गुजरात विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतगणना की उल्टी गिनती शुरू हो गई है. जिसकी वजह से हर सीट पर हर प्रत्याशी अपनी पूरी ताकत झोंक रहा है. इस बार पहली बार त्रिकोणीय मुकाबला बेहद पेचीदा स्थिति पैदा कर रही है और अभी भी अंतिम समय के झगड़े और समझौते के निर्णायक होने की संभावना के बीच सौराष्ट्र की 48 और कच्छ की 6, को मिलाकर कुल 54 सीटें को हर चुनाव में गांधीनगर का रास्ता साफ करने में अड़ंगा पैदा करती नजर आ रही है.
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काफी हद तक बीजेपी का गढ़ माने जाने वाले सौराष्ट्र और कच्छ में कांग्रेस ने पिछले चुनाव में बड़ा उलटफेर किया और 30 सीटों पर जीत हासिल की थी. अमरेली, गिर सोमनाथ और जूनागढ़ जिलों में कांग्रेस लगभग क्लीन स्वीप कर चुकी है. लेकिन पांच साल में बहुत कुछ खो भी चुकी है. उस वक्त पाटीदार आंदोलन और किसानों की नाराजगी के मुद्दे प्रभावी थे, जो इस बार नहीं है. इसके खिलाफ इस बार मैदान में आम आदमी पार्टी के रूप में तीसरा फैक्टर भी है, जो हर सीट पर अलग-अलग समीकरण बनाने की तस्वीर पेश करता है.
अमरेली जिला: कुल सीटें 5
2017 में: बीजेपी 00, कांग्रेस 05
पाटीदारों की बहुलता वाले इस जिले में भाजपा को बड़ा झटका लगा था. जिसकी वजह से इस बार बीजेपी ने यहां खास ध्यान दिया है.
अमरेली: इस सीट को परेश धनानी का गढ़ माना जाता है. इससे पहले वह दिलीप संघानी, परषोत्तम रूपाला और बावकु उंधाड जैसे दिग्गज नेताओं को हरा चुके हैं लेकिन इस बार उनके लिए स्थिति आसान नहीं है. भाजपा के जिलाध्यक्ष व युवा प्रत्याशी कौशिक वेकरिया की स्वच्छ छवि के खिलाफ धनानी की टेंशन बढ़ गई है. इस सीट पर कुछ भी नया होने के संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है.
लाठी: कांग्रेस के दिग्गज नेता वीरजी थुम्मर के खिलाफ भाजपा ने जनक तनाविया को मैदान में उतारा है. इस बात की पूरी संभावना है कि यहां कांटे की टक्कर का मुकाबला होगा. हालांकि, वीरजीभाई का लगातार जनसंपर्क उनकी ताकत है, जबकि जनक के खिलाफ भाजपा के भीतर काफी विरोध है, जो मतदान के दिन उन्हें प्रभावित कर सकता है. कुल मिलाकर कांग्रेस इस सीट को बरकरार रखने को लेकर आशान्वित है.
सावरकुंडला: भाजपा प्रत्याशी महेश कसवाला की छाप यहां आयातित प्रत्याशी की है. इसलिए उनको गुटबाजी का सामना करना पड़ रहा है. उनके प्रचार में अहमदाबाद, सूरत के कार्यकर्ता भी प्रमुखता से नजर आ रहे हैं. सौम्य छवि वाले कसवाला के खिलाफ मौजूदा विधायक प्रताप दुधात का प्रचार आक्रामक है. स्थानीय स्तर पर कयास लगाए जा रहे हैं कि कांग्रेस इस सीट को मामूली अंतर से जीत दर्ज कर सकती है.
राजुला: यहां कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष अंबरीश डेर और पुराने खिलाड़ी हीरालाल सोलंकी के बीच मुकाबला होगा. लेकिन यहां रोज खेल बदल रहा है. व्यापक बहस के बीच आम आदमी पार्टी के भरत बलदानिया निर्णायक नजर आ रहे हैं. क्योंकि भाजपा के बागी करण बरैया हीरालाल के वोट काटेंगे जबकि कांग्रेस के बागी बाबू राम अहिरो के वोट काटकर डेर को नुकसान पहुंचाएंगे. अंबरीश डेर की मेहनत दलित और मुस्लिम वोटरों के एकतरफा वोट पर निर्भर है.
धारी: यहां बहुत ही रोचक लड़ाई है. जिले के इतिहास में पहली बार यहां कोई ब्राह्मण प्रत्याशी चुनाव लड़ रहा है. कांग्रेस डॉ. कीर्ति बोरिसागर को चुनावी मैदान में उतारक नए समीकरण बनाने की कोशिश की है जिसका असर व्यापक नजर आ रहा है. जेवी काकड़िया कांग्रेस से भाजपा में आए हैं, जिससे स्थानीय संगठन से नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है. आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार कांति सतसिया भी मूल भाजपाई हैं. जिसकी वजह से चुनावी कैंपेन के दौरान काकड़िया को विरोध का सामना करना पड़ रहा है. यहां कांग्रेस के नए समीकरण को बनने से रोकने के लिए काकड़िया को अंतिम समय तक पैंतरेबाज़ी करनी होगी.
भावनगर जिला: कुल सीट 6
2017 में: भाजपा 05, कांग्रेस 02
हमेशा से बीजेपी के समर्थक रहे इस जिले में बीजेपी के लिए इस बार बेहद मुश्किल स्थिति है. इसीलिए प्रधानमंत्री मोदी महीने में चार बार यहां आ चुके हैं. यह बहुत संभव है कि यह जिला एक बड़े नवीनीकरण से गुजरेगा.
भावनगर पूर्व: यह सीट शहर अध्यक्ष और विभावरी दवे की मिलीभगत से नगर अध्यक्ष की पत्नी को टिकट मिलने से स्थानीय संगठन खफा है. लेकिन यहां भाजपा के प्रतिबद्ध मतदाताओं का प्रतिशत बहुत अधिक है इसलिए भाजपा निश्चिंत हो सकती है. यह संभावना नहीं है कि कांग्रेस कोली उम्मीदवार अपने समुदाय के बाहर से वोट ले सकता है. जबकि आप के उम्मीदवार को अच्छा खासा वोट मिल सकता है. इसलिए यह माना जा सकता है कि ओवरऑल बढ़त कम करने के बाद भी बीजेपी इस सीट को बरकरार रखेगी.
भावनगर पश्चिम: यहां कैबिनेट मंत्री जीतू वघानी की नींद हराम हो गई है ऐसी स्थिति देखने को मिल रही है. जिले की किसी भी सीट पर क्षत्रियों को प्रत्याशी नहीं बनाने की वजह से भाजपा के खिलाफ नाराजगी देखी जा सकती है. कांग्रेस ने क्षत्रिय नेता केके गोहिल को टिकट देकर जोरदार चाल चली है. कोली समुदाय के नेता राजू सोलंकी आप के उम्मीदवार हैं. अगर इस सीट के दो सबसे बड़े वोट बैंक कोली और क्षत्रिय का हिस्सा नहीं मिला तो वाघानी के लिए जीत हासिल करना बेहद मुश्किल होगा. वर्तमान में वह परषोत्तम सोलंकी और भाजपा के क्षत्रिय नेताओं के रहमो करम पर हैं. अगर वाघानी जीत भी जाते हैं, तो फिर से कैबिनेट पद का दावा करने के लिए उनके पास पहले के जितनी मार्जिन नहीं होगी.
महुवा: यहां भाजपा के सीधे-साधे प्रत्याशी शिवाभाई गोहिल का आंतरिक विरोध तेज होता नजर आ रहा है. इसके खिलाफ कांग्रेस के उम्मीदवार डॉ. कनु कलसरिया को जिताने के लिए पंचोली अहीर समाज एकजुट है. कोली वोटबैंक बड़ा है लेकिन निर्दलीय उम्मीदवारों और आप उम्मीदवार शिवाभाई के वोट तोड़ने की पूरी संभावना के बीच कांग्रेस को बड़ी जीत मिलने की संभावना है.
तलाजा: मौजूदा विधायक कांग्रेस के कनु बारैया के खिलाफ भाजपा के गौतम चौहान हैं. आप की प्रत्याशी लाभुबेन चौहान हैं. क्षत्रिय वोट निर्णायक होते हैं. जिले भर में क्षत्रियों की नाराजगी और कांग्रेस के पक्ष में मतदान करने की इच्छा क्षत्रिय वोट बैंक तक पहुंचती है तो कनुभाई के लिए जीत का रास्ता आसान हो सकता है. हालाकि तालुका पंचायत, जिला पंचायत में क्षत्रियों को अच्छा प्रतिनिधित्व देने की शर्त को स्वीकार कर गौतम चौहान ने क्षत्रियों का दिल और वोट जीतने की कोशिश की है.
गारियाधार: लगातार छह बार जीतने वाले केशुभाई नाकरानी को पिछले चुनाव में एंटी इनकमबंसी का सामना करना पड़ा था. जिससे उनका अंतर 1066 वोटों का हो गया था. लेकिन बीजेपी ने रिस्क लेने के बजाय उन्हें मैदान में उतारा है. यहां कांग्रेस ने दिव्येश चावड़ा को चुना है और कोली वोटरों पर भरोसा जताया है. हालांकि, यहां असली गेम चेंजर आम आदमी पार्टी के सुधीर वाघानी हैं. सुधीर वाघानी की पहली ही सूची में नाम की घोषणा के बाद से वह हर गांव का दो-दो बार दौरा कर चुके हैं. इस बात की पूरी संभावना है कि आप का उम्मीदवार यहां बीजेपी के उम्मीदवार के जीत की राह में रोड़ा डाल सकता है. अगर वे गेम चेंजर के बजाय खुद यह सीट जीत जाए तो आश्चर्य नहीं होगा.
पालीताना: भाजपा ने यह सीट क्षत्रियों को आवंटित करने के लिए समाज की भावनाओं को ध्यान में रखकर भीखाभाई बारैया को चुना है. इसके खिलाफ कांग्रेस पुराने खिलाड़ी प्रवीण चौहान को मैदान में उतारा है. अगर आप का उम्मीदवार कांग्रेस के वोट तोड़ने में नाकाम रहता है तो कांग्रेस इस सीट से उम्मीद लगा सकती है.
बोटाद जिला: 2 सीटें
2017 में: बीजेपी 01, कांग्रेस 01
इस जिले की दोनों सीटों पर दलबदल के चलते भाजपा ने जीत दर्ज की है, लेकिन बोटाद सीट पर दावेदारों का तांता लगा हुआ था, जो अब दिक्कत पैदा कर सकते हैं. भाजपा ने दिग्गज नेता सौरभ पटेल को काटकर यहां घनश्याम विरानी को चुना है. वहीं कांग्रेस ने मनहर पटेल को चुना है, वह लगातार इस क्षेत्र में काम करते रहे हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में कांग्रेस का अभियान विशेष रूप से प्रभावी प्रतीत होता है. बीजेपी के पास अब इस सीट को बरकरार रखने के लिए सिर्फ तीन दिन बचे हैं.
गढ़डा: अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस सीट पर भाजपा ने दिग्गज शंभुप्रसाद टुंडिया को मैदान में उतारा है. चुनावी मामलों में व्यापक अनुभव रखने वाले शंभुप्रसाद तमाम असंतोष और गुटबाजी को खारिज करने में सक्षम हैं. दूसरी ओर, जगदीश चावड़ा ने प्रचार में अपना पूरा नाम जगदीश मोतीभाई चावड़ा लिखना दर्शाता है कि वे अपने पिता और पूर्व सांसद मोतीभाई की विरासत पर निर्भर हैं. संभावना है कि बीजेपी इस सीट के लिए निश्चिंत हो सकती है.
पोरबंदर जिला: 2 सीटें
2017: बीजेपी 01, एनसीपी 01
भाजपा के लिए यह जिला हमेशा से रहस्य रहा है. यहां लोकसभा में परिसीमन अलग होने से विधानसभा में बदलते जातीय समीकरण का लाभ नहीं मिल रहा है. इस बार भी बीजेपी को यहां कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है.
पोरबंदर: यहां दो चिर प्रतिद्वंद्वी चुनावी मैदान में हैं. भाजपा के बाबू बोखिरिया के खिलाफ कांग्रेस के अर्जुन मोढ़वाडिया दोनों अपने-अपने करियर के अंतिम चरण में हैं. इस बार प्रचार में मतदाताओं ने मोढवाडिया के प्रति पहले से ज्यादा सहानुभूति दिखाई है जिससे मोढवाडिया को मौका मिल सकता है. दूसरी ओर, बाबूभाई हर चुनाव में आखिरी समय में समझौता करने को लेकर आशान्वित हैं.
कुतियाना: इस सीट पर एनसीपी ने दबंग नेता कांधल जडेजा को टिकट न देकर यह सीट कांग्रेस को सौंप दी है. इस सीट पर चुनाव जीतने के लिए कांग्रेस ने नाथा ओडेदरा, बीजेपी के ढेलीबेन और निर्दलीय कांधल जडेजा यानी तीन उम्मीदवारों के बीच टक्कर होगी. यहां की लड़ाई काफी दिलचस्प है. भाजपा को महिला उम्मीदवार के चेहरे के आधार पर जीत की उम्मीद है लेकिन कांधल जडेजा के लिए यह वर्चस्व की लड़ाई है. यहां आखिरी वक्त तक कुछ भी कहना मुश्किल माना जाता है.
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