हैं. चूंकि कांग्रेस ने लिंबड़ी उपचुनाव में चेतन खाचर नाम के एक काठी नेता को टिकट दिया था, इसलिए क्षेत्र में काठी समुदाय को कांग्रेस समर्थक माना जाता है. ऐसे में काठी के युवा नेता राजू करपड़ा निर्णायक साबित हो रहे हैं. हालांकि ऋत्विक मकवाना को उनकी सक्रियता और जनसंपर्क से फायदा हो सकता है.
लिंबड़ी: कोली, क्षत्रिय और भरवाड़ समुदाय के प्रभुत्व वाली इस सीट पर मुकाबला भाजपा के किरीटसिंह राणा और कांग्रेस की कल्पनाबेन मकवाना के बीच है. एक ओर किरीटसिंह का दबदबा है तो दूसरी ओर महिला प्रत्याशी होने के अलावा पिता सवाशीभाई मकवाना का नाम कल्पना के लिए प्लस प्वाइंट साबित हो रहा है. कुल मिलाकर इस सीट पर हो रहे मुकाबले में कल्पनाबेन आश्वस्त नजर आ रही है.
ध्रांगध्रा: पिछले चुनाव में जीते कांग्रेस प्रत्याशी परषोत्तम साबरिया को दलबदल करवा कर भाजपा ने रिटायर कर दिया है. अब उनकी जगह पर प्रकाश वरमोरा को भाजपा ने उम्मीदवार बनाया है. उनके खिलाफ छतरसिंह गुजरिया और आप के वागजी पटेल मैदान में हैं. ऐसा नहीं लगता कि आप का उम्मीदवार विशेष वोट तोड़ सकता है. ऐसे में वरमोरा की निजी छवि और बीजेपी का मजबूत संगठन जीत की उम्मीद पैदा कर सकता है.
वढवाण: हालांकि उद्योगपति धनजीभाई पटेल पिछले चुनाव में 20 हजार वोटों के अंतर से जीते थे, लेकिन बीजेपी ने पहले इस सीट के लिए जिज्ञा पंड्या को उम्मीदवार बनाया था और फिर सथवार समाज के नेता जगदीश मकवाना को मौका देने के लिए अंतिम समय में बदलाव किया था. विपक्ष में कांग्रेस के तरुण गढ़वी और आप के हितेश बजरंगी हैं. चूंकि पाटीदार उम्मीदवार नहीं हैं, इसलिए उनके वोट निर्णायक होंगे. भाजपा मुख्य रूप से सथवारा समाज के वोटों को निशाना बना रही है, जिसका फल मिल सकता है.
दसाड़ा: अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस सीट पर कांग्रेस के मौजूदा विधायक व प्रत्याशी नौशाद सोलंकी के खिलाफ भाजपा ने पुरुषोत्तम परमार और आम आदमी पार्टी ने अरविंद सोलंकी को मैदान में उतारा है. अगर नौशाद सोलंकी दलित वोटरों के अलावा ओबीसी समुदाय और मुसलमानों के वोटों के आधार पर अपनी सक्रियता और व्यक्तिगत लोकप्रियता के आधार पर दोहराए जाते हैं तो आश्चर्य नहीं होगा.
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